जी हाँ!! आज का ब्लॉग खुद पर?

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आज खुद पर ब्लॉग लिखने का मन है। खुद से जुड़ी बातों का मजा यूँ तो व्यक्तिगत होता है मगर जब बात उन लोगों से जुड़ी हों जिनको आप भी जानते हों तो मजा और मजेदार हो जाता है।

तो लीजिए बात शुरू करता हूँ देश के कृषि राज्य कल्याण मंत्री भागीरथ चौधरी से। वह सफल व्यवसायी और कामयाब राजनेता हैं। अब आप कहेंगे कि मैं तो खुद पर ब्लॉग लिख रहा था फिर ये भागीरथ जी बीच में कहां से आ गए?

मित्रों! भागीरथ चौधरी जी मेरे दसवीं कक्षा में सहपाठी रह चुके हैं। है ना आपके लिए नई बात। शायद ही कोई यह जानता हो कि हम दोनों गगवाना के सरकारी हायर सेकेंडरी स्कूल में साथ पढ़ते थे। दसवीं की परीक्षा हमने साथ दी थी।

भागीरथ चौधरी पिछले दिनों हमारे “बात आज की” चैनल पर साक्षात्कार के लिए आए। बात चली तो पुराने किस्से सामने आ गए। गुलहसन खान पठान उन किस्सों में आ गए। गुलहसन को अजमेर के बहुत से लोग जानते होंगे। वह पुलिस में एडिसनल एस पी पद से रिटायर्ड हुए हैं। उन्होंने पुलिस अधिकारी के रूप में कई फिल्मों में भी काम किया। मोहम्मद रफी की आवाज में बेहतरी गीत गाने वाले गुलहसन खान के कई किस्से मैंने और भागीरथ जी ने याद किए।

उन्होंने याद दिलाया कि गुलहसन उनको साईकिल पर बैठा कर घुमाया करता था। तब मैंने उनकी बात आगे बढ़ाई कि वह आपको कंधे पर बैठा कर भी साईकिल चलाया करता था।

उस समय हमारे प्रिंसीपल श्री रॉबर्ट्स हुआ करते थे। अंग्रेजी एक सिंधी टीचर पढ़ाती थी। भागीरथ जी को मैंने याद दिलाया कि उस समय वलीदाद खान!नवाब खान! मनसब अली! पूनम वर्मा आदि मित्र साथ पढ़ा करते थे। ये सारे दोस्त कब्बड्डी के नेशनल प्लेयर थे। पूनम पुलिस में चला गया और दुर्घटना में चल बसा। उसका भाई भी पुलिस में था। सिविल लाइन्स अजमेर में। उसकी भी दुर्घटना में मृत्यु हो गई।

मेरे पिता जी तब गेगल थाने में थानेदार हुआ करते थे।

भागीरथ चौधरी तब बहुत सीधे विद्यार्थी माने जाते थे। उनके मासूम चेहरे को देख कर कोई अंदाजा नहीं लगा सकता था कि वह किशनगढ़ के एक सफल व्यवसायी और कामयाब राजनेता के रूप में अपनी देश व्यापी पहचान बना पाएंगे।

मैं पढ़ाई में ठीक था सो परीक्षा में 97 फीसदी अंक लेकर मेरिट होल्डर हुआ। पढ़ाई तो खूब की मगर कलम घिसाई के अलावा कोई काम नहीं आई पिता जी कुछ और बनाना चाहते थे मगर अपनी किस्मत से कभी बनी ही नहीं।

गगवाना के लोग आज इतने साल बाद भी मुझसे जुड़े हुए हैं।

गगवाना के बाद केकड़ी और फिर सीकर पिताजी के साथ जाना पड़ा। सीकर के एस के स्कूल में पढ़ा। यहाँ सीकर का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ कि अजमेर के आई जी पुलिस ओम प्रकाश जी उसी स्कूल में मुझसे बहुत जूनियर हुआ करते थे। उनसे भी जब निजी बातें होती हैं तो कई अध्यापकों के किस्से याद आ जाते हैं। खास तौर से कटारिया साहब! जिन्होंने मुझे इतना मारा कि मेरे हाथ पर प्लास्टर चढ़वाना पड़ा। उस समय अजमेर के सुविख्यात केमिस्ट्री टीचर पी सी जैन भी हमारे अध्यापक होकर आए थे। अब वह पालबीचला अजमेर में रह रहे हैं। उनके बारे में सब जानते हैं कि उन्होंने पढ़ा पढ़ा कर दो सौ से जियादा डॉक्टर्स बनवा दिए। इनमें से एक डॉक्टर समित शर्मा हैं। जो राज्य के वरिष्ठ आई ए एस आॅफिसर हैं और कई नवाचारों को लेकर पूरे देश में अलग से पहचाने जाते हैं।

हां तो आपको बता दूँ कि तब सीकर में स्कूल के पीछे खेत हुआ करते थे और हमने वहाँ से खूब गाजर मूलियों की चोरी की। आप चाहें तो आई जी ओम प्रकाश जी से मेरी बात की तसदीक कर सकते हैं। आज भले ही वह कितने भी बड़े अधिकारी हो गए हों पर स्कूली दिनों में मूली चुराने वाली बात से इंकार नहीं कर सकते।

यहाँ एक और चेहरा जिसे आप भी जानते हैं याद आ रहा है। राजस्थान के डी जी पी पुलिस रहे भूपेन्द्र यादव का। वह जब अजमेर मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी कर रहे थे तब उनका सपना प्रशासनिक अधिकारी बनने का था। पढ़ना उनका शौक था। तब मैं तोपदड़ा स्कूल में लाइब्रेरियन हुआ करता था। भूपेन्द्र अक़्सर अच्छी किताबों के लिए मेरे पास आ जाया करते थे। तब से उनका परिचय अब तक बना हुआ है।

एक और चर्चित राजनीतिक चेहरा मेरे विधार्थी जीवन से जुड़ा है। वह है डॉ रघु शर्मा का। राजस्थान विश्वविद्यालय में तब मैं बी लिब एस सी कर रहा था। ललित किशोर चतुवेर्दी मेरे ताऊ जी तब शिक्षा मंत्री थे। पिताजी मुझे सरकारी नौकरी करवाना चाहते थे सो लाइब्रियन का कोर्स जरूरी था। ताऊ जी ने बाद में नौकरी भी लगवा दी।

मगर बात चल रही थी डॉ रघु शर्मा की। अश्क अली टांक! राजेन्द्र राठौड़! रघु शर्मा और मैं! हम सब साथ थे। तब रघु शर्मा को हमने छात्र संघ का अध्यक्ष बनाया था। उसके बाद रघु शर्मा ने राजनीति में जो मुकाम हांसिल किए, आपके सामने हैं।

दोस्तों ऐसे दर्जनों कामयाब चेहरे हैं जिनसे मेरी नजदीकियां रहीं। चाहे वह गजल सम्राट मेंहदी हसन साहब हों! जगजीत सिंह हों! गुलजार साहब हों! निदा फाजली साहब हों! राष्ट्रपति स्व शंकर दयाल शर्मा हों! तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्व नाथ प्रताप सिंह हों!

इसे मैं ईश्वर का ही आशीर्वाद मानता हूँ कि मैंने दोस्त और दुश्मन खूब कमाए। एक से एक बड़े खलीफे! बस! इतना जरूर याद रखा कि दोस्ती और दुश्मनी कभी अधूरी नहीं छोड़ी।

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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