किशनगढ़ के झोला छाप डॉक्टर के बहाने कई सवाल?

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बिहार के बाद राजस्थान में सर्वाधिक झोला छाप डॉक्टर्स
सरकार! चिकित्सा विभाग! स्थानीय प्रशासन ! सब अकर्मण्य
राजनेताओं के लिए सर्वहारा वर्ग सिर्फ चुनावों में वोटर्स

झोला छाप डॉक्टरों की राजस्थान ऐशगाह है। देश में बिहार के बाद राजस्थान वह दूसरा राज्य है जहाँ सबसे जियादा नीम हकीम खतरा ए जान हैं। थोड़े बहुत पढ़े लिखे झोला छापों की संख्या अनुमानत: एक लाख से अधिक है। पहले ऐसे अनाड़ी खिलाड़ी बंगाल के हुआ करते थे जिन्हें बंगाली डॉक्टर्स भी कहा जाता था। वे पुश्तैनी डॉक्टर्स होते थे।

मुझे याद है जब मेरे पिता जी क्लॉक टावर थाने में पुलिस इंचार्ज हुआ करते थे और मैं न्याय अखबार में काम करता था। दुर्भाग्य से मेरे फिस्टुला हो गया। बेहद खतरनाक रोग। पिताजी को फुर्सत नहीं थी और मेरा रोग बेकाबू होता जा रहा था। आए दिन अखबार से छुट्टी। हमारे प्रधान संपादक बाबा विश्वदेव शर्मा जो मुझे पुत्रवत मानते थे ने एक बार मुझे घर से उठा लिया । उनको मेरे रोग के बारे में पता चल गया था। वह मुझे अपनी कार में बैठा कर सीधे कचहरी रोड पर बंगाली गली के बाहर एक बंगाली डॉक्टर के यहाँ ले गए।

डॉक्टर साहब ने क्रमवार तीन बार मेरे आॅपरेशन किए। बाकायदा वाली शल्यक्रिया। मैं ठीक हो गया। आज जब झोला छापों की खबर सुनता हूँ तो डॉ चटर्जी याद आ जाते हैं। आज तक मुझे दुबारा वह रोग नहीं हुआ जबकि मैं ऐसे कई नामधारी डॉक्टर्स को जानता हूँ जिन्होंने फिस्टुला के आॅपरेशन किए और वापस रोग लौट आया।

मित्रों! तब झोला छाप डॉक्टर्स जैसा शब्द ईजाद नहीं हुआ था। परम्परागत सिद्धहस्त इलाजकर्ता हुआ करते थे। मुझे दुख है कि आज गाँव गाँव में झोला छाप डॉक्टर्स की बाढ़ आई हुई है। गुंडे बदमाश कस्बों और गांवों में क्लीनिक खोल कर बैठे हुए हैं। ये लोग पेटेंट दवाओं के भरोसे दुकानें चला रहे हैं। ताज्जुब की बात है कि ये गांवों के अधिकृत चिकित्सकों से अधिक खा कमा रहे हैं।

किशनगढ में कल ही एक मामला सुर्खियों में आया।
स्थानीय मीडिया की खबर पर जरा गौर फरमा लें।
किशनगढ़ शहर के अराई रोड स्थित जोगियों का नाडा क्षेत्र में एक छोलाछाप डॉक्टर की लापरवाही के चलते एक दिव्यांग महिला मरीज की हालत गंभीर हो गई। पेट दर्द की शिकायत पर महिला को पहले श्री राधा वल्लभ मेडिकल पर भर्ती किया गया, जहां फार्मासिस्ट अजय जोशी ने बिना उचित जांच और विशेषज्ञ की देखरेख के उसे दवाएं दी गईं। यही नहीं उसे दर्जनों इन्जेक्शन भी लगा दिये। ड्रिप भी चढ़ा दी। इलाज के दौरान हालत बिगड़ने पर परिजनों ने तत्काल महिला को राजकीय यज्ञनारायण अस्पताल (वाई एन) में भर्ती कराया। पीड़िता की पहचान मंजू गुर्जर के रूप में हुई है, जो जोगियों का नाडा क्षेत्र की निवासी हैं और दिव्यांग हैं। यज्ञनारायण अस्पताल में फिलहाल उनका इलाज जारी है।

स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि जोगियों का नाडा में स्थित एक मेडिकल स्टोर की आड़ में एक व्यक्ति लंबे समय से खुद को डॉक्टर बताकर इलाज कर रहा है। बिना डिग्री और रजिस्ट्रेशन के चल रही यह प्रैक्टिस अब सवालों के घेरे में है।

सूत्रों के अनुसार, क्लिनिक संचालक और वाई एन अस्पताल के एक डॉक्टर के बीच मोबाइल पर बातचीत हुई, जिसमें छोलाछाप डॉक्टर खुद को बचाने और मामले को शांत करने की कोशिश करता सुनाई दे रहा है।

इस घटना ने चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्रामीण और देहात क्षेत्रों में सक्रिय छोलाछाप डॉक्टरों पर अब तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं होना चिंता का विषय बना हुआ है। क्या विभाग पर कोई राजनीतिक या अन्य दबाव है, जो ऐसे मामलों पर आंख मूंदे हुए है?

मित्रों! यह कोई एक दिन की खबर नहीं अजमेर जिले में ऐसे दो सौ झोला छाप लोग हैं जो यहां वहाँ से दिखावटी कोर्स करके डॉक्टर कहलाने लगते हैं और मरीजों की जान के दुश्मन बन जाते हैं। दुख की बात तो यह है कि न सरकार इन झोला छापों के विरुध्द कोई पुख़्ता कार्यवाही करती है न चिकित्सा विभाग। जिला प्रशासन से तो वैसे ही कोई उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। सर्वहारा वर्ग के मरीजों की राजनेताओं को तो तब ही याद आती है जब वे मतदाता होते हैं। बाकी दिनों में तो उनका जीना मरना तड़पना कोई मायने नहीं रखता।

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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