सरकार के गले की हड्डी बन गई एसआई परीक्षा

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विधानसभा चुनाव में इसे रद्द करने को मुद्दा बनाया था, लेकिन अब नहीं जुटा पा का रही हिम्मत राजनीतिक नफा-नुकसान में अटका मामला, सरकार की मंशा कोर्ट ही निपटाए मामले को

ऐसा लगता है कि सब इंस्पेक्टर परीक्षा भाजपा सरकार के गले की हड्डी बन गई है। जो ना निगलते बन रही है और ना ही उगलते। यानी ना तो इसे वह रद्द करने की हिम्मत जुटा पा रही है और ना ही यह फैसला करने की परीक्षा रद्द नहीं होगी। हाईकोर्ट से बार-बार फैसला लेने के लिए वक्त मांगने के कारण यह चर्चा जरूर चल पड़ी है कि सरकार इस परीक्षा को रद्द करना नहीं चाहती। ऐसा लगता है कि सरकार इस मामले में फैसला हाईकोर्ट पर छोड़कर खुद के सिर से बला डालना चाहती है,ताकि दोनों ही परिस्थितियों,रद्द होने या ना होने, में वह यह कह सके कि ये अदालत का फैसला है।

इसमें कोई शक नहीं कि पिछले विधानसभा चुनावों में जिन मुद्दों ने भाजपा को बड़ी जीत जलाई थी, उसमें सब इंस्पेक्टर परीक्षा को रद्द करने और राजस्थान लोक सेवा आयोग यानी आरपीएससी के पुनर्गठन का मुद्दा भी शामिल था। इसने राज्य के युवा मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में ला दिया,जो कांग्रेस के राज में कई परीक्षाओं के पेपर लीक होने और फजीर्वाड़े के कारण निराश और भविष्य को लेकर चितिंत थे। उन्हें लगा कि भाजपा सत्ता में आई तो परीक्षाओं पर लगा ग्रहण हट जाएगा।

भाजपा नेताओं ने भी अपनी चुनाव सभाओं में सत्ता में आते ही एस आई भर्ती परीक्षा को रद्द करने और आरपीएससी का पुनर्गठन करने का भरोसा दिलाया। लेकिन सरकार बनने के डेढ़ साल बाद भी इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। एस आई परीक्षा को रद्द करने की सिफारिश एसओजी, एजी और मंत्रिमंडल उपसमिति तक कर चुकी है। लेकिन उसके बाद भी इस मामले को लटकाया जा रहा है,तो इसमें अब राजनीति के साथ ही श्रेय मिलने का भी सवाल खड़ा हो गया है।

विपक्ष में रहते भाजपा के कद्दावर नेता और अभी कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने इस मुद्दे को जमकर उठाया था। धरना दिया था। रैलियों निकाली थी। जब भाजपा की सरकार बनी और उसके बाद मंत्रिमंडल में कद के अनुसार पद नहीं मिलने पर भी किरोड़ी लाल मीणा के के विद्रोह तेवर बरकरार रहे। वो परीक्षा रद्द कराने के लिए डीजी और अपने से जूनियर मंत्री गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेडम से मिलने घर तक पहुंचे। तब भाजपा की गलियारो़ में यह चर्चा होती थी कि अगर परीक्षा को रद्द किया गया, तो इसका श्रेय किरोड़ी लाल मीणा ले जाएंगे।

इसलिए इस मामले को टाला जाता रहा। धीरे-धीरे मीणा भी इस मुद्दे पर मुखय नहीं रहे। फिर नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल ने इस मुद्दे को लपक लिया। पिछले दिनों जयपुर में बेनीवाल के धरने और उसके बाद हाईकोर्ट में सुनवाई से एक दिन पहले जयपुर में बड़ी रैली के कारण सरकार को ये लगा होगा कि अगर 25 मई को कोर्ट में परीक्षा रद्द करने की बात कही गई,तो महफिल बेनीवाल लूट ले जाएंगे।

फिर अब इस परीक्षा में जातिवाद की भी एंट्री हो चुकी है। आरोप लगाया जा रहा है कि एक जाति विशेष के अधिक अभ्यर्थियों के चुने जाने के कारण सरकार परीक्षा को रद्द नहीं करना चाहती है। इसके अलावा कई जातियों से जुड़े संगठन भी सरकार को समय-समय पर ज्ञापन भेज कर परीक्षा रद्द नहीं करने की मांग करते रहे हैं। 26 मई को महाधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद ने हाईकोर्ट में जो कुछ कहा उससे भी ये संकेत मिल रहे हैं कि सरकार परीक्षा रद्द करने से बचना चाहती है। प्रसाद ने कहा कि पहले लग रहा था कि इस भर्ती परीक्षा में आधे से अधिक यानि 400 से 500 सब इंस्पेक्टर फर्जी तरीकों से चुने जाने का शक था। लेकिन एसओजी जब तक सिर्फ 55 लोगों को गिरफ्तार कर पाई है।

भर्ती में 850 से ज्यादा अभ्यर्थियों का सवाल है। जाहिर है या तो भाजपा ने चुनावी में लाभ लेने के लिए पहले इस भर्ती परीक्षा को ज्यादा ही बदनाम कर दिया या फिर अब वह भावी राजनीतिक नुकसान से बचना चाहती है। इस साल होने वाले पंचायत चुनाव और नगरीय निकाय के चुनाव को भी परीक्षा रद्द करने में बाधा माना जा रहा है। क्योंकि युवाओं ने जिन दो वादों पर भाजपा को वोट दिया था, वह दोनों ही पूरे नहीं हुए हैं।

सरकार अब आरपीएससी के पुनर्गठन की भी बात नहीं कर रही है। जबकि चुनाव से पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष सीपीक्षजोशी ने कहा था कि सरकार बनते ही अगले दिन आरपीएससी को भंग कर दिया जाएगा। लेकिन अब यह तर्क दिया जा रहा है कि यह संवैधानिक संस्था है। इससे भंग नहीं किया जा सकता है। सवाल ये है कि जब विधानसभाओं को भंग किया जा सकता है। मंत्रियों को बर्खास्त किया जा सकता है, तो क्या संविधान में आरपीएससी जैसी संवैधानिक संस्थाओं को पुनर्गठन करने का कोई प्रावधान नहीं होगा।

हाईकोर्ट ने जब कल सुनवाई हुई,तो एजी राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि मुख्यमंत्री भजनलाल सरकार क्ष के नीति आयोग की बैठक में होने के कारण इस पर अंतिम निर्णय नहीं हो पाया और मंथन चल रहा है। सवाल यह है कि जब कई स्तर पर परीक्षा को रद्द करने की सिफारिश की जा चुकी है,तो सीएम को हां या ना की मुहर ही तो लगानी है। तकनीक के इस युग में भजनलाल शर्मा से संपर्क करने में क्या परेशानी थी। क्योंकि वह पूरे समय तो वह भी आयोग की बैठक में रहे नहीं होंगे। जाहिर है सरकार की नीयत मामले को टालते रहने की है। लेकिन हाईकोर्ट के जज समीर जैन ने कह दिया है कि 1 जुलाई को ठोस आधार पर भर्ती पर सरकार अपना अंतिम निर्णय बताएं।

देखना होगा उसे दिन क्या होता है । वेसे सरकार ने एस आई भर्ती परीक्षा पर फैसले के लिए चौथी बार हाईकोर्ट से समय मांगा है । हाई कोर्ट ने 21 फरवरी को 2 महीने का समय दिया था। फिर 5 मई में को सुनवाई हुई थी। सरकार ने कहा कि 13 मई को कैबिनेट सब कमेटी की बैठक है। इस पर कोर्ट ने 15 मह को फैसला बताने कहा। 15 मई को सरकार इस बहाने के साथ अदालत पहुंची कि आॅपरेशन सिंदूर के कारण बैठक नहीं हो सकी। तब कोर्ट ने 26 की तारीख दी। जो भी एक जुलाई की तारीख तक टल गई। यानिक्षसनी देओल के डायलॉग की तरह तारीख पर तारीख पर तारीख,मी लॉर्ड बस इंसाफ नहीं मिलता। इस मामले में भी ना तो चयनित अभ्यर्थियों को इंसाफ मिल पा रहा है और ना ही रद्द होने का इंतजार कर रहे युवाओं को।

लेकिन मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की छवि जरूर प्रभावित हो रही है। जो पहले ही पर्ची वाले मुख्यमंत्री के रूप में ख्याति प्राप्त हैं। अब कांग्रेस भी उनसे सवाल पूछ रही है कि क्या परीक्षा रद्द होने या ना होने की पर्ची भी दिल्ली से आने पर फैसला होगा।

एस आई परीक्षा में करीब 3 लाख 80 हजार अभ्यर्थी शामिल हुए थे। जिनमें से 20 हजार 359 पास हुए। साक्षात्कार के लिए 3 हजार 291 अभ्यर्थियों को बुलाया गया और 859 का चयन एसआई के लिए हुआ। चयनित 859 में से 55 को एसओजी ट्रेनिंग के दौरान आरपीए से गिरफ्तार कर चुकी है। जबकि आरपीएससी के दो पूर्व सदस्यों बाबू लाल कटारा और रामूराम रायका सहित कुल 70 आरोपी इस मामले में गिरफ्तार हो चुके हैं। चयनितों की ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है। लेकिन उनकी फील्ड पोस्टिंग पर हाईकोर्ट ने रोक लगा रखी है।

ओम माथुर

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