पुलिस तो सोई थी, वो तो वीडियो ने जगा दिया

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हिस्ट्रीशीटर तेजपाल की परेड निकाल और उसकी अवैध फैक्ट्री पर बुलडोजर चलाकर सबक तो सिखाया,पर ये श्रेय पुलिस का नहीं

ब्यावर पुलिस ने उस हिस्ट्रीशीटर तेजपाल उदावत को सबक सिखा दिया है,जिसने अपने डंपर चालक याकूब काठात की बेरहमी से पिटाई की थी। जिसे जेसीबी से उल्टा लटका कर बैल्ट और डंडे से मारा था और जख्मों पर नमक का पानी का छिड़काव किया था। पहले 25 मई को तेजपाल को गिरफ्तार कर ब्यावर और पिपलियाकलां गांव में उसकी परेड निकाली गई।

परेड में जिस तरह तेजपाल लंगड़ाकर चल रहा था, उससे साफ दिख यहा था कि पुलिस ने उसकी खासी मरम्मत की है। उसके बाद 26 मई को गुड़िया गांव में उस फैक्ट्री पर बुलडोजर चला दिया गया, जिसे आरोपी ने सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके बना रखा था। इसी फैक्ट्री में याकूब के साथ मारपीट की गई थी। पुलिस ने तेजपाल की अन्य अवैध कब्जे और बेनामी संपत्तियों की जांच भी शुरू कर दी है। इस मामले में अब तक पांच आरोपी पकड़े जा चुके हैं।

तेजपाल की परेड निकालना और उसकी अवैध फैक्ट्री को तोड़ने का मकसद लोगों में यह संदेश देना है कि पुलिस अपराधियों को बख्शेगी नहीं। तेजपाल ने जो क्रूरता याकूब के साथ की थी,उसे देखते हुए उस जैसे दुर्दांत अपराधी का इलाज जरूरी भी है। लेकिन सवाल ये है कि क्या पुलिस ने ये सब कुछ अपने दम पर किया ? क्या उसे इसका कुछ भी श्रेय मिलना चाहिए?

बिल्कुल नहीं। क्योंकि ब्यावर जिला पुलिस को तो डेढ़ महीने तक यही पता नहीं लगा कि उसके इलाके में ऐसी जघन्य वारदात हो चुकी है ।सोचिए,सात अप्रैल को हुई मारपीट का वीडियो अगर 24 मई को वायरल नहीं होता, तो पुलिस तो सोई हुई ही थी। जिस अपराधी पर जानलेवा हमला,अपहरण डकैती जैसे करीब एक दर्जन मामले दर्ज हो और जो बजरी माफिया से जुड़ा हो,क्या थाना पुलिस को उसकी गतिविधियों पर नजर नहीं रखनी चाहिए?

क्या पता रखती भी हो,लेकिन अनदेखी करने की कीमत हर माह पहुंच जाती हो। क्यों नहीं पुलिस अधीक्षक ने अब तक थाना स्टाफ पर कोई कार्रवाई नहीं की। पुलिस का काम कोई थाने में बैठकर रिपोर्ट दर्ज करना ही नहीं होता,बलिक अपने इलाके के अपराधियों और संदिग्ध लोगों की निगरानी के साथ उनके बारे में अपने सूत्रों से जानकरी लेना भी होता है। जिसमें ब्यावर और रायपुर पुलिस पूरी तरह से नाकाम रही।

सवाल यह भी है कि जब तेजपाल फैक्ट्री सरकारी जमीन पर कब्जा करके बना रहा था, तो संबंधित इलाके की पंचायत या नगरपालिका ने उसे रोका क्यों नहीं। क्यों नहीं उसके खिलाफ सरकारी जमीन पर कब्जा करने की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। जाहिर है तेजपाल के तार पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों से जुड़े हुए थे,इसलिए वह बेखौफ था। लेकिन एक वीडियो ने उसका खेल खराब कर दिया और हो सकता है जिस पुलिस से वह गलबहिया करता था, उसी को मजबूरी में उसे सबक सिखाना पड़ा हो।

अब ये दस्तूर बनता जा रहा है कि पहले अपराधियों का अपराध करते हुए ( बलात्कार तक के ) वीडियो वायरल होता है। फिर पुलिस उन्हें गिरफ्तार करती है और मारपीट कर ऐसे परेड निकालती है,मानो खुद ने अपराधियों पर काबू पाया हो। फिर अदालत में पेश करती है। इसके बाद उसके घर या फैक्ट्री पर बुलडोजर चलाया जाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा होते हुए यह सिलसिला राजस्थान तक पहुंच गया है। पुलिस का इकबाल तो तब बुलंद माना जाएगा,जब वह खुद ऐसे अपराधियों को अपने प्रयासों से रोकेगी और समाज और लोगों को लगेगा कि वह वाकई उनकी सुरक्षा कर रही है।

ओम माथुर

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