क्या देवनानी जी को सात दिनों में मिल गयी 581 होटलों की रिपोर्ट?
क्या रूफ टॉप रेस्टोरेंट चल रहे हैं नियमानुसार?
अजमेर के नाज होटल अग्निकांड के बाद विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी जी ने एक सप्ताह में नगर निगम के सुषुप्त अधिकारियों से होटलों की आॅन लाईन रिपोर्ट मांगी थी। अजमेर के प्राचीन परकोटे की 581 होटलों को चिन्हित किया गया था। रिपोर्ट का क्या हुआ यह नगर निगम जाने या फिर हमारे जागरूक नेता देवनानी जी हां, अलबत्ता इतना जरूर हुआ था कि नगर निगम ने अपने गोरखधंधे को छिपाने के लिए होटल संचालकों को नोटिस देना जरूर शुरू कर दिया था। इन नोटिसों के जवाबों का क्या हुआ?उन पर क्या कार्यवाही हुई यह भी जाँच का विषय है। यदि निगम के आला अधिकारियों ने इस दिशा में कोई व्यवहारिक और ठोस निर्णय लिया हो तो उसे पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक किया जाए।
मेरी सूचना तो ये है कि निगम के शातिर कारिन्दे दलालों के साथ मिलकर बहुत बड़ा खेल! खेल रहे हैं। क्या जवाब दिया जाए? कितना झूठ कैसे जाहिर किया जाए यह बताकर खाल बचाने के हुनर बता दिए गए हैं। होटलों के नक़्शे आधे से जियादा तो फर्जी हैं। जो सही हैं उनके हिसाब से मौके पर कुछ बना ही नहीं है। किसी भी अनिवार्य कानूनी शर्त का निर्वाह हुआ ही नहीं है मगर होटल धड़ल्ले से चल रहे हैं। दलालों! जन प्रतिनिधियों और अधिकारियों के फेविकोल वाले गठबंधन से सब लीपा पोती हो चुकी है।
जहाँ तक सम्मानीय देवनानी जी का सवाल है उनको अंधेरे में रखने के लिए काला चश्मा पहना दिया गया है। उनकी ईमानदारी को उनके विश्वास पात्र अधिकारी निगल गए हैं।
आज एक नए विषय का यहाँ खुलासा कर रहा हूँ। एक और खेल इस अजमेर में नियमों को धत्ता बता कर खेला जा रहा है। रूफ टॉप रेस्टोरेंट के नाम पर यहाँ सौ से ज्यादा रेस्टोरेंट बाकायदा संचालित हैं।
अजमेर ही नहीं जयपुर! कोटा! उदयपुर! जोधपुर! भीलवाड़ा सहित कई बड़े नगरों में नियम विरुद्ध रूफटॉप रेस्टोरेंट धड़ल्ले के साथ चल रहे हैं।
अब भजनलाल सरकार ने भवन विनियम 2025 में कड़े प्रावधान किए हैं। ये नियम पूरे राज्य के रूफ टॉप रेस्टोरेंट्स पर लागू होंगे।
हर रेस्टोरेंट के नीचे अलग से खुद की पार्किंग जरूरी होगी। रेस्टोरेंट में 75 फीसदी ओपन स्पेस करने का प्रावधान भी किया गया है। पूर्व में कोई नियम न होने के कारण आवासीय कॉलोनी में भी रेस्टोरेंट खुल गए थे।
अजमेर सहित लगभग सभी शहरों में साठ फीसदी से अधिक रूफटॉप ऐसे हैं जिनमें पार्किंग के लिए जगह नहीं है। ऐसे में वाहन सड़कों पर खड़े रहते हैं।
जब भी किसी रेस्टोरेंट में हादसा होता है तो बस जांच पड़ताल शुरू हो कर लीपा पोती हो जाती है। नए नियमों में साफ लिखा गया है कि हर रेस्टोरेंट को फायर एनओसी से लेकर आपातकालीन स्थिति होने पर अलग से आपातकालीन रास्ते होने चाहिए।
भजनलाल सरकार ने रूफटॉप रेस्टोरेंट के लिए कुछ और भी नियम लागू किए हैं। यह भूखंड बड़े शहरों में 24 मीटर और लघु व मध्यम शहरों में 18 मीटर होने चाहिए। इनसे छोटे भूखंडों वाले भवनों पर रूफ टॉप रेस्टोरेंट नहीं खुल सकते।
यहाँ महत्वपूर्ण नियम यह है कि अस्थाई ढांचे में भी स्टील अल्युमिनियम फ्रेम का उपयोग करना होगा। इसकी अधिकतम ऊंचाई 4 मी. ही होगी।
नगर निगम! नगर परिषद या नगर पालिका क्षेत्रों में यह नियम लागू हो चुके हैं। अब इस बात का फैसला स्थानीय निकाय को लेना है कि नियमोँ की पालना किस तरह से करवानी है।
यहाँ फिर एक बार बात दूँ कि सारे नियम गांधी छाप कागजों के नीच दब कर साँस तोड़ देते हैं। नाज होटल की तरह जब तक फिर कोई नया अग्नि कांड नहीं होगा तब तक इन नियमों की जाँच नहीं होगी। होगी भी तो फिर सिर्फ औपचारिकता पूरी होगी।
सुरेंद्र चतुर्वेदी
सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सियत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |
चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |