ममता कुलकर्णी पर घमासान: कब और कैसे बना किन्नर अखाड़ा?

0
(0)

इस बार का महाकुंभ खास है। सोशल मीडिया के जमाने का यह पहला महाकुंभ है। ऐसे में करीब हर दिन कुछ न कुछ वायरल हो रहा है। पूर्व अभिनेत्री ममता कुलकर्णी की एक तस्वीर भी वायरल हुई, जिसमें वे भगवा कपड़ों में नजर आ रही हैं। इस पर किन्नर अखाड़े में विवाद हो गया।

प्रयागराज महाकुंभ 2025 से आ रही कई खबरें देश भर में चर्चा का कारण बन रही हैं। अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाए जाने के बाद यह अखाड़ा भी सुर्खियों में आ गया। ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर का पद देने पर आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और किन्नर अखाड़े के संस्थापक ऋषि अजय दास के बीच टकराव के हालात बने।

साथ ही ममता कुलकर्णी को पद देने पर अखाड़े के अन्य संतों ने भी आपत्ति जताई। मामले में बढ़ते घमासान को देखते हुए ऋषि अजय दास ने अभिनेत्री ममता कुलकर्णी और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी दोनों को ही पद से हटा दिया। हालांकि, इसे लेकर भी मतभेद हैं। महामंडलेश्वर पद से हटाए जाने पर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने कहा कि अजय दास मुझे अखाड़े से निकालने वाले कौन होते हैं, 2017 में उन्हें ही अखाड़े से निकाल दिया गया था। वे अपने स्वार्थ के लिए ऐसा कर रहे हैं।

अब तक आप पढ़ रहे थे किन्नर अखाड़े में हो रहा विवाद, लेकिन इस अखाड़े की बनने की कहानी भी काफी रोचक है। इस अखाड़े को बने हुए सिर्फ नौ साल हुए हैं। यह सनातन धर्म का सबसे नया अखाड़ा है। 13 अक्टूबर 2015 को किन्नर अखाड़े की स्थापना की था। लेकिन, इसके पीछे लंबी लड़ाई थी, क्योंकि, किन्नर समाज को समाज समानता का दर्जा नहीं था। लोग उनके साथ अच्छा व्यवहार भी नहीं करते थे। 15 अप्रैल, 2014 को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण का ऐतिहासिक फैसला आया। जिसमें ट्रांसजेंडरों को उनके अधिकार दिए गए।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने किन्नर समाज के लोगों के जीवन में एक बड़े की आस दिखाई दी। इसके बाद आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने निर्णय लिया कि वह सनातन धर्म से जुड़कर एक किन्नर अखाड़े का निर्माण करेंगी। अप्रैल 2016 में बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में सिंहस्थ होने वाला था, इसकी तैयारियों जोंरो पर चल रही थीं। इसी बीच आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने सरकार को एक पत्र लिखा, जिसमें सिंहस्थ में किन्नर अखाड़े का कैंप लगाने के लिए जगह मांगी गई थी। यह पत्र जैसे ही खबरों में आया दूसरे अखाड़ों के संतों ने विरोध शुरू कर दिया। इस विरोध के बाद किन्नर अखाड़े को सिंहस्थ में कैंप लगाने की इजाजत मिली।

उज्जैन सिंहस्थ किन्नर अखाड़े का पहला कुंभ

सिंहस्थ 2016 में 22 राज्यों के किन्नर अखाड़े में पहंचे और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को आचार्य महामंडलेश्वर की गद्दी पर बैठाया गया। उज्जैन सिंहस्थ किन्नर अखाड़े का पहला कुंभ था। साल 2019 में जूना अखाड़े के साथ मिलकर किन्नर अखाड़े ने प्रयागराज में हुए अर्ध कुंभ में हिस्सा लिया। इसके बाद 2021 में हरिद्वार के कुंभ में भी यह अखाड़ा शामिल हुआ था। अब किन्नर अखाड़ा प्रयागराज कुंभ 2025 में भी शामिल है। प्रयागराज कुंभ में इस अखाड़े का कैंप सेक्टर 16 में लगा हुआ है, जबकि अन्य 13 अखाड़ों के शिविर सेक्टर 12 में हैं।

किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़ा में मर्ज है। इस हिसाब से अखाड़ों की कुल संख्या 13 ही है। लेकिन, ऋषि अजय दास का कहना है कि जूना अखाड़े ने एग्रीमेंट में किन्नर आखाड़ा लिखा है, इसका मतलब है कि किन्नर अखाड़े को 14वां अखाड़ा स्वीकर किया गया है। सनातन धर्म में 13 नहीं, 14 अखाड़े मान्य हैं।

खुद को बताया उपदेव, ऐसे किया शाही स्नान

साल 2016 के उज्जैन कुंभ में किन्नर अखाड़े को जगह तो मिल गई थी। लेकिन, अखाड़ा परिषद ने इनके शाही स्नान करने पर आपत्ति जता दी थी। ऐस किन्नर अखाड़े के संतों ने खुद को उपदेव बताते हुए शाही स्नान किया था। वहीं, 2019 में प्रयागराज अर्ध कुंभ में शाही स्नान को लेकर किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के अनुसार, 2019 में उनकी मुलाकात जूना अखाड़े के संरक्षक हरि गिरि महाराज से हुई। इस दौरान जूना अखाड़े के साथ अनुबंध किया। इस अनुबंध में तय किया गया कि कुंभ मेले में किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़े के साथ शाही स्नान करेगा। जूना अखाड़े की स्वीकृति के बाद अन्य अखाड़ों ने भी विरोध का विचार बदल लिया था।

किन्नर आखड़े का घमासन क्यों?

दरअसल, ममता कुलकर्णी के मामले में ऋषि अजय दास को आपत्ति हुई। उनका कहना था कि बिना किसी पूर्व जानकारी के ममता कुलकर्णी को पद दिया गया है। उसके ऊपर तमाम तरह के आरोप हैं। इसके अलावा किन्नर अखाड़े के सदस्य सनातन संस्कृति का पालन नहीं करते हैं। वे केवल सोशल मीडिया में आने के लिए कुंभ में आएं हैं।

महामंडलेश्वर लक्ष्मी ने क्या बोला?

अजय दास मुझे अखाड़े से निकालने वाले कौन होते हैं, 2017 में उन्हें ही अखाड़े से निकाल दिया गया था। वे अपने स्वार्थ के लिए ऐसा कर रहे हैं। इसके अलावा अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने भी महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के समर्थन में होने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि अजय दास कौन हैं? हम इन्हें नहीं जानते। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के साथ हैं।

किसकी पूजा करते हैं किन्नर?

किन्नर अखाड़ा शैव संप्रदाय से जुड़ा हुआ है। किन्नरों के इष्ट देव अर्धनारीश्वर और इष्ट देवी बहुचरा माता हैं। इन्हें मुर्ग वाली माता भी कहा जाता है। देश में किन्नरों की कुलदेवी बहुचरा माता का मुख्य मंदिर गुजरात के मेहसाणा में हैं। बहुचरा मां की पूजा के बाद ही किन्नर संत कोई कार्य शुरू करते हैं। हालांकि, कुछ किन्नर संत अपने आस्था के अनुसार मां काली और कामाख्या माता की भी पूजा करते हैं।

किन्नर अखाड़े को वैश्विक स्तर पर ले जाएंगे

किन्नर अखाड़े की संस्थापक और आचार्य महामण्डलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बताया कि, उनका इरादा किन्नर अखाड़े को वैश्विक स्तर पर ले जाने का है। बैंकॉक, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, सेंट फ्रांसिस्को, अमेरिका, हॉलैंड, फ्रांस और रूस सहित दुनिया भर के विभिन्न देशों से 200 से अधिक ट्रांसजेंडर लोगों को किन्नर अखाड़े में शामिल किया जाएगा। किन्नर अखाड़े से जुड़े ट्रांसजेंडर लोग विदेशों में अखाड़े की स्थापना करना चाहते हैं।

अखाड़े में साधु-साध्वी दोनों, पहनावा अलग

किन्नर अखाड़े में साधु और साध्वी दोनों होते हैं। हालांकि, इसका चयन उनकी व्यक्तिगत पसंद या गुरु द्वारा दी गई दीक्षा पर निर्भर करता है। कुछ किन्नर अखाड़े में शामिल होने के बाद पुरुषत्व को अपनाते हैं और साधु कहलाते हैं। वे भगवा वस्त्र धारण करते हैं, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। कुछ किन्नर अखाड़े में शामिल होने के बाद स्त्रीत्व को अपनाते हैं, वे साध्वी कहलाती हैं। इनका पहना सफेद वस्त्र होते हैं और धार्मिक गीतों का गायन करती हैं। वहीं, कुछ किन्नर ऐसे भी हैं जो न तो पुरुष और न ही स्त्रीत्व को अपनाते हैं। जबकि, कुछ किन्नर अपनी पसंद के अनुसार रंगीन वस्त्र भी पहनते हैं।

साधना ही सब कुछ

संत कोई भी उसका जीवन त्याग और समर्पण का होता है। ठीक ऐसा ही जीवन किन्नर साधु-साधवी जीते हैं। वह अखाड़े के नियमों और परंपराओं का पालन करते हैं। सुबह के स्नान के बाद भगवान की पूजा, धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं और फिर अखाड़े में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। इनमें दीक्षा समारोह, पिंडदान और भंडारा समेत अन्य आयोजन शामिल होते हैं। इसके अलावा समय-समय पर तीर्थ स्थलों की यात्रा भी करते हैं। इनका भोजन साधारण होता है। भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं। एक तरह से कहा जा सकता है कि उनके लिए साधना सब कुछ है।

कहां रहते हैं किन्नर अखाड़े के साधु-साध्वी?

किन्नर अखाड़े के ज्यादातर सदस्य अक्सर अखाड़ों या मठों में रहते हैं। यहां वे धार्मिक अध्ययन और पूजा- पाठ करते हैं। कुछ किन्नर अखाड़े के सदस्य अपने घरों में भी रहते हैं। हालांकि, अखाड़े की गतिविधियों में भाग लेते हैं। इसके अलावा कुछ अखाड़े द्वारा संचालित सामुदायिक भवनों में भी रहते हैं।

क्या किन्नर अखाड़ों में नागा साधु भी?

जी हां, नागा साधु भी किन्नर अखाड़े में शामिल हैं। नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को कुछ जरूरी मानदंडों को पूरा करना होता है। उसकी किन्नर समाज में आस्था होना या ट्रांसजेंडर होना जरूरी है। मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए, साथ ही गुरु की सहमति भी हो। इसके अलावा सांसारिक जीवन का त्याग कर अखाड़े के नियमों और परंपराओं का पालन करते हुए भगवान के मार्ग पर चलने के लिए तैयार हो।

किन्नर अखाड़े में कैसे शामिल हो सकते हैं?

हां, कोई भी व्यक्ति इस अखाड़े में शामिल हो सकता है। इसके लिए एक गुरु की तलाश करनी होगी जो अखाड़े में शामिल होने के लिए मार्गदर्शन कर सके। गुरु से अखाड़े के नियमों और परंपराओं के बारे में सीखने के बाद उनकी स्वीकृति से दीक्षा समारोह में भाग लेना होगा। दीक्षा के बाद नए जीवन की शुरूआत करनी होगी। दीक्षा के बाद कुछ परीक्षाएं होगी, जिनमें अखाड़े के नियमों, परंपराओं और धार्मिक ग्रंथों के बारे में बताना होगा। यहां सफल होने पर अखाड़े के प्रमुखों के साथ साक्षात्कार होगा। इस दौरान यह भी बताना होगा कि अखाड़े में शामिल होने का उद्देश्य क्या है।

अब कुछ जरूरी बातें?
किन्नर अखाड़े की स्थापना 13 अक्टूबर 2015 को उज्जैन में की गई।
अखाड़े की धर्म ध्वजा सफेद रंग की है, जिसका किनारा सुनहरे रंग का है।
जूना अखाड़े के साथ समझौता किया, जिसके तहत दोनों अखाड़ों की ध्वजा साथ पहराई जाती है।
महामंडलेश्वर बनने के लिए आचार्य या शास्त्री होना जरूरी होता है।
वेद-पुराणा का ज्ञान होना चाहिए, वेदांत की शिक्षा भी हो।
किसी ऐसे मठ से जुड़ा होना जरूरी जो जनकल्याण के लिए काम कतरा हो।
साथ ही अगर, कोई पहले से संन्यासी जीवन जी रहा है तो उसे भी महामंडलेश्वर बनाया जा सकता है। हालांकि, उसे अखाड़े के नियत और नीति पर खरा उतरना होगा।

क्या आप इस पोस्ट को रेटिंग दे सकते हैं?

इसे रेट करने के लिए किसी स्टार पर क्लिक करें!

औसत श्रेणी 0 / 5. वोटों की संख्या: 0

अब तक कोई वोट नहीं! इस पोस्ट को रेट करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

Leave a Comment