भारत वर्ष में कई त्योहार एवं उत्सव मनाए जाते हैं जिनमें से एक ताला नवमी है। ताल नवमी को महानंदा नवमी के नाम से भी जाना जाता है, यह भाद्रपद महीने में मनाया जाने वाला एक शुभ दिन है जो हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में मनाया जाता है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि यानी गुप्त नवरात्रि के अंतिम दिन यानी नवमी तिथि को श्री महानंदा नवमी पर्व मनाया जाता है। यदि किसी अज्ञात कारणों की वजह से अगर जीवन में सुख-समृद्धि, रुपया-पैसा, धन की कमी हुई हो, तो यह व्रत करना बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन विशेष रूप से उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में इस दिन का आयोजन किया जाता है। इस दिन, देवी दुर्गा के भक्त बड़े उत्साह के साथ उनकी पूजा करते हैं। देवी दुर्गा शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक हैं।
बुराइयों से लड़ने के लिए शक्ति और सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए महिलाओं द्वारा उनकी विशेष रूप से पूजा की जाती है। देवी दुर्गा की पूजा करने से बुरी आत्माओं पर विजय प्राप्त होती है। हिंदी में, दुर्गा का अर्थ एक ऐसी जगह या एक किला है, जिसे पार नहीं किया जा सकता है। इसका मतलब है कि देवी दुर्गा को अजेय माना जाता है।
दुर्गा का एक अन्य अर्थ है “दुर्गतिनाशिनी” जिसका अर्थ है कि कष्टों को दूर करने वाला। इस प्रकार, हिंदुओं का मानना है कि देवी दुर्गा अपने भक्तों को दुनिया की बुराइयों से बचाती हैं और उनके दुखों को भी दूर करती हैं। दुर्गा के नौ अवतार या रूप हैं, अर्थात्, शैलपुत्री, चंद्रघंटा, ब्रह्मचारिणी, स्कंद माता, कुष्मांडा, 1 कालरात्रि, महागौरी, कात्यायनी और सिद्धिदायिनी है। ताल नवमी पर, देवी दुर्गा के सभी रूपों की पूजा की जाती है।
महानंदा नवमी की पूजा विधि
महानंदा व्रत के दिन पूजा करने का खास विधान है। महानंदा नवमी से कुछ दिन पहले घर की साफ-सफाई करें।
नवमी के दिन पूजाघर के बीच में बड़ा दीपक जलाएं और रात भर जगे रहें। महानंदा नवमी के दिन ऊं हीं महालक्ष्म्यै नम: का जाप करें।
रात्रि जागरण कर ऊं ह्रीं महालक्ष्म्यै नम: का जाप करते रहें।
जाप के बाद रात में पूजा कर पारण करना चाहिए।
साथ ही नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को भोजन करा कुछ दान दें फिर उनसे आशीर्वाद मांगें। आशीर्वाद आपके लिए बहुत शुभ होगा।
महानंदा नवमी का महत्व
ऐसा माना जाता है कि ताला नवमी यचानि महानंदा नवमी के दिन व्रत तथा पूजा करने से घर के सभी दुख और क्लेश दूर हो जाते हैं। इस व्रत के मनुष्य को न केवल भौतिक सुख मिलते हैं बल्कि मानसिक शातिं भी मिलती है। इस व्रत को करने और मन से लक्ष्मी का ध्यान कर पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि आती है जो हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए लाभदायी होता है।
महानंदा नवमी से जुड़ी कथा
महानंदा नवमी व्रत की कथा के अनुसार एक बार एक साहूकार अपनी बेटी के साथ रहता था। बेटी बहुत धार्मिक प्रवृति की थी वह प्रतिदिन एक पीपल के वृक्ष की पूजा करती थी। उस पीपल के वृक्ष में लक्ष्मी जी का वास करती थीं। एक दिन लक्ष्मी जी साहूकार की बेटी से दोस्ती कर ली। लक्ष्मी जी एक दिन साहूकार की बेटी को अपने घर ले गयीं और उसे खूब खिलाया-पिलाया। उसके बाद बहुत से उपहार देकर बेटी को विदा कर दिया। साहूकार की बेटी को विदा करते समय लक्ष्मी जी बोली कि मुझे कब अपने घर बुला रही हो इस पर साहूकार की बेटी उदास हो गयी। उदासी से उसने लक्ष्मीजी को अपने घर आने का न्यौता दे दिया।
घर आकर उसने अपने पिता को यह बात बतायी और कहा कि लक्ष्मी जी का सत्कार हम कैसे करेंगे। इस पर साहूकार ने कहा हमारे पास जो भी है उसी से लक्ष्मी जी का स्वागत करेंगे। तभी एक चील उनके घर में हीरों का हार गिरा कर चली गयी जिसे बेचकर साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी के लिए सोने की चौकी, सोने की थाली और दुशाला खरीदी। लक्ष्मीजी थोड़ी देर बाद गणेश जी के साथ पधारीं। उस कन्या ने लक्ष्मी-गणेश की खूब सेवा की। उन्होंने उस बालिका की सेवा से प्रसन्न होकर समृद्ध होने का आशीर्वाद दिया।
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
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