कुम्भ में कुचले लोगों को मिला मोक्ष तो बाबा जी को कैसे मिलेगा?
कुम्भ से लौटने पर सपाट ब्लॉग
पाप तुम करो! धोए गंगा! किसको बेवकूफ बना रहे हो?
गंगा को.. धर्म को? खुद को? या दुनिया को?
प्रयागराज की जय! गंगा माता की जय!
महाकुंभ में नहाने के लिए मेरे एक पत्रकार मित्र अपने साथियों के साथ गए। उन्होंने कई दिनों तक अपने संस्मरण साझा किए। उनकी संवेदनाओं को भी नमन!
मैं भी कुंभ तो गया मगर मेरे अनुभव उतने धार्मिक नहीं रहे।
जन समन्दर गंगा नदी में गोते लगा रहा था। मैं जन समन्दर में। पापी पुण्य कमा रहे थे मैं अपने पाप गिन रहा था। गंगा में एक भी डुबकी नहीं लगाई। लगा कि मेरे पाप ज्यादा हैं। हो सकता है मेरे पापों से गंगा की पवित्रता पर असर पड़ जाए।
देश विदेश के करोड़ों धर्मात्मा लोग कुम्भ में मिले। साधू संत! अघोरी! किन्नर! राजनेता! विविध अखाड़ों के संत! हर कोई अपने पाप की गठरी धो कर पुण्य की गठरी भरने आये हुआ था। चारों ओर अथाह जन समन्दर और उसके सामने एक नाबालिग लगने वाली पावन और पवित्र नदी।
मैं कभी गंगा के घाटों को देख रहा था कभी उन धर्मात्माओं को! जिनकी मैली आस्था धुलने के लिए गंगा के घाटों पर सैलाब बन कर उमड़ रही थी। यदि वे सब धर्मात्मा ही थे तो उनको गंगा में नहाने की जरूरत क्या थी। संत रविदास जो जूतियों की मरम्मत करके जीवन यापन करते थे । जिनको गंगा में नहाने की धार्मिक इजाजत नहीं थी। उनकी कटौती में स्वयं गंगा जल चला आया था। जिनके लिए कहा गया कि मन चंगा तो कटौती में गंगा।
यदि डुबकियाँ लगाने वाले लोग पापी थे तो माँ गंगा के घाट क्या धोबी घाट हैं जहाँ पापों की ड्राईक्लीनिंग होती है?
क्षमा चाहूँगा उन धर्मात्माओं से! जो पुण्य कमाने के लिए सिर्फ़ गंगा स्नान को ही अंतिम सोपान समझते हैं! मेरी माँ ने तो मुझे बताया था कि पुण्य तो सत्कर्मों से कमाए जाते हैं।
गंगा माता में डुबकी लगाने का बहुत मन था। हां बहुत मन! मगर मैं माँ के पवित्र जल का स्पर्श करने का साहस भी नहीं कर पाया। मुझे पता था कि मैं पापी हूँ! अधम पापी! मेरे पापों का धुल पाना मुझे सम्भव नहीं लग रहा था! डुबकी लगाता तो सारे पाप पवित्र जल में तैरने लगते। पता नहीं किस धर्मात्मा के चिपक जाते। पुण्य की जगह वह मेरे पाप साथ ले जाता!
दूसरी तरफ यह भी हो सकता था कि करोड़ों पापियों के पाप जल में तिरोहित होने के बाद मेरे पापी बदन से आ चिपकते! चौबे जी छब्बे जी बनने की कोशिश में दुब्बे जी बन जाते।
कुम्भी पाक नर्क की कल्पना हमारे गरूड़ पुराण में की गई है। कुम्भीपाक एक नरक का नाम है। यह एक ऐसा नर्क है जहां वे लोग जाते हैं जो किसी की जमीन हड़प लेते हैं या किसी ब्राह्मण की हत्या करते हैं। इस नर्क में उनकी आत्मा को आग से धधकती रेत में फेंक दिया जाता है।
मुझे अनावश्यक रूप से लगा कि महाकुंभ में पता नहीं कितने लोग कुम्भी पाक नर्क के हकदार होंगे। कितने अन्य नर्कों के? क्या उनके पापों ने गंगा को मैला नहीं किया होगा?मारे इसी डर से नहीं नहाया!
मित्रों! मैंने देखा असंख्य लोग निर्वस्त्र हो रहे थे गंगा माँ में डुबकियाँ लगाने के लिए इस खुशफहमी में कि उनके पाप बैठे ठाले धुल जाएंगे। बिना सत्कर्मों के!
मौनी अमावस पर कई श्रद्धालुओं की भीड़ ने एक दूसरे को कुचल कर अपने पापों से मुक्ति पाई। दुर्भाग्य शाली थे गंगा में नहा कर पुण्य नहीं कमा पाए! मौनी मावस पर मौन हुई इन आत्माओं के लिए किसी बागेस्वर धाम के नामी गिरामी बाबा जी ने कह दिया कि कुम्भ में कुचल कर मरे लोगों को मोक्ष मिल गई।
भक्तों को तो मोक्ष मिल गई बाबा जी! आपको कब और कैसे मिलेगी?अमित शाह जी!धनखड़ जी! को तो नहीं मिली? कुम्भ में डुबकियाँ लगाने तो वह भी गए थे। उनको तो किसी ने नहीं कुचला?
बाबा जी! आपको बता दूं कि वी.आई. पी. लोगों को कभी इस पद्धति से मोक्ष नहीं मिलती! मोक्ष के हकदार तो सिर्फ़ गरीब श्रद्धालु ही होते हैं। भीड़ में आम लोग कुचले जाते हैं। वी आई पी तो न सीमाओं पर मरते हैं न सड़कों पर! उनको मोक्ष तो सत्ता सुख की प्राप्ति में ही मिलता है। भीड़ में कुचली जनता को मोक्ष तो मिल जाती है तिरंगा नसीब नहीं होता।
एक बार फिर माफी चाहता हूँ कि मैं कुंभ से बिना अपने पाप धोए लौट आया हूँ। मुझे तसल्ली है कि कम से कम माँ गंगा को मैंने मैला नहीं किया।