क्या भाजपा में वरिष्ठ नेताओं को रास नहीं आ रहा राज्यों में नया नेतृत्व
पहले भाजपा शासित दो राज्यों के वरिष्ठ मंत्रियों के लिए दो बयान पढ़िए
पहला बयान- राजस्थान के कृषि मंत्री डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा का है। उन्होंने कल जयपुर में कहा कि समय मिलावट का है। हम हां करते जाएंगे, तो रिश्ते लंबे चलेंगे। अब हां जी के दरबार में ना जी करेगा, वो मरेगा। मेरी हां कहने की आदत नहीं है। लेकिन जो कहता हूं,सच कहता हूं। मुझे इस बात का दर्द है 5 साल तक मैने विपक्ष की भूमिका निभाई। लेकिन पिछली सरकार के समय बीजेपी आॅफिस में मुझे पत्रकार वार्ता तक नहीं करने दी गई। लेकिन मैं सड़क पर खड़ा रहा। उसके आधार पर हम सत्ता में आए। जब मुद्दे मरते हैं और परिणाम नहीं निकलता तो मैं भी मुरझा जाता हूं। उस राज में भी अपमानित किया गया और इस राज में भी अपमान हो रहा है।
दूसरा बयान- हरियाणा के ऊर्जा, परिवहन एवं श्रम मंत्री अनिल विज का है। उन्होंने कल अपने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि सैनी जब से मुख्यमंत्री बने हैं, तब से उड़नखटोले पर हैं और यह सिर्फ उनकी नहीं बलिक,सभी विधायकों और मंत्रियों की आवाज है। जिस दिन से मुख्यमंत्री बने हैं। उड़नखटोले से नीचे नहीं उतरते। नीचे उतरे, तो जनता के दुख-दर्द को दिखे।
मीणा और विज में कई समानताएं हैं। दोनों भाजपा के वरिष्ठ नेता है और कई विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। मीणा छह विधानसभा और दो लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। जबकि विज सातवीं बार विधायक बने हैं। दोनों को राजस्थान और हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले और परिणाम आने के बाद तक मुख्यमंत्री पद का दावेदार तक माना जा रहा था।
मीणा के मन में सीएम बनने की आकांक्षा थी, तो विज ने तो चुनाव के दौरान खुलेआम अपनी दावेदारी की थी। लेकिन दोनों ही कुर्सी से दूर रहे। दोनों को ही उनकी वरिष्ठता के आधार पर मंत्रालय भी नहीं मिले। राजस्थान में पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा को और हरियाणा में दूसरी बार विधायक बने सैनी को दिल्ली से पर्ची भेजकर मुख्यमंत्री बनाया गया। यानी दोनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत पंसद माने जा सकते हैं। ऐसे में दोनों नेताओं की बयानबाजी ये संकेत तो दे रही है कि राजस्थान और हरियाणा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में नए नेतृत्व के प्रति असंतोष और कुंठा है।
इसमें कोई शक नहीं की किरोड़ी लाल मीणा ने जनहित से जुड़े मुद्दों पर लंबा संघर्ष किया है और उन्हें सड़क का जुझारू नेता माना जाता है। चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस राज में हुई एसआई भर्ती परीक्षा को लेकर बड़ा आंदोलन किया था और इसे रद्द करने की मांग करते रहे हैं। पेपर लीक के कई सबूत भी उन्होंने एसओजी को दिए। उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा सरकार बनने के बाद यह परीक्षा रद्द हो जाएगी। लेकिन अब यह तय हो गया है कि राज्य सरकार इस परीक्षा को रद्द नहीं करने जा रही है। इसके अलावा भी ऐसे कई मुद्दे थे, जो मीणा कांग्रेस सरकार में उठाते रहे। लेकिन भाजपा सरकार आने के बाद भी उनका समाधान नहीं हुआ है।
जाहिर है उनके मन में इसकी पीड़ा है। लोकसभा चुनाव में वो अपने दौसा सीट पर अपने भाई को भी नहीं जितवा सके थे। इस पर उन्होंने कहा था कि उन्हें अपनों ने ही हरवाया है। पिछले साल जून में इस्तीफा देते हुए मीणा ने कहा था कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को सात लोकसभा सीटें जिताने का भरोसा दिलाया था। लेकिन वह उसमें नाकाम रहे। इसलिए पद छोड़ रहे हैं हालांकि उनका इस्तीफा आज तक स्वीकार नहीं किया गया है।
भाजपा ने पिछले डेढ़ साल में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ऐसे चेहरों को मुख्यमंत्री पद पर बैठाया, जिनकी उम्मीद किसी को नहीं थी। इसे भाजपा में नया नेतृत्व तैयार करने की कवायद माना जा रहा है। लेकिन राजनीतिक क्षेत्रों में यह भी कहा जा रहा कि मोदी और शाह अपने समर्थकों को राज्यों में बैठाकर खुद को मजबूत कर रहे हैं। इसी के चलते वो उनके साथ कदमताल नहीं करने वाले राज्यों के प्रभावी और जमीन से जुडे़ नेताओं को किनारे भी कर रहे हैं। इसके चलते भाजपा शासित राज्यों में अफसरशाही के हावी होने की खबरें भी आती रही है।
राजस्थान में भी कई मंत्री और विधायक अफसरशाही के दबदबे की बात कहते रहे हैं। लेकिन मीणा की तरह खुलकर बोलने की हिम्मत किसी में नहीं है। वसुंधरा राजे भी हां में हां नहीं मिलाने का नतीजा भुगत रही है। भाजपा के नेतृत्व को इस बात पर ध्यान देना होगा कि उसके वरिष्ठ नेता क्यों इस तरह के बयान सार्वजनिक रूप से दे रहे हैं। जबकि उसे अनुशासित और ऐसे मुद्दों को पार्टी मंच पर उठाने वाली पार्टी ही माना जाता है। तो, क्या वाकई पार्टी में अब हां में हां मिलाने वालों की कद्र रह गई है?