अजमेर में दो बांग्लादेशियों की पकड़ के बाद अभियान को और तेज करने की जरूरत

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अजमेर पुलिस बांग्लादेशियों को जिस तरह से खदेड़ने के मूड़ में आ गई है उसे देखते हुए लग रहा है कि अजमेर शहर में रहने वाले अधिकांश बांग्लादेशी बहुत जल्दी वापस अपने मायके चले जायेंगे।

हाल ही में अजमेर पुलिस कप्तान वंदिता राणा ने अपनी टीम तैनात कर दरगाह क्षेत्र में धर पकड़ शुरू की। अजमेर शहर के एडिशनल एस.पी. हिमांशु जांगिड़ ने संवेदनशील होकर खाना बदोशों को जकड़ना शुरू किया। कई पकड़े गए मगर उनमें से दो ही बांग्लादेशी गैर कानूनी तरीके से पकड़ में आ सके।

यहाँ बता दूं कि अजमेर में लंबे समय से सैकड़ों बांग्ला देशी अपनी पहचान छिपा कर रह रहे हैं। स्थानीय लोगों की मदद से ये लोग आसानी से जीवन यापन कर रहे हैं।

कहने में भले ही मेरी बात कुछ कट्टर किस्म के लोगों का जायका खराब कर दे मगर जांच की जाए तो ये अवैध विदेशी कुछ प्रभावशाली लोगों के घर पनाह लिए हुए हैं। महिलाएं यहां घर की सभी जरूरतों को पूरा करती हैं तो मर्द बाजार की जरूरतों को पूरा करते हैं।

बांग्लादेशी सीमाओं पर अजमेर के कई लोग एजेंट के रूप में सक्रिय है जो पैसा लेकर सीमाओं के जरिए अवैध घुसपैठ करवाते हैं। ये एजेंट ग्राहक की जरूरतों के मुताबिक बांग्लादेश के लोगों को सीमा पार से प्रवेश करवा लेते हैं।

अजमेर में कुछ लोग तो बांग्लादेश से युवा दम्पत्तियों को प्राथमिकता देते हैं। क्यों? इस सवाल का उत्तर आप स्वयं भी समझ सकते हैं। दरगाह क्षेत्र में रहने वाले कई प्रौढ़ लोग तो इन युवा दम्पत्तियों का अंक गणित ही बिगाड़ देते हैं।

दरगाह क्षेत्र ही नहीं, सोमलपुर, राती डांग और वैशाली नगर में आपको कई घरों में रह रहे बांग्लादेशी मिल सकते हैं।

शादी समारोह में चाहें लाईट उठा कर बारात में चलने का काम हो या बर्तन मांझने का या फिर टैंट का काम अधिकांश मजदूर बांग्लादेशी ही मिलेंगे। इनकी आम तौर पर बोलचाल की भाषा बांग्ला ही होती है। भाषा सुनकर सहज रुप से हम सोचते हैं कि ये लोग कलकत्ता या वहीं के आस पास वाले लोग हैं। पूछने पर यह अपना पता भी कलकत्ता का ही बताते हैं मगर असलियत में यह बांग्लादेश से ही तारलुक रखते हैं।

मजेदार बात यह है कि युवकों के नाम अधिकतर सोनू, मोनू , सन्नी जैसे होते है जिनसे अचानक सुन कर असली नाम का पता ही नहीं चल पाता। सन्नी सन्नू बेग हो जाता है।

अजमेर की पुख़्ता जानकारी नहीं किंतु बड़े महानगरों में बांग्लादेशी बालाएं भी होटलों में उपलब्ध होती हैं।

मैं पहले भी बता चुका हूं कि अब बांग्लादेशी महिलाएं और पुरुष सिर्फ़ दरगाह क्षेत्र से ही वाबस्ता नहीं। वे शहर के अन्य मोहल्लों में भी लोगों के यहाँ काम करती हैं। समारोह स्थलों! क्लीनिकों! और निजी संस्थानों में ये लोग काम कर रहे हैं। क्योंकि यह लोग सस्ती दर पर भी काम करने को तय्यार हो जाते हैं और नहीं करने वाले काम करने में भी नानुकुर नहीं करते इसलिए अक़्सर इनको रोजगार का कोई टोटा नहीं पड़ता।

लालची लोग अपने निजी स्वार्थों से इनके रिहायशी दस्तावेज भी बनवा देते हैं। दरगाह क्षेत्र में फर्ज़ी दस्तावेजों को दिखा कर कई बांग्ला देशी अजमेरी बने हुए हैं।

विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी लम्बे समय से अजमेर से इन बांग्लादेशियों को निकाले जाने की पैरवी करते रहे हैं। पुलिस भी बराबर गाहे बगाहे पकड़ धकड का अभियान छेड़ती रहती है मगर सच तो यह है कि ये अभियान गर्म तवे पर पानी की बूंद साबित होती हैं। इसके लिए पुलिस को एक स्थाई टीम बनानी चाहिए जिसका काम ही अवैध रूप से रह रहे विदेशियों को खदेड़ना हो।

यदि ऐसा नहीं हुआ तो कोई भी बड़ा अपराध यहां कारित हो सकता है।

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