नहीं तो पूरे शरीर में हो जाएगा लकवा
गुइलेन बैरे सिंड्रोम नसों को प्रभावित करता है
लक्षणों में पैर और हाथों में कमजोरी शामिल है
समय पर इलाज से बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है
गुइलेन बैरे सिंड्रोम कोई खतरनाक बिमारी नहीं है। इस बीमारी से शरीर की नसें प्रभावित होती हैं। शरीर में एंटीबॉडीज बनती है, जो नसों को डैमेज करने का काम करती है।
नई दिल्ली: महाराष्ट्र में न्यूरोलॉजिकल बीमारी गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के 127 संदिग्ध मरीज अब तक मिल चुके हैं। वहीं, इस बीमारी से अब तक दो लोगों की मौत भी हो चुकी है। कोरोना वायरस के बाद यह पहला वायरस है, जिसने देश में इतनी दहशत फैला दी है कि बड़ी तादाद में लगातार लोग प्रभावित हो रहे हैं। खास तौर पर महाराष्ट्र के पुणे में इसके एक के बाद एक मामले सामने आते जा रहे हैं।
ऐसे में आखिर क्या है यह सिंड्रोम, क्या यह एक तरह का वायरस है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो सकता है और इसके लक्षण क्या हैं। इसे कैसे पहचानें, क्या यह जानलेवा है। इन सभी सवालों का जवाब के लिए लोकल 18 की टीम ने अपोलो हॉस्पिटल इंद्रप्रस्थ के वरिष्ठ डॉक्टर निखिल मोदी से बातचीत की।
उन्होंने बताया कि जीबीएस यानी गुइलेन बैरे सिंड्रोम कोई नई बीमारी नहीं है। यह बहुत पुरानी बीमारी है, लेकिन इसका नया वेरिएंट लोगों पर अटैक कर रहा है। जिसको लेकर अभी भी पूरी तरह से रिसर्च हो नहीं सकी है। उसके बाद ही इस बीमारी के बढ़ते हुए घातक रूप के बारे में कुछ कहा जा सकता है, लेकिन इस बीमारी के बारे में बात करें तो जीबीएस में नसें प्रभावित होती हैं।
जिस वजह से शरीर में एंटीबॉडीज बनती है, जो नसों को डैमेज करने का काम करती है। नसें कमजोर होने की वजह से नसों में सेंसेशन कम हो जाता है। मसल्स को कंट्रोल करने वाली नसें पूरी तरह से प्रभावित हो जाती हैं। जिस वजह से पैरों से लकवा शुरू होता है और गर्दन तक जाता है। इससे लोगों को घबराने की आवश्यकता नहीं है।
गर्दन के नीचे का हिस्सा होता है प्रभावित
डॉ. निखिल मोदी ने बताया कि गुइलेन बैरे सिंड्रोम में गर्दन के ऊपर का हिस्सा काम करता है। इंसान का दिमाग काम करता है, लेकिन वह अपने नीचे के किसी भी हिस्से को हिला डुला नहीं पता है। क्योंकि हाथ पैरों की नसों पर इस बीमारी का असर पड़ता है, जिससे मसल्स कमजोर हो जाती हैं। नस कमजोर हो जाती हैं और पूरी तरह से शरीर लकवा ग्रस्त हो जाता है। यह एक तरह का आॅटोइम्यून डिसआॅर्डर है।
क्या जा सकती है जान?
डॉ. निखिल मोदी ने बताया कि गुइलेन बैरे सिंड्रोम बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है। अगर समय पर इसके लक्षणों को पहचान लिया जाए। अगर समय पर इसके लक्षणों को नहीं पहचाना गया तो इस बीमारी का असर चेस्ट की मसल्स पर पड़ गया तो ऐसे में मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लग जाती है। तब उसे वेंटिलेटर पर रखा जाता है और वेंटिलेटर पर भी अगर उसे आराम नहीं मिला तब मौत होने की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि हर उम्र के लोगों को यह सिंड्रोम हो सकता है।
जानें क्या होते हैं लक्षण
डॉ. निखिल मोदी ने बताया कि अगर आपको चलने में अचानक से आपके पैर लड़खड़ाने लग रहे हैं। आपके पैर और हाथों में नसें कमजोर हो रही हैं। आपको लग रहा है कि आपको हाथ और पैर हिलाने में दिक्कत हो रही है। बेजान पन महसूस हो रहा है। हाथ और पैर में तो तुरंत अपने स्थानीय डॉक्टर से मिले और इसका इलाज कराएं। क्योंकि यह लक्षण कहीं ना कहीं गुइलेन बैरे सिंड्रोम के हो सकते हैं।
इस तरह होता है इलाज और बचाव
डॉ. निखिल मोदी ने बताया कि इस बीमारी में मरीज के शरीर से जो एंटीबॉडीज होती हैं, उनको हटाया जाता है। प्लाज्मा एक्सचेंज किया जाता है और इसके अलावा इम्युनोग्लोबुलिन चढ़ाया जाता है। उन्होंने बताया कि बीमारी में मात्र एक ही बचाव है। वह यह है कि इसके लक्षणों को पहचाने और अपने इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत रखें। क्योंकि जितना आपका इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होगा। उतना ही आप बीमारियों से लड़ सकेंगे और जल्दी रिकवर कर सकेंगे।