ये व्यवस्थाएं तो पूरे महाकुंभ के लिए जरूरी थी

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हादसे के बाद की गई नई व्यवस्थाएं तो ऐसे आयोजनों के शुरू में हो जानी चाहिए

महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर हुए हादसे के बाद आज उत्तरप्रदेश सरकार ने नई व्यवस्थाएं लागू कर दी। लेकिन ये वो व्यवस्थाएं हैं, जो हादसे के बाद नहीं बलिक मेला शुरू होने के साथ ही की जानी चाहिए थी। जैसे मेले में आने जाने के रास्ते अब अलग कर दिए गए हैं यानि वन वे। मेला क्षेत्र पूरी तरह नो व्हीकल जोन घोषित कर दिया गया है यानी किसी भी गाड़ी को प्रवेश नहीं मिलेगा। सभी वीवीआईपी पास रद्द कर दिए गए हैं। ये पास और इन्हें लेकर आने वाले लोग ऐसे मौकों पर सबसे बड़े बाधक होते हैं. जिनके कारण आए दिन व्यवस्थाएं बिगड़ती है।

क्या 45 करोड़ लोगों के आने की संभावना वाले दुनिया के अब तक के सबसे बड़े आयोजन में यह व्यवस्थाएं लोगों की जान जाने के बाद की जानी चाहिए थी? यह तो प्रारंभिक व्यवस्थाएं हैं, जिन्हें 13 जनवरी को महाकुंभ शुरू होने के साथ ही कर दी जानी चाहिए थी। इसके अलावा राज्य सरकार ने 2019 में कुंभ में तैनात रहे दो अधिकारियों आईएएस आशीष गोयल और भानू गोस्वामी को भी प्रयागराज बुला लिया है। जाहिर है ऐसे बड़े आयोजनों में जो अधिकारी पहले रह चुके होते हैं, उनका अनुभव काम में लिया जाना चाहिए और यह काम भी हादसे के बाद नहीं, मेला शुरू होने से पहले हो जाना चाहिए था।

जाहिर है कल हुए हादसे के लिए प्रशासनिक लापरवाही जिम्मेदार रही है। लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं की जहां लाखों लोग इकट्ठा होते हैं, वहां हादसे की आशंका हमेशा रहती है। हो सकता है योगी सरकार ने भरपूर इंतजाम किए हो जिन्हें न्यूज चैनल और अखबार रोजाना खबरों और विज्ञापनों में महीनों से दिखा रहे हैं)। लेकिन जब भीड़ बेकाबू होती है, तो उसे रोकना नामुमकिन होता है।

मौनी अमावस्या पर त्रिवेणी में ही अमृत स्नान कर पुण्य कमाने की आकांक्षा श्रद्धालुओं में भी होगी,क्योंकि वह गंगा के तट पर बनाए गए घाटों पर स्नान करने के बजाय संगम नोज पर ही जाना चाहते थे और शायद यही हादसे की सबसे बड़ी वजह भी थी। आस्था ऐसी ही होती है। वह कोई तर्क या बात नहीं मानती। श्रद्धालुओं के मन में शायद यह था कि त्रिवेणी पर स्नान करने से ज्यादा पुण्य मिलेगा,सारे पाप धुल जाएंगे। गंगा तट पर स्नान करने से ये नहीं होगा।

हालांकि न्यूज चैनलों के कवरेज और स्वतंत्र पत्रकारों एवं प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के वीडियो अलग-अलग कहानी बताते हैं। लेकिन यह तय है कि जिस वक्त रात 1 से 2 के बीच यह भगदड़ मची, उस समय मौके पर सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे। श्रद्धालुओं के ऐसे कई वीडियो वायरल हैं,जिसमें वो कह रहे हैं कि जिस वक्त भगदड़ मची, उस वक्त संगम नोज पर आने और जाने के रास्ते अलग-अलग नहीं थे। ऐसे में लोग आमने-सामने हो गए और बेरीकेट्स टूटने से जब भगदड़ मची, तो किसी को भागने का मौका नहीं मिला और ऐसे में जो लोग वहां सोए हुए थे वह कुचल गए। इन श्रद्धालुओं ने यह भी कहा कि वहां पुलिस नहीं के बराबर थे वाले यानी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था नहीं थी।

सवाल ये भी है कि जब मौनी अमावस्या पर सुबह अखाड़ों को शाही स्नान करना था, तो फिर संगम नोज पर रात को लोगों को क्यों रुकने दिया गया? क्यों उन्हें वहां से हटाया नहीं गया? खुद प्रयागराज डिवीजनल कमिश्नर विजय विश्वास पंत का वह वीडियो भी खूब वायरल हो रहा है, जिसमें खुद माइक पर आशंका जता रहे हैं और श्रद्धालुओं से कह रहे हैं कि जल्दी स्नान कीजिए। बहुत लोग आएंगे और जाएंगे। इससे भगदड़ मचने की संभावना है। यानी उन्हें इस बात का अहसास था कि भीड़ बहुत ज्यादा हो गई है। लेकिन फिर भी उन्होंने फोर्स बढ़ाकर उसे नियंत्रित करने की कोशिश नहीं की।

श्रद्धालु कई वीडियो में यह भी बता रहे हैं कि प्रशासन की जब मर्जी हुई, उन्होंने पांटून पुल बंद कर दिए। जिससे लोगों को कई किलोमीटर लंबा पैदल घूम कर आना पड़ा। हादसे के समय संगम के आसपास से इसी कारण लोग बाहर नहीं निकल सके, क्योंकि पांटून पुल बंद थे। भीड़ नियंत्रण करने में प्रशासन की चूक का खामियाजा 30 लोगों को अपनी जान देकर भुगतना पड़ा है। साथ ही उसने उत्तर प्रदेश सरकार की व्यवस्थाओं पर भी अंगुली उठाने का मौका तो दे दिया है। जिस कुंभ में करीब 8000 करोड़ से ज्यादा खर्च करके पुख्ता इंतजामों का दावा किया जा रहा था, वहां अगर हादसा हो जाए तो फिर विपक्ष को कहने का मौका तो मिलेगा ही।

महाकुंभ में हादसे से पहले भी होते रहे हैं। लेकिन इस बार जिस तरह का दावा योगी सरकार और उनका प्रशासन बार-बार कर रहा था,उसे देखते हुए श्रद्धालु भी बेखौफ थे और फिर विज्ञापनों के जरिए लोगों को महाकुंभ में आमंत्रित भी किया जा रहा था। लोगों को भी लग रहा था कि रहा पर्याप्त बंदोबस्त में वे आसानी से महाकुंभ स्नान कर सकेंगे। कई दिनों से सब व्यवस्थित चल भी रहा था, लेकिन मौनी अमावस्या के हुए हादसे ने इस आयोजन पर दाग लगा दिया।

ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री संजय निषाद का ये बयान की इतने बड़े आयोजन में छोटी-मोटी घटना हो जाती है, उन लोगों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है, जिनके प्रियजनों की मौत इस हादसे में हो गई है। पक्ष और विपक्ष यानी भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल ऐसे हादसों पर राजनीति नहीं करने की बात तो कहते हैं, लेकिन दोनों ही भरपूर राजनीति करते हैं। हादसे का असली कारण न्यायिक जांच के बाद ही सामने आएगा, लेकिन कुछ अफसरों पर इसका ठीकरा फोड़कर असली दोषियों को बचाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। श्रद्धालुओं को भी यह समझना होगा कि ऐसे भारी भीड़ बड़े आयोजनों में संयम व अनुशासन बहुत जरूरी होता है।

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