डुबकी लगाने के साथ-साथ प्रयागराज की पवित्र भूमि पर यज्ञ करने का अवसर भी मिला। यह सब महादेव की कृपा से ही संभव।
संपूर्ण मेला क्षेत्र में लोहे की चादरें, ताकि मिट्टी में वाहन न फंसे। श्रद्धालुओं को भी सुविधा।
मोदी-योगी की टीम का सेवा भाव।
मेरी महाकुंभ की यात्रा का 28 जनवरी को दूसरा भाग प्रस्तुत है। 27 जनवरी को लिखे पहले भाग में मैंने संगम घाट पर डुबकी लगाने और मेला क्षेत्र की व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी दी। आज मैं बताना चाहता हूं कि 25 जनवरी को सुबह सुबह संगम घाट पर स्नान और पूजा करने के बाद मैंने अपनी पत्नी अचला मित्तल के साथ मेला क्षेत्र के सेक्टर पांच स्थित रामानंदाचार्य मार्ग स्थित श्री शंकराचार्य आध्यात्म विद्या सेवा संस्थानम के शिविर में यज्ञ भी किया।
जब करोड़ों लोगों की आवक के कारण गंगा यमुना और सरस्वती नदी के संगम स्थल पर डुबकी लगाना मुश्किल हो रहा है, तब प्रयागराज की पवित्र भूमि पर करीब दो घंटे तक हवन करने का अवसर प्राप्त होना बताता है कि हमारे समूह पर महादेव की कृपा रही। यज्ञ के दौरान हमें जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी प्रज्ञानानंद महाराज का सान्निध्य भी प्राप्त हुआ। यज्ञ में संस्कृत के विद्वान पंडितों ने मंत्रों के साथ पूजा सामग्री की आहुति भी दिलवाई। स्वामी जी का कहना रहा कि संगम घाट पर स्नान के बाद यज्ञ करना बहुत बड़ी बात है। यज्ञ के बाद हमारे समूह के सभी सदस्यों में आध्यात्मिक ऊर्जा नजर आई। चूंकि 25 जनवरी को एकादशी थी, इसलिए अधिकांश सदस्यों ने उपवास भी रखा।
महाकुंभ की इस भीड़ में सभी व्रतधारियों को सात्विक भोजन भी प्राप्त हुआ। संगम घाट पर स्नान के समय जो थोड़ी परेशानी हुई, वह सब यज्ञ के बाद अपने आप समाप्त हो गई।
लोहे की चादरें
गंगा नदी के किनारे ही कोई 13 किलोमीटर क्षेत्र में साधु संतों और धार्मिक संस्थानों के शिविर बनाए गए है। एक तरह से नया शहर बसाया गया है। चूंकि यह क्षेत्र गंगा नदी के बहाव वाला ही है, इसलिए मिट्टी भी चिकनी है। करीब साठ फीट चौड़े मार्ग बनाए गए है। मिट्टी में मोटर वाहन न फंसे इसके लिए लोहे की मोटी चादरे बिछाई गई है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि 13 किलोमीटर में फैले मेला क्षेत्र में कितनी चादरे बिछाई होंगी। इन चादरों की वजह से ही श्रद्धालुओं को भी पैदल चलने में सुविधा हो रही है। लोहे की इन मोटी चादरों पर भी मालवाहक वाहन और ई रिक्शा दौड़ रहे हैं।
मेला क्षेत्र में जगह जगह खाद्य पदार्थों की दुकानें लगी हुई है। सभी दुकानों पर श्रद्धालुओं की भीड़ है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पुलिस कर्मियों से लेकर अनेक कार्मिकों का व्यवहार श्रद्धालुओं के प्रति सम्मानजनक है। यदि कोई साधु महात्मा व्यवस्थाओं को लेकर नाराजगी भी दिखाता है तो सरकारी कार्मिक खासकर सुरक्षा कर्मी बेहद शालीनता के साथ व्यवहार करते हैं। महाकुंभ के आयोजन में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार का तो योगदान है ही, लेकिन मॉनिटरिंग का काम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार कर रही है।
केंद्र सरकार के सहयोग के बगैर महाकुंभ की इतनी व्यवस्थाएं नहीं की जा सकती है। देशभर के साधु संतों और धार्मिक संस्थानों को मेला क्षेत्र में अपना शिविर लगाने के लिए भूमि का आवंटन किया गया है। हजारों की संख्या में शिविर लगे हुए हैं, इनमें सरकार की ओर से चौबीस घंटे मुफ्त बिजली पानी की सप्लाई हो रही है। इतना ही नहीं सरकार ने बड़े बड़े पंडाल और टेंट वाले मकान बनाकर दिए है। इन्हीं शिविरों में आम श्रद्धालु भी ठहर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक 27 जनवरी तक 15 करोड़ श्रद्धालुओं ने गंगा नदी में डुबकी लगाई है। 144 वर्ष बाद होने वाले इस महाकुंभ की शुरूआत मकर संक्रांति पर्व पर 13 जनवरी से हुई थी। समापन 26 फरवरी महाशिवरात्रि पर्व पर होगी। अनुमान है कि 50 करोड़ से भी ज्यादा श्रद्धालु इस महाकुंभ में शामिल होंगे।