अजमेर भाजपा में देवनानी और सुरेश रावत ने मनवाया लोहा

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देवनानी के रमेश सोनी और सुरेश रावत के प्रजापति बने अध्यक्ष
पवन जैन को बनाया गया पचेर्बाजी का शिकार

अजमेर और पुष्कर! दो धार्मिक नगरी हैं! पुष्कर ब्रह्मा जी की पुण्य स्थली तो अजमेर ख़्वाजा साहब की! इतिहास में यह सम्राट पृथ्वीराज चौहान की नगरी है?

ये दोनों नगरी वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी और सुरेश रावत की तपस्या स्थली के रूप में विस्तार ले रही हैं। इन दोनों नगरी के ताले की चाबी इन्ही दो नेताओं के हाथ में हैं। यह बात फिर एक बार भाजपा के जिला और देहात अध्यक्ष मनोनयन में साबित हो चुकी है।

“हाथी के पांव के नीचे सबका पांव” यह कहावत देवनानी और रावत ने सिद्ध कर दी है। यूँ कहने को केंद्रीय राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी भी अपनी नेता गिरी का लोहा मनवाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते मगर अंत समय में उनकी हवा निकल जाती है। उन्होंने पिछले दिनों एक चैनल के कार्यक्रम में आयोजकों को इतनी खरी खोटी सुनाई थी कि बेचारे अपना सा मुंह लेकर बैठे रह गए। नाराजगी माननीय देवनानी जी को लेकर थी। शायद उनको ऐसा लगा था कि आयोजकों ने देवनानी जी का कुर्ता उनकी धोती से जियादा सफेद दिखा दिया था।

चौधरी जी तो इतने तैश में थे कि वे मंच पर ही इतने क्रोधित हुए कि दर्शक भी हैरान हो गए। उस समय तो उनका रोद्र रूप देखकर ही ये तय हो गया था कि वे देवनानी जी के मोहरे रमेश सोनी को किसी कीमत अध्यक्ष नहीं बनने देंगे।

भाजपा जिला और देहात अध्यक्ष जब बनाये जा रहे थे तब कई दिग्गजों की सियासत दांव पर लग गई थी। भागीरथ चौधरी! पूर्व अध्यक्ष ब्यावर के देवी शंकर भूतड़ा! पूर्व अध्यक्ष बी पी सारस्वत! सहित कई नेताओं ने ब्यावर के पवन जैन पर दांव लगा रखा था। देवनानी जी सिर्फ़ और सिर्फ़ वर्तमान शहर अध्यक्ष रमेश सोनी के लिए अपनी प्रतिष्ठा सुरक्षित रखे हुए थे। मंत्री सुरेश रावत जीतमल प्रजापति के लिए मंत्र पढ़ रहे थे।

ब्यावर के विधायक शंकर सिंह रावत बस पवन जैन देहात अध्यक्ष न बन पाए इसके लिए तलवारें हवा में लहरा रहे थे। मसूदा के युवा नेता आशीष साँड़ तो अलग अंदाज में देहात अध्यक्ष बनने की फिराक में थे। उन्होंने तो बाकायदा चार विधायकों का लिखित समर्थन तक ले लिया था।

जयपुर के दिग्गजों तक उन्होंने अपना माया जाल फैला लिया था। जब उनको लगा कि उनका नाम दौड़ में पिछड़ गया है तो उन्होंने पवन जैन को ठिकाने लगाने में अपना पूरा ध्यान लगा दिया। पवन जैन को विवादास्पद घोषित करने के लिए उनकी मीडिया ट्रायल तक हो गई। जमीनों की रजिस्ट्रियों के हवाले से उनको बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई।

सियासती खेल के पीछे का सत्य

इस पूरे सियासती खेल के पीछे का सत्य आईये कुछ इस अंदाज में भी जान लें।

अजमेर शहर अध्यक्ष के पद पर रमेश सोनी को निर्वरोध चुना गया, शहर अध्यक्ष बनने के लिए जो भी नाम चर्चा में थे उनमें ना दद्दू, ना राजेश घाटे, ना सम्पत सांखला कोई आवेदन करने ही आगे नहीं आए। जबकि लग ऐसा रहा था कि रमेश सोनी को अध्यक्ष बनने से रोकने के लिए सब मिलकर किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। पर शायद सभी अपनी औकात के आगे मजबूर हो गए थे।

यहाँ सबसे बड़ी अचरज की बात ये है कि हमेशा ही शहर अध्यक्ष हो या कोई मोर्चा अध्यक्ष हो उनकी नियुक्ति में “उत्तर” और “दक्षिण” में भारी धमाल मचता है और इस धमाल में हैड मास्टर साहब की भूमिका भी बहुत जोरदार रहती है और कई बार तो वो उत्तर दक्षिण दोनों ध्रुवो को भिड़ाकर बाजी भी मार जाते हैं।…..लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नजारा देखने को नहीं मिला।

आश्चर्य जनक रूप से दद्दू, अनीता भदेल जैसे कद्दावर नेताओं का पार्टी कार्यालय में ऐसे महत्वपूर्ण मौके पर, प्रदेश अध्यक्ष की मौजूदगी में भी नदारद रहना भविष्य की राजनीती में उथल पुथल मचा सकता है।

बात देहात अध्यक्ष की करी जाए तो इस पद पर आश्चर्य जनक रूप से जीतमल प्रजापति को 60 वर्ष की आयु सीमा को लांघ कर भी निर्वाचित कर दिया गया। देहात अध्यक्ष के लिए प्रजापति सहित कुल 6 आवेदन प्राप्त हुए थे। आशीष सांड, पवन जैन, शक्ति सिंह रावत, महेंद्र मंझेवला, सुभाष वर्मा में से सबसे मजबूत पवन जैन और आशीष सांड को माना जा रहा था।

पवन जैन पूर्व जिलाध्यक्ष देवी शंकर भूतडा और पूर्व जिलाध्यक्ष बी पी सारस्वत के दम पर अपनी दावेदारी कर रहे थे। और इन दो कद्दावर नेताओं के समर्थन के कारण ही जैन की दावेदारी मजबूत मानी भी जा रही थी। ये बात सच है कि प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के अजमेर पहुँचने से पहले तक पवन जैन का ही नाम अध्यक्ष के लिए फाइनल था पर अचानक सोशल मीडिया पर चले एक मैसेज ने पवन जैन का बना बनाया खेल बिगाड़ दिया और राठौड़ को कार्यालय में पहुँचते ही अपनी पर्ची बदलनी पड़ गई। परिणाम..पर्ची प्रजापति के नाम खुल गई।

दोस्तों! मुझे मेरे सूत्रों ने जानकारी दी कि आशीष सांड के समर्थन में 6 में से 4 विधायकों ने समर्थन पत्र लिखकर सांड को दे रखे हैं। मेरी नजर में तो इन विधायकों से अध्यक्ष बनाये जाने हेतु समर्थन पत्र लेना भी कोई छोटी बात नहीं है। इन विधायकों के समर्थन पत्रों के आधार पर ही सांड अपने आपको अध्यक्ष मान कर चल रहे थे।

कुल मिलाकर इन अध्यक्ष की नियुक्ति ने सिद्ध कर दिया कि शहर में देवनानी और देहात में सुरेश रावत की ही चवन्नी चल रही है।

क्यों कि प्रजापति की पैरवी केवल सुरेश रावत ही कर रहे थे और इस नाम को कोई भी सीरियस नहीं मान रहा था।

वही सोनी केवल देवनानी जी के बलबूते पर ही मैदान में डटे हुए थे। शहर अध्यक्ष के लिए उत्तर से देवनानी, दक्षिण से अनीता भदेल और किशनगढ़ से भागीरथ चौधरी की आम सहमति से ही अध्यक्ष बनाया जाना था। भागीरथ जी और अनीता जी दोनों ही रमेश सोनी को अध्यक्ष नहीं बनाना चाहते थे। दोनों ने राजेश घाटे का नाम चलाया था परन्तु आश्चर्य की बात है कि घाटे ने आवेदन तक ही नहीं किया। और रमेश सोनी निर्विरोध अध्यक्ष बना दिए गए।

मित्रों! इस बार भाजपा के कथित निर्वाचन में यह तो सिध्द हो गया है कि अजमेर जिले में कई राजनेताओं के सियासती दबदबे की इज्जत खतरे में पड़ चुकी है। यदि भजन मंडली के विस्तार में अजमेर को उचित सम्मान नहीं मिला तो कई नेताओं की रही सही जाजम भी उठ जाएगी। जो लोग इस उम्मीद से नेताओं से जुड़े हैं कि क्या पता उनका नेता या नेतन मंत्री बन जाए वे सब मंत्री नहीं बनाए जाने पर पाला बदल लेंगे। बाकी तो ब्रह्मा जी ही जाने। जय झूले लाल की ! जय ब्रह्मा जी की!

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