अजमेर शहर की भाजपा राजनीति वन-वे हुई, विरोधियों ने मैदान छोड़ा, विधानसभा चुनावों में खिलाफत करने वालों का हश्र देख अब कोई पंगा लेने को तैयार नहीं
रमेश सोनी फिर शहर भाजपा के अध्यक्ष बन गए। उन्हें अध्यक्ष बनना ही था। कोई रूकावट या रोड़ा नहीं था। मैदान खाली था। आखिर विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के सबसे करीबी और उनके सबसे बड़े मोहरे हैं। जब देवनानी ने पिछले कार्यकाल में सिर्फ विधायक रहते हुए ही सोनी को आसानी से अध्यक्ष बनवा दिया था, तो इस बार तो वह विधानसभा अध्यक्ष हैं और फिलहाल अजमेर में एकतरफा बल्लेबाजी कर रहे है। विरोधी पक्ष का कोई भी गेंदबाज उन्हें बॉल डालने को ही तैयार नहीं है।
विधानसभा चुनाव में विरोध करने वालों को जिस तरह उन्होंने बिग हिट लगाकर मैदान से बाहर किया है। काम धंधे के लिए तरसा दिया। उसके बाद उनके बाकी विरोधियों में भी अब उनका खुला विरोध करने की हिम्मत नहीं रही। आखिर अभी चार साल और इस पद पर रहेंगे और उनसे पंगा लेने का मतलब होगा कि चार साल दुख पाना। इससे बेहतर तो यही है कि खामोश रहो। मन ही मन कुढ़ते रहो। कुछ मत बोलो। शहर की राजनीति कभी भी इतनी एकतरफा नहीं रही, जितनी अभी है। भले ही शासन कांग्रेस का रहा हो या बीजेपी का।
असमंजस इस बात पर था कि सोनी को अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के लिए रिजर्व रखकर किसी और को शहर अध्यक्ष बनाया जाए या नहीं। लेकिन फिर फैसला ये हुआ की कहीं माया मिली ना राम वाली कहावत चरितार्थ ना हो जाए। इसलिए फिलहाल सोनी को ही शहर अध्यक्ष बनाने का निर्णय हुआ। अगर निकट भविष्य में एडीए अध्यक्ष पर नियुक्ति हुई, तो सोनी से शहर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिलवा देवनानी उन्हें एडीए में शिफ्ट करा देंगे और उनकी जगह किसी और शिष्य को शहर अध्यक्ष बनवा देंगे। कारण ये भी है कि एडीए अध्यक्ष के लिए कई नेता अपने-अपने समर्थकों के नाम आगे बढ़ा रहे हैं। इनमें सांसद भागीरथ चौधरी, विधायक अनिता भदेल, ओंकारसिंह लखावत आदि शामिल हैं। ऐसे में राह आसान नहीं होगी।
सोनी के अध्यक्ष बनने की संभावना पहले ही थी। लेकिन जिस तरह देवनानी के विरोधियों ने अध्यक्ष के चुनाव में मैदान खाली छोड़ा, वह चौंकाने वाला है। इससे तो देहात अध्यक्ष का चुनाव ही ठीक रहा जहां काम से कम छह दावेदार तो सामने आए। बताया गया है कि चुनाव अधिकारी प्रसन्नजीत सिंह ने खुद धर्मेंद्र गहलोत,संपत सांखला,प्रियशील हाडा जैसे कुछ मीडिया में घोषित दावेदारों को फोन करके नामांकन करने के लिए बुलाया था। लेकिन कोई भी नहीं आया। हाडा की पत्नी बृजलता हाडा नगर निगम के मेयर है, इसलिए उनके शहर अध्यक्ष बनने का सवाल वैसे नहीं उठता था। उन्हें है 2023 में अध्यक्ष पद से हटाया ही इसलिए गया था, कि उनकी पत्नी मेयर बन गई है। हालांकि उन्हें हटाया भी करीब ढाई साल बाद था। तब तक नगर निगम और भाजपा संगठन पति-पत्नी के पास ही था।
धर्मेंद्र गहलोत खुद शहर अध्यक्ष बनना चाहते थे।
बता दूं हाडा की जगह सोनी को अध्यक्ष बनवाने के बाद ही धर्मेंद्र गहलोत और देवनानी के संबंधों में दूरियां शुरू हुई थी। क्योंकि गहलोत खुद शहर अध्यक्ष बनना चाहते थे। ये दूरियां विधानसभा चुनाव और उसके बाद गहलोत के कुछ समर्थकों पर एडीए और नगर निगम की कार्यवाही के बाद बिल्कुल बिगड़ गए। ऐसे में गहलोत शहर अध्यक्ष का चुनाव लड़कर अपनी बचीकुशी इज्जत भी नहीं गंवाना चाहते थे। गहलोत ने पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में देवनानी पर कटाक्ष करते हुए लिखा था कि उन्होंने एक स्वघोषित प्रोफेसर को टास्क दे रखा है कि, इसे तो मैं किसी भी कीमत पर नहीं बनने दूंगा। उनका आशय उन्हें अध्यक्ष बनने से रोकने के लिए देवनानी की कोशिश की ओर था।
संपत सांखला, लखावत के करीबी है और लखावत शहर की राजनीति से लंबे समय से लगभग दूर ही है। कुछ समय पहले जिस तरह गहलोत और भदेल में नजदीकी बढ़ी थी, यह माना जा रहा था कि शायद अध्यक्ष से चुनाव में उनका नाम बढ़ाकर वो समर्थन कर सकती है। लेकिन तेरह मंडलों में दक्षिण के दो मंडलों को छोड़कर शेष मंडलों में उनको कोई समर्थन नहीं था। ऐसे में अगर गहलोत चुनाव लड़ते और वोटिंग होती तो बहुत फजीहत हो जाती।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने सोनी के नाम की घोषणा करते हुए उनकी तारीफ की और कहा कि वह अपने पहले कार्यकाल में भी अच्छे अध्यक्ष साबित हुए हैं और सबको साथ लेकर चलते हैं। लेकिन भाजपा के पूर्व पार्षद और देवनानी से प्रताड़ित जेके शर्मा की सोशल मीडिया पोस्ट सोनी की ईमानदारी और कार्यशाली पर ही सवाल उठा रही है। शर्मा ने पोस्ट में सोनी पर प्रहार करते हुए लिखा कि क्या पार्टी के मुखिया का चयन ऐसा होता है जो जाति का कमजोर हो। उस पर आपराधिक आरोप लगे हुए थे और जिसका जीवन वन टू का फोर करने में रहा है।
जिनके स्कूटर/ कंधे पर बैठकर घूमे। उनको भी निपटा दिया।
क्या ऐसा चरित्रवान पार्टी का अध्यक्ष बनने की काबिलियत रखता है। शर्मा ने देवनानी पर भी हमला करते हुए लिखा कि शहर में एक छत्र चलाने की कोशिश हो रही है। हो भी क्यों नहीं। एक व्यक्ति बाहर से आता है और आकर यहां की राजनीति में कईयों को निपटाकर पुरोधा बन जाता है। मजे की बात देखो, जिनके स्कूटर/ कंधे पर बैठकर घूमे। उनको भी निपटा दिया। इस पार्टी में कोई घूघरा से आगे ना चला जाए, इसलिए पार्टी अध्यक्ष का चयन ऐसा होता है। शर्मा ने लिखा कि सनातन का उपयोग करने वाले लोग ही सबसे ज्यादा सनातन के विपरीत कार्य करतते हैं। जिसका लेखा-जोखा सभी के पास है। शर्मा को भी देवनानी ने विधानसभा चुनाव में अपने विरोध में काम करने के कारण पार्टी से बाहर कराया था और वापस उनके एंट्री पार्टी में नहीं होने दी।
जबकि वह केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र सिंह यादव के खासमखास समझ जाते हैं। इसलिए, शर्मा देवनानी और उनके समर्थकों के खिलाफ सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते रहते हैं। एक भाजपा नेता का कहना था कि शर्मा की कई बातें सच्ची और सटीक होती है। लेकिन हम उनका समर्थन नहीं कर सकते, क्योंकि पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जा सकता। यूं सबको साथ लेकर करने वाली बात का खंडन तो विधायक भदेल खुद कर चुकी है। जब उन्होंने सरेआम सोनी पर आरोप लगाया था कि एकतरफा मत चला करो। सोनी विधानसभा अध्यक्ष देवनानी के साथ ही नजर आते हैं,भदेल के साथ उन्हें नहीं देखा जाता।
बहरहाल, भाजपा के संगठन चुनावी अजीब हैं। चुनाव के नाम पर वार्ड, मंडल, जिला अध्यक्षों, सभी को निर्विरोध निर्वाचन के नाम पर मनोनीत किया जा रहा है। अगर चुनाव कराने हैं, तो क्यों अजमेर देहात के लिए मतदान नहीं करा लिया गया। जहां आधा दर्जन दावेदारों ने नामांकन किया था। लेकिन नामांकन के साथ ही सभी से विड्रोल फॉर्म भरा लिए गए। निर्विरोध निर्वाचन का विवाद नहीं सुलझने के कारण ही खुद प्रदेश अध्यक्ष को अजमेर आना पड़ा। कई स्थानों पर मंडल अध्यक्षों के निर्वाचन को लेकर विधायकों का विरोध भी दर्ज हुआ है इसके चलते कुछ मंडल अध्यक्षों को तो हटा दिया गया है तथा कुछ के बारे में प्रदेश ने रिपोर्ट में मंगाई है।
यानी भाजपा आंतरिक लोकतंत्र की कितनी ही बातें करें लेकिन हकीकत यही है कि वहां भी पहले से ही तय लोगों को निर्विरोध निर्वाचन के नाम पर थोपा जा रहा हैं और विधायक अपनी मर्जी से अपने सर्मथकों को कमान दिला रहे हैं। जैसे मंडल और शहर जिला अध्यक्ष निर्विरोध बनाए जा रहे हैं। वैसे ही प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष भी निर्विरोध ही बनेंगे। लेकिन फिर भी बीजेपी, कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए आंतरिक लोकतंत्र का दावा करती रहेगी।