अजमेर के एलिवेटेड रोड़ बनाने वाली कम्पनी का अदालत ने निकाला खाया पिया

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अधिकारियों की हलक को खंगाला
मुख्य सचिव को दिए जांच के आदेश

इसे कहते हैं किसी का खाया पिया निकलवा देना। जिस कम्पनी ने अजमेर की एलिवेटेड रोड़ को बना कर एक अरब से जियादा रुपये डकार लिए थे अदालत ने उसे लेकर फैसला सुना दिया है। करोड़ों के इस घपले में जितने भी अधिकारी शामिल थे उनको भी अदालत ने बेनकाब कर दिया है।

यह ऐतिहासिक फैसला राजस्थान वाणिज्यिक न्यायालय ने अजमेर एलीवेटेड रोड प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं पर दिया है। इसमें तीखी टिप्पणी करते हुए राजस्थान सरकार के चीफ सेक्रेटरी को जाँच के आदेश दिए हैं। यही नहीं ठेकेदार द्वारा बकाया माँगी गई राशि को निरस्त कर दिया है।

दरअसल अजमेर एलीवेटेड रोड प्रोजेक्ट की निर्माण कंपनी सिम्फोनिआ एंड ग्राफिक ने इस अदालत में अपनी बकाया लंबित पड़ी राशि को मांगते हुए वाद दायर किया था। दायर वाद अब उल्टा कम्पनी के गले मे कोबरा सांप बन गया है।

अदालत ने निर्णय देते हुए सरकार और ठेकेदार के बीच हुए करार व भुगतान के संदर्भ में गंभीर वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं पर एक विस्तृत और कठोर आदेश जारी किया है। यह मामला न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश के लिए सरकारी परियोजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक ज्वलंत उदाहरण बन चुका है।

आईये आपको मामले की पृष्ठभूमि बता दूं।

एलीवेटेड रोड प्रोजेक्ट, जिसकी आधारशिला 8 मई 2018 को रखी गई थी, राज्य के बुनियादी ढांचे को सुधारने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इस परियोजना की अनुमानित लागत ?220 करोड़ थी। लेकिन परियोजना के चार साल बाद भी, यह अधूरी और विवादों में घिरी हुई है।

न्यायालय के जो आदेश मेरे पास है उसमें परियोजना की देरी, गुणवत्ता, और वित्तीय अनियमितताओं को लेकर कई गंभीर टिप्पणियां की गईं हैं। ठेकेदार और प्रशासनिक अधिकारियों पर दोषारोपण करते हुए अदालत ने स्पष्ट कहा है कि यह मामला जनता के धन के दुरुपयोग और प्रशासनिक विफलता का एक उदाहरण है।

न्यायालय के आदेश में जो प्रमुख अनियमितताएं बताई गई हैं वह भी जान लें।

1. परियोजना में देरी और अधूरी स्थिति:-

परियोजना की शुरूआत के चार साल बाद भी, “स्लिपलेन”, “सर्विस रोड” और “अतिक्रमण हटाने” जैसे कार्य अधूरे हैं। इसके बावजूद, परियोजना का उद्घाटन 5 मई 2023 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा किया गया। अदालत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि अधूरी परियोजना का उद्घाटन न केवल प्रशासनिक विफलता को दशार्ता है, बल्कि जनता को गुमराह करने का भी प्रयास है।
2. फर्जी प्रमाणपत्र और मेजरमेंट शीट में गड़बड़ी:-
न्यायालय ने पाया कि ठेकेदार द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों में गंभीर त्रुटियां थीं। 42वें रनिंग बिल में स्लिपलेन और सर्विस रोड के अधूरे कार्य को पूरा दिखाया गया था। इसके अलावा, मेजरमेंट शीट में बार-बार बदलाव किए गए और अनुचित भुगतान का दावा किया गया।

3. मूल्य वृद्धि
परियोजना की प्रारंभिक लागत ?220 करोड़ थी लेकिन मूल्य वृद्धि के नाम पर करोडो रुपए अतिरिक्त स्वीकृत कर भुगतान करा लिए गए, जबकि कार्य समय पर पूरा ही नहीं हुआ था। अदालत ने इस प्रक्रिया को “अनावश्यक वित्तीय भार” करार दिया।

4. दोगुना भुगतान और वित्तीय अनियमितताएं:-
अदालत ने पाया कि ठेकेदार को “Defect Liability Period”  के दौरान दो बार भुगतान किया गया। इस अतिरिक्त भुगतान ने परियोजना के वित्तीय प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े किए। ठेकेदार को ?36.41 करोड़ की अतिरिक्त राशि दी गई, जिसका कोई औचित्य प्रस्तुत नहीं किया गया।

5. अतिक्रमण और ट्रैफिक की समस्या:-
परियोजना के अंतर्गत अतिक्रमण हटाने और उपयोगिताओं को स्थानांतरित करने में देरी ने आम जनता को ट्रैफिक जाम और अन्य असुविधाओं का सामना करने पर मजबूर किया। अदालत ने इसे प्रशासन की अक्षमता का प्रतीक बताया।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, “सरकारी धन का दुरुपयोग और परियोजना में पारदर्शिता की कमी न केवल जनता के हितों को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि यह देश की प्रशासनिक और वित्तीय प्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़ा करती है।”

ब्लैकलिस्टिंग पर आदेश:-

अदालत ने ठेकेदार को फिलहाल ब्लैकलिस्ट न करने का निर्देश दिया है लेकिन स्पष्ट कहा है कि यदि 90 दिनों के भीतर मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू नहीं की गई, तो आदेश स्वत: समाप्त हो जाएगा।

न्यायालय ने राज्य सरकार और संबंधित विभागों को निर्देश दिया है कि:
– सभी लंबित कार्यों को 90 दिनों के भीतर पूरा किया जाए।
– परियोजना से जुड़े अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच सांठगांठ की गहन जांच की जाए।
– भविष्य की परियोजनाओं के लिए एक स्वतंत्र निरीक्षण समिति गठित की जाए।

इसके अलावा अदालत ने मुख्य सचिव को तीन महीने के भीतर विस्तृत रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। उन्होंने ठेकेदार द्वारा प्रस्तुत सभी दस्तावेजों की गहन जांच के आदेश दिए हैं।

इसके अलावा परियोजना के लंबित कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने का निर्देश दिया है।

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