आज पूरा देश नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की 126 वीं जन्म जयन्ती ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मना रहा है। 16 जुलाई 1921 को इग्लैंड से भारत लौटने पर बम्बई में सुभाष बाबू की पहली मुलाकात महात्मा गांधी से होती है। इस पहली मुलाकात में ही देश की आजादी के लिए सुभाष बाबू और महात्मा गांधी बीच बातचीत से ही पता चलता है कि देश के दो महान नेताओं के दृष्टिकोण में कितनी भिन्नता और समानता है। उस वक्त 24 वर्षीय सुभाष बाबू देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर ‘इंडियन सिविल सेवा’ जैसे प्रतिष्ठित नौकरी से त्यागपत्र दे चुके थे।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस से जुड़े रोचक तथ्य
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। वे जानकीनाथ बोस और प्रभावती देवी की नौवीं संतान थे। बड़े होकर, सुभाष चंद्र बोस एक होनहार छात्र थे, जिन्होंने कलकत्ता (आज कोलकाता के नाम से जाना जाता है) के प्रेसीडेंसी कॉलेज से दर्शनशास्त्र में बीए किया। उनके पिता ने उन्हें सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के लिए इंग्लैंड भी भेजा। उन्होंने अंग्रेजी में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए और कुल मिलाकर चौथे स्थान पर रहे। 1921 में उन्होंने भारतीय सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया और भारत लौट आए।
अधिकारियों के साथ उनके लगातार टकराव ने उन्हें भारत में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा विद्रोही के रूप में बदनाम कर दिया। नेताजी ने प्रमुख कांग्रेस नेता चित्तरंजन दास के मार्गदर्शन में काम किया, जिन्होंने मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर 1922 में स्वराज पार्टी बनाने के लिए कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। उन्होंने स्वराज नामक एक समाचार पत्र शुरू किया और चित्तरंजन दास द्वारा शुरू किए गए समाचार पत्र फॉरवर्ड के संपादक के रूप में भी काम किया।
2021 से पराक्रम दिवस के रूप में हुई शुरूआत
पहले इस दिन को सुभाष चंद्र जयंती के नाम से सेलिब्रेट किया जाता था लेकिन वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिन को नेताजी के योगदान को देखते हुए पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। इसके बाद से प्रतिवर्ष नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
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