इसे भगवान शिव का आशीर्वाद ही कहा जाएगा कि मात्र चार माह की अवधि में मुझे शिव के चरणों में समर्पित होने का अवसर मिल रहा है। मैं, मेरी पत्नी अचला मित्तल के साथ 23 से 26 जनवरी तक प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में शामिल हो रहा हंू। मैंने गत वर्ष सितंबर माह में आदि कैलाश पर्वत की यात्रा की थी। तब भी मुझे भगवान शिव के साथ आत्मसात होने का अवसर मिला।
मेरा यह सौभाग्य रहा कि तब मैंने पर्वत पर भगवान शिव की आकृति और ओम का चिह्न अपनी आंखों से देखा। मेरे लिए यह सुखद अनुभूति रही। 144 वर्ष बाद प्रयागराज में संगम पर महाकुंभ हो रहा है। जीवन भर मैं भीड़ से बचता रहा, इसलिए कभी भी धार्मिक पर्वों पर धार्मिक स्थलों की यात्रा नहीं की, लेकिन इस बार जब प्रयागराज में 45 करोड़ सनातनी संगम में डुबकी लगा रहे है, तब मैं भी अपनी पत्नी के साथ प्रयागराज पहुंच रहा हंू। मेरी इस हिम्मत के पीछे मैं कालों के काल महाकाल का आशीर्वाद ही मानता हं।
मैं यह तो नहीं कहता कि भगवान शिव मुझे बला रहे हैं, लेकिन इतना जरूरी है कि मैं शिव की प्रेरणा से ही महाकुंभ में भाग लेने जा रहा हंू। मुझे पूरा विश्वास है कि आदि कैलाश की तरह प्रयागराज में भी भगवान शिव से आत्मसात् होने का अवसर मिलेगा। गंगा नदी के किनारे मुझे जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी प्रज्ञानानंद जी महाराज का सान्निध्य भी प्राप्त होगा। मेरी ऐसी कामना है कि मुझे इस यात्रा में अयोध्या में राम लला और काशी (वाराणसी) में ज्योतिर्लिंग के दर्शन भी हो।
महाकुंभ की यात्रा 23 जनवरी को अजमेर के निकट किशनगढ़ एयरपोर्ट से शुरू होगी। किशन से मात्र एक घंटा 20 मिनट में हमारा समूह लखनऊ एयरपोर्ट पहुंच जाएगा। इस धार्मिक समूह में एवीवीएनएल के एमडी रहे वीएस भाटी, उनके पुत्र शिवांश भाटी, चंदीराम शोम के रमेश चंदीराम, समाजसेवी सुभाष काबरा, रमेश काबरा, राजेश मालवीय (महाकाल मटका कुल्फी) तथा भीलवाड़ा के बनवारीलाल डाड आदि शामिल हैं। मुझे उम्मीद है कि इन चार दिनों में पाठकों का स्नेह प्राप्त होता रहेगा।