मौत का टीला बनाम कोटा कोचिंग हब

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हर तीसरे दिन एक युवा सपने की मौत! कहाँ ले जा रहे हैं हम अपने बच्चों को?

कोटा युवा होते सपनों का शहर! प्रतिभाशाली परिंदों की उड़ान को आसमान देने वाला शहर! माता पिताओं और अभिभावकों के ख़्वाबों को रफ़्तार देने वाला शहर! पिछले कुछ सालों से कुंठाओं, निराशाओं और पराजित टूटे सपनों का शहर बन कर रह गया है। आए रोज युवा सपने आत्महत्या करके अपने माँ बापों के ख़्वाबों को अलविदा कह रहे हैं। कोटा में हर साल आत्महत्याओं का ग्राफ आसमानी होता जा रहा है। हाल ही एलन कोचिंग संस्थान में एक युवा होते सपने ने आत्महत्या कर ली। हर तीन दिन में एक सपना आत्महत्या कर रहा है।

कोटा “कोचिंग हब” की जगह “सुसाइड हब” बन रहा है। अब तक इतने छात्रों की मौत हो चुकी है कि कोटा शहर को शिक्षा से जिÞयादा आत्महत्याओं के लिए जाना पहचाना जा रहा है। जेईई और मेडिकल कंपटीशन के लिए छात्रों की पहली पसंद आज तक भी कोटा ही है, लेकिन कोचिंग हब बन चुके कोटा में अब कंपटीशन नहीं निकलने के कारण छात्र सुसाइड कर रहे हैं।

राजस्थान का कोटा शहर देश भर में सबसे बड़ा कोचिंग का हब है। संयुक्त प्रवेश परीक्षा समेत मेडिकल कंपटीशन परीक्षाओं को पास करने के लिए हर साल यहां लाखों की संख्या में छात्र सपने लेकर आते हैं, लेकिन छात्रों के एक के बाद एक सुसाइड केस में अब यह शहर दुनिया में मुर्दों का टीला बनता जा रहा है। हर साल छात्रों की आत्महत्या करने के मामले बढ़ रहे हैं। कई रिपोर्ट्स में इस बात का खुलासा हुआ है कि 18 से 25 साल के बहुत सारे छात्र कंपटीशन नहीं निकाल पाने के कारण निराश हो रहे हैं।

कोटा में घर से दूर रहने वाले छात्रों का कंपटीशन रिजल्ट अच्छा नहीं आ रहा। वर्ष 2024 में कोटा में 17 छात्रों ने आत्महत्या करके अपनी जान दे दी, जबकि इससे पहले 2023 में इसकी संख्या लगभग दोगुनी थी। साल 2023 में 26 कोचिंग छात्रों ने आत्महत्या की थी।

मेरे लम्बे विश्लेषण के मुताबिक मरने वालों में ज्यादातर पुरुष छात्र रहते हैं, जो नीट की तैयारी कर रहे हैं। कई छात्र गरीब और लोअर मिडल क्लास परिवारों से हैं। एक आंकड़े के मुताबिक कोटा में रह रहे ज्यादातर छात्रों की उम्र 15 और 17 वर्ष के बीच में है। उनके लिए शहर में अकेले रहना! परिवारों की उम्मीदें! हर दिन 13 -14 घंटे की पढ़ाई! टॉपर्स के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा ! इतने दबावों के साथ रहना छात्रों के लिए आसान नहीं।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 13000 छात्र आत्महत्या कर लेते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर साल करीब सात लाख लोग आत्महत्या करते हैं, और 15 से 29 साल की उम्र में आत्महत्या मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण है।

कोटा के 3 हजार हॉस्टलों और हजारों मकान में करीब दो लाख से ज्यादा छात्र रहते हैं। सभी के हाथों में स्मार्टफोन आ गए हैं। कुछ बच्चे इसका दुरुपयोग कर रहे हैं। इसकी वजह से बच्चों को “इंटरनेट एडिक्शन” हो गया है। इसकी वजह से बच्चे बंक मारने लगे हैं। जब बच्चे पिछड़ जाते हैं तो डिप्रेशन में चले जाते हैं। फिर सुसाइड की ओर जाते हैं। यहां कोचिंग बड़ी तेजी से चलती है। बच्चा यदि दो चार दिन बंक मार ले तो फिर वह पढ़ाई को पकड़ नहीं पाता। अगर वह एक बार 200 छात्रों से भरी कक्षा में पीछे छूट जाए तो सिलेबस को वापस पकड़ना आसान नहीं होता और फिर स्ट्रेस बढ़ता चला जाता है। उसका असर टेस्ट में दिखता है जो और तनाव बढ़ाता है।

मेरी जानकारी के मुताबिक कोटा में ज्यादातर छात्रों की उम्र 15 से 17 साल की होती है। यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण वक्त होता है। शारीरिक विकास की उम्र का वक़्त! मनोवैज्ञानिक विकास का वक़्त! हार्मोनल बदलाव का वक़्त!

कोटा हॉस्टल एसोसिएशन प्रमुख नवीन मित्तल से फोन पर बात हुई तो वह उल्टी बात करने लगे। उनका मानना है कि शहर में आत्महत्या के बढ़ते मामलों के बावजूद कोटा के हब व्यापार पर कोई असर नहीं पड़ा है। छात्रों का कोटा आना जारी है। मुकाबला कड़ा है। परिवारों का दर्द गहरा। उनका कहना है कि आत्महत्याओं को रोकने के लिए शहर में कार्यक्रम हो रहे हैं। लोगों को मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूक करने की बात की जा रही है।

अब उनसे कौन पूछे कि फिर आत्महत्या का सिलसिला क्यों जारी है? परेशान छात्र शहर की हेल्पलाइन पर कॉल करते हैं। मेरी एक मित्र प्रमिला सांखला जो हेल्पलाइन काउंसलर हैं के मुताबिक फोन पर परेशान बच्चे बात करते-करते रोने लगते हैं। बहुत दुख होता है उनको देखकर ,फिर उनके पैरेंट्स की बारी आती है। हम उनको समझाते हैं। वह बच्चों पर इतना दबाव क्यों डाल रहे हैं? क्या वह चाहते हैं कि बच्चा डॉक्टर ही बने? अगर बच्चा दुनिया में ही नहीं रहा तो वह क्या करेंगे?
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कोचिंग क्लासों में बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। टीचर्स बच्चों के नाम तक नहीं जानते। किसी क्लास में 300 और उससे भी ज्यादा बच्चे बैठते हैं। टीचर्स तो दूर की बात वे आपस में ही सबके नाम नहीं जानते। कोई किसी का नाम नहीं जानता। बच्चा एक दूसरे को दोस्त नहीं बना पाता। बच्चा अकेला छूट जाता है। यह बहुत दुख की बात है। कितना पैसा चाहिए? क्या इतना कि हम बच्चों को ही खो दें? मित्रों! हमें बच्चों को खोना नहीं। उनको कुछ बनाना है। अच्छा इंसान बनाना है।

कोटा में हर कोचिंग इंस्टिट्यूट ऐसे टीचर्स को अपनी और खींचने की कोशिश करते है जिनकी छात्रों में फैन फॉलोइंग ज्यादा होती है। मीडिया इस बाजार को इतनी हाइप देता है कि मैन्टर्स का वेतन 15 से 25 लाख रुपए प्रति माह हो जाता है।

कोटा में कोचिंग माफियायों ने लाख कोशिश की मगर पिछले 10 साल में 25 कोचिंग संस्थान बन्द हो गए। 50 -50 करोड रुपए का लॉस उठा कर। आधुनिक सुविधाओं वाले हॉस्टल्स खाली पड़े हैं। छात्रों को कमरे किराए पर देकर, अच्छा खासा पैसा कमाने वाले लालची लोग !अब खाली पड़े कमरों को लेकर परेशान हैं।

यहाँ एक और बात बताना चाहूंगा कि कोटा में बच्चों की बढ़ती आत्महत्याओं के पीछे मानसिक तनाव तो है ही, साथ ही तनाव मुक्ति के लिए सूखे नशे का उपयोग भी है। कोटा पुलिस इस कारोबार को रोकने में पूरी तरह फेल है या इस कारोबार से जुड़ी हुई है। इस पर भी हमको ध्यान देना होगा।

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