कृति का सुसाइड नोट कई कोचिंग विद्यार्थियों की जिन्दगी की हकीकत, अपने सपने बच्चों पर थोपने के कारण लगा रहे हैं उनकी जिंदगी दांव पर
कोटा में आत्महत्या करने वाली छात्रा कृति के सुसाइड नोट ने एक बार फिर अभिभावकों के दबाव और कोचिंग संस्थानों के तनाव से अपना जीवन खत्म करते बच्चों की पीड़ा को उजागर किया है। अपने सपने अपने बच्चों पर थोपने और समाज में दूसरे परिवारों से प्रतिस्पर्धा करने के चक्कर में अभिभावक अपने बच्चों की जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं। मैं डॉक्टर नहीं बना तो मेरी बेटी डॉक्टर बनेगी। मैं इंजीनियर नहीं बना, तो मेरा बेटा इंजीनियर बनेगा।
अगर फलां रिश्तेदार का बेटा डॉक्टर बन सकता है, तो मेरा क्यों नहीं? जैसी बातें सोचकर-करके अभिभावक न सिर्फ भावनात्मक रूप से बच्चों को खुद से दूर कर रहे हैं,बल्कि उन्हें मौत की दहलीज पर भी धकेल रहे हैं। ऐसा माहौल बना दिया गया है मानो नीट और जेईई के अलावा कोई दुनिया ही नहीं है और अगर बच्चा इन परीक्षाओं को क्रैक नहीं कर पाया, तो उसका जीवन ही बेकार है।
कोचिंग संस्थान भी अभिभावकों की दमित इच्छाओं में आग में घी डालने का काम करते हैं। उनके बड़े-बड़े विज्ञापन अभिभावकों को प्रेरित करते हैं कि वह उन्हें घर से दूर कोचिंग के लिए भेजें। जहां इन संस्थाओं को सिर्फ अपनी फीस से मतलब है। उन्हें ना बच्चों की सुरक्षा से लेना-देना है, ना जीवन से। ना ही इन संस्थानों को अपने परिवार से दूर रहने वाले इन मासूम बच्चों को भावनात्मक मजबूती देने और संस्कार सिखाने की फुर्सत है। इन कोचिंग सेंटर में बच्चों का जीवन किसी मशीन की तरह हो जाता है। बस पढ़ना, पढ़ना और पढ़ना।
ऐसे में प्रतिस्पर्धा के मायने सकारात्मकता से बदल नकारात्मक हो जाते हैं और जो बच्चे प्रतिस्पर्धा के दबाव को नहीं झेल पाते हैं, वह आत्महत्या कर लेते हैं। छोटे-छोटे कमरों में घुटकर रहते,दिन-रात पढ़ते, जो मिल जाए उसे खाते और बिना परिवार के अपना जीवन गुजारने के कारण यह वैसे ही भावनात्मक, शारीरिक और पारिवारिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। ऐसे में थोड़ी सी भी नाकामी इनके कोमल दिल को तोड़ देती है और परिणाम आत्महत्या होता है। किशोरावस्था के किन दिनों में बच्चों को अभिभावकों और परिवार के सदस्यों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, उन दिनों में यह इनसे दूर हो जाते हैं। सफलता पाने के लिए अभिभावकों का दबाव और कोचिंग संस्थानों में प्रतिस्पर्धा का तनाव बच्चों के लिए जानलेवा सभी द्वारा है।
हमारे देश में ऐसे अभिभावक ना के बराबर हैं, जो अपने बच्चों की रूचि को देखते हुए उसे उसी दिशा में कैरियर के लिए प्रोत्साहित कर सकें। जबकि हर बच्चे का मानसिक स्तर अलग-अलग होता है। हकीकत ये है कि अभिभावक ही तय करते हैं कि उनके बच्चे को क्या पढ़ना है,किस कोचिंग संस्थान में जाना है। ना ही हमारी शिक्षा पद्धति ऐसी है जो स्कूलों में ही बच्चों की रुचि और मानसिक स्तर का आकलन कर अभिभावकों को बता सके कि उन्हें अपने बच्चों को किस क्षेत्र में भेजना है। ऐसे में अभिभावक बच्चों पर अपनी इच्छा थोपकर उन्हें कोचिंग संस्थान भेजकर यह समझने लगते हैं कि उन्होंने बच्चों के भविष्य के लिए सही फैसला किया है।
लेकिन जब बच्चे डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर लेते हैं, तब उन्हें सिवाय पछतावे के कुछ नहीं मिलता। पिछले कुछ सालों से ट्यूशन और कोचिंग कल्चर ने तेजी से पैर पसारे रहे हैं।अब तो हालत ये है कि बच्चे पहली कक्षा से ही ट्यूशन पर और उसके बाद नवीं क्लास के बाद कोचिंग पर भेजे जा रहे हैं। लेकिन कोई यह नहीं समझ रहा है कि क्या बच्चा इस मानसिक दबाव को ससने की स्थिति में है या नहीं?यही कारण है कि कोचिंग स़ंस्थान करोड़ों रुपए कमा रहे हैं और तमाम नियम-कायदों के उल्लंघन के बाद भी राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण मिलने के कारण फल-फूल रहे हैं।
कोटा में पिछले साल करीब 20 बच्चों ने दबाव और तनाव न सह पाने के कारण आत्महत्या की थी और इस बार जनवरी के पहले 20 दिन में ही आधा दर्जन बच्चे खुदकुशी कर चुके हैं। ये न सिर्फ चिंताजनक बल्कि समाज के लिए चेतावनी भी है। कृतिका सुसाइड नोट पढ़ने के बाद किसी का भी मन रो सकता है। उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि, “मैं भारत सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय से कहना चाहती हूं कि अगर वो चाहते हैं कि कोई बच्चा न मरे तो जितनी जल्दी हो सके इन कोचिंग संस्थानों को बंद करवा दें, ये कोचिंग छात्रों को खोखला कर देते हैं।
पढ़ने का इतना दबाव होता है कि बच्चे बोझ तले दब जाते हैं। कृति ने लिखा है कि वो ‘कोटा में कई छात्रों को डिप्रेशन और स्ट्रेस से बाहर निकालकर सुसाइड करने से रोकने में सफल हुई लेकिन खुद को नहीं रोक सकी। बहुत लोगों को विश्वास नहीं होगा कि मेरे जैसी लड़की जिसके 90+ मार्क्स हो वो सुसाइड भी कर सकती है। लेकिन मैं आप लोगों को समझा नहीं सकती कि मेरे दिमाग और दिल में कितनी नफरत भरी है। अपनी मां के लिए उसने लिखा,आपने मेरे बचपन और बच्चा होने का फायदा उठाया और मुझे विज्ञान पसंद करने के लिए मजबूर करती रहीं।
मैं भी विज्ञान पढ़ती रहीं। ताकि आपको खुश रख सकूं। मैं क्वांटम फिजिक्स और एस्ट्रोफिजिक्स जैसे विषयों को पसंद करने लगी और उसमें ही बीएससी करना चाहती थी। लेकिन मैं आपको बता दूं कि मुझे आज भी अंग्रेजी साहित्य और इतिहास बहुत अच्छा लगता है,क्योंकि ये मुझे मेरे अंधकार के वक्त में मुझे बाहर निकालते हैं। कृति अपनी मां को लिखा इस तरह की चालाकी और मजबूर करने वाली हरकत 11 वीं क्लास में पढ़नेवाली छोटी बहन से मत करना, वो जो बनना चाहती है और जो पढ़ना चाहती है। उसे वो करने देना। क्योंकि वो उस काम में सबसे अच्छा कर सकती है जिससे वो प्यार करती है।
कोटा की कृति की खुदकुशी खबर से लोग उबरे भी नहीं थे कि जयपुर में एमएनआईटी की बीटेक प्रधम वर्ष की छात्रा छात्र दिव्या राज ने खुदकुशी कर ली। उसने भी अपनी सुसाइड नोट में जो कुछ लिखा वह इस बात की ताकीद है कि अभिभावकों और कोचिंग संस्थानों ने बच्चों का बचपन छीन लिया है। दिव्या ने लिखा है कि गलती मेरी है। मैं इस दुनिया में नहीं जी सकती।लोग हैं यहां मेरी बातें सुनने को। मैं बस बात नहीं कर सकती। सबसे ज्यादा खुश मैं या तो बचपन में या नींद में थी। अब बचपन तो वापस आ नहीं सकता। तो मैं हमेशा की नींद में जा रही हूं। मौत के बाद क्या होता है, नहीं पता पर शहर शांति तो होती होगी। आज अपनी जिंदगी का सौदा उस शायद के नाम। निशा ( दिव्या की बहन) हो सके तो माफ कर देना। मम्मी, पापाऔर निशा एक दूसरे का ख्याल रखना। निशा का ख्याल रखना।