आनासागर झील के चीर हरण को रोकने का सही समय है! हे कृष्ण आओ! किसी राजनेता की काया में करो प्रवेश?

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मछलियों के ठेके से जुड़े सवालों पर साफ सुथरा ब्लॉग

अजमेर की आनासागर झील में मछलियों का ठेका दिया जाना चाहिए या नहीं? यह सवाल अब नगर निगम और सिंचाई विभाग के बीच फैले जाल में उलझ रहा है। सिंचाई विभाग ठेका देकर सरकारी आय बढाना चाहता है जबकि नगर निगम का तर्क है कि क्यों कि झील के रख रखाव की पूरी जिम्मेदारी उसकी है तो ठेके की राशि सिंचाई विभाग के खाते में क्यों जाए?

विगत दिनों जब महा पराक्रमी जल कुम्भी ने झील में सुरसा की तरह मुँह फैलाया था तब सिंचाई विभाग कहाँ चला गया था? निगम का यह तर्क विधि संगत न भी हो पर तर्क संगत तो है ही।

मलाई खाएं सिंचाई विभाग के अफसर! और दूध उबाला जाए निगम की कढ़ाई में! यह कैसे हो सकता है?

निगम ने मछलियों के ठेके दिए जाने का विरोध शुरू कर दिया है।

मजेदार बात यहाँ यह है कि निगम ने एन जी टी के फैसले को भी तर्क की तलवार बनाया है। तर्क दिया गया है कि एन जी टी ने आनासागर के मूल स्वरूप के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं किए जाने के निर्देश दिये हैं। जल की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए न्यायालय ने साफ निर्देश देकर हर उस गतिविधि को प्रतिबंधित कर दिया है जिससे झील का जल गंदा होता हो।

अदालत के कानून का सिर्फ़ मछलियों के ठेके दिए जाने के लिए इस्तेमाल किए जाना क्या निगम का दोहरा आचरण नहीं?

एन जी टी ने तो झील से जुड़े गंदगी भरे नालों को रोकने के भी आदेश दे रखे हैं। निगम क्या झील को सेफ़्टी टैंक बनाने वाले नालों को रोकने का प्रबंध कर चुकी है?

क्या वैट लैंड को एन जी टी के आदेश की पालना में अतिक्रमण मुक्त करवा चुकी है?

क्या झील के किनारों पर हुए अवैध निमार्णों को तोड़ चुकी है?

क्या पाथ वे! सेवन वंडर्स ! फूड कोर्ट ! जैसे अवैध निमार्णों को ध्वस्त कर चुकी है?

यदि नहीं तो फिर सिंचाई विभाग मछली-ठेके का ही विरोध क्यों कर रहा है?

नगर निगम बेहतर है कि मछलियों का ठेका रोकने के लिए दूसरे तर्क दे! कहे कि आनासागर का ट्रीटमेंट प्लांट दो कौड़ी का रह गया है? गंदे पानी के नालों ने झील के पानी को हर तरह से अनुपयोगी बना दिया है! पानी जीव जंतुओं के लिए पूरी तरह से जहरीला बन चुका है। झील के पानी के उपयोग से कैंसर सहित हजारों बीमारियां फैल सकती हैं! ऐसे में मछलियों का ठेका देना बेईमानी है।

मछलियों की खेती के लिए यह झील वैसे तो अनुपयोगी हो ही चुकी है यदि फिर भी इसमें मछलियां पैदा की जाती हैं तो निश्चित रूप से जो इनका सेवन करेगा वह शत प्रतिशत रूप से कैंसर का मरीज हो जायेगा।

चार साल पहले मुंबई में जब कैंसर के मरीज तेजी से बढ़ने लगे और सरकार ने इसके पीछे कारण खोजने शुरू किए तो यह सच सामने आया कि मुंबई के मछली बाजार में पहुंचने वाली मछलियाँ जहरीले पानी वाले जलाशयों से मुंबई पहुंच रही है।

जांच आगे बढ़ी तो चार सौ से अधिक तालाबों और झीलों को सूचिबद्ध किया गया। इसमें अजमेर की आनासागर झील भी शामिल थी।

एन जी टी द्वारा जब झील को साफ सुथरा बनाने के आदेश दे दिये गए हैं और आज नहीं तो कल उन आदेशों की पालना करनी ही होगी तो नगर निगम को नैतिक रूप से आदेशों की पालना कर ही देनी चाहिए! टुकड़ों टुकड़ों में उनके आदेश का अपने हित मे प्रयोग नहीं करना चाहिए।

अब समय आ गया है जब आनासागर का मुकद्दर ईमानदारी से लिख ही दिया जाना चाहिए।

सिंचाई विभाग को मछलियों का ठेका फिलहाल रोक देना चाहिए! नगर निगम को दिल थाम कर अपने गलत हो गए फैसलों में सुधार कर लेना चाहिए! झील से जुड़े सभी नालों को बन्द करके उनकी अन्य मार्ग से निकासी करनी चाहिए! वेट लेंड को पूरी तरह से मुक्त कर देना चाहिए! झील के किनारों पर बने सभी संस्थानों को बेरहमी से हटा देना चाहिए!

अजमेर विकास प्राधिकरण को भी इस दिशा में मजबूत और दो टूक निर्णय लेने चाहिए। राजनेताओं को भी हो गया सो हो गया अब नहीं होने दिया जाएगा वाला निर्णय ले लेना चाहिए।

दोस्तों! अभी नहीं तो कभी नहीं! लोहा गर्म है! सही वक्त है हथोड़ा मारने का! देवनानी जी ! उठो और बता दो कि झील के चीर हरण को रोकने के लिए कृष्ण आ चुके हैं।

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