फ्री बीज का विरोध करने वाले प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा भी अब चली इसी राह, दिल्ली चुनाव के लिए लगाई वादों की झड़ी, हर पार्टी मतदाता को ललचाने के लिए आतुर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के अन्य नेता भले ही चुनाव में लोकलुभावन वादों यानी मुफ्त की रेवड़ियों/ फ्री बीज को लेकर चिंता जताते हुए इससे राज्यों और देश के आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की बात करते रहे हो। जो मोदी यह कह चुके हो कि रेवडी कल्चर जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश है। वही मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी भी मुफ्त की रेवड़िया बांटने में अब कोई परहेज नहीं करती है। लेकिन वह खुद की योजनाओं को लोक कल्याणकारी और दूसरी पार्टी की योजनाओं को रेवड़ियां कहती रही है।
लेकिन मतदाता को जो भी सुविधा बिना पैसे दिए मिले, उसे कोई कुछ भी कहे, हकीकत में वह मुफ्तखोरी ही कहलाएगी। मुफ्त की रेवडियां बांटने के राज्यों के सरकारी राजकोष पर भारी बोझ पड़ता है और टैक्सपेयर लोगों का जो पैसा विकास कामों में लगना चाहिए, वह मुफ्त रेवडी बांटने में ही लग जाता है। लेकिन भाजपा को भी अहसास हो कि यह चुनावी रण है और इसमें लड़ाई वैसे ही या उससे भी बड़े हथियारों से लड़नी पड़ेगी,जिस तरह से विपक्ष लड़ रहा है। ऐसे में करीब 25 साल से दिल्ली में सत्ता में वापसी के लिए छटपटा रही भाजपा ने भी अगले महीने होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता के लिए मुफ्त की रेवड़ियों यानि वादों की झड़ी लगा दी है।
अपने संकल्प पत्र में बीजेपी ने आम आदमी पार्टी की मुफ्त की रेवड़ियों की काट के लिए खुद भी वैसी ही रेवड़ियां परोसी है। इससे पहले कांग्रेस भी ऐसे ही वादों की झड़ी लगा चुकी है। अब तो हालत यह है कि एक पार्टी जो मुफ्त की योजनाओं की घोषणा करती है, तो दूसरी पार्टी उससे भी आगे बढ़कर घोषणा पर उतर जाती है। इसमें महिलाओं, बुजुर्गों, बेरोजगारों, विद्यार्थियों आदि सभी का ध्यान रखा जाता है। हालत ये है कि बीजेपी को यह वादा भी करना पड़ा है कि आम आदमी पार्टी की जो मुफ्त बस यात्रा, मुफ्त बिजली और पानी जैसी योजनाएं हैं, उसे जारी रखा जाएगा। यानी भाजपा ने मान लिया है कि आप की रेवडियां ही उसे 10 साल से सत्ता में बनाए हुए हैं और उसे बेदखल करने के लिए उससे भी मोटी रेवड़ियां मतदाताओं को बांटनी होगी। अगर आम आदमी पार्टी ने महिलाओं को 2100 रूपए देने तक का वादा किया है, तो भाजपा ने उसको बढ़कर ढाई हजार कर दिया है।
मुफ्त की रेवडियों के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की चुकी है। जिसमें इन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि चुनाव के मद्देनजर मुफ्त की रेवडियां बांटने का वादा कर मतदाताओं को प्रभावित करना लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए ही नहीं,बल्कि संविधान के लिए भी बड़ा खतरा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर रखे हैं। लेकिन लोकतंत्र और संविधान की चिंता अब राजनीतिक पार्टियों को रही कहा। उन्हें तो किसी भी तरह सत्ता पर काबिज होना है और इसके लिए साम-दाम- दंड- भेद जो भी काम में लेना है, लिया जा रहा है। दरअसल,यह मुफ्त योजनाएं अब धीरे-धीरे सत्ता प्राप्ति की गारंटी बनती जा रही है।
भले ही राज्य कर्ज में डूब जाए। देश में चुनावों में मुफ्त सौगात की शुरूआत तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने की थी। उन्होंने साड़ी, प्रेशर कुकर आदि मुफ्त में देकर इसकी नींव रखी। बाद में दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने मूलभूत सुविधाओं बिजली और पानी मुफ्त देने का वादा कर 2015 में चुनाव जीता। फिर 2021 में केरल में वामपंथी दलों ने मुफ्त राशन किट बांटकर जीत हासिल की। इसके बाद तो हर राज्य इसकी चपेट में आता गया। तेलंगाना,पंजाब जैसे राज्यों में इन मुफ्त योजनाओं के कारण संकट आने लगा है। तो कई राज्य की सरकारें रेवडी योजनाओं के लाभार्थियों को कम करने के लिए गिव अप योजनाएं चला रही हैं यानि स्वेच्छा से व्यक्ति यह लाभ लेना छोड़ दे। लेकिन जिसे एक बार मुफ्तखोरी का चस्का लग जाए,वह इसे क्यों छोडेगा? अब तो हाल ये है कि अगर देश के विभिन्न राज्यों में ऐसा कोई अध्ययन हो तो साफ हो जाएगा की जन्म लेने से लेकर मरने तक व्यक्ति किसी न किसी मुफ्त की योजना का लाभ किसी ना किसी राज्य में ले रहा है।
जो भारतीय जनता पार्टी पहले मुफ्त योजनाओं के खिलाफ थी और प्रधानमंत्री सहित इसके बड़े नेता अपनी सभा में इसके खिलाफ बोलते थे वह भी अब धीरे-धीरे इसकी राह पर चल पड़ी है। दिल्ली में बीजेपी के वादे बता रहे हैं कि वह आम आदमी पार्टी को हर हाल में सत्ता से बेदखल करना चाहती है। तो क्या प्रधानमंत्री के शब्दों में वह भी जनता को मूर्ख बना रही है। शायद नहीं। क्योंकि सत्ता की मंजिल मुफ्तखोरी के रास्ते से मिलने में आसानी हो रही है। जब भाजपा जैसी देश के अधिकांश राज्यों व केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी इस रास्ते पर जा रही है, तो फिर किसी और पार्टी के तो ये रास्ता छोड़ने का सवाल ही नहीं उठता। ऐसे में क्या सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग इस मुफ्तखोरी पर भविष्य में रोक लगा सकेगा? देश का विकास सभी को समान अवसर,रोजगार देकर किया जा सकता है। लेकिन इस तरह की मुफ्तखोरी इन अवसरों को भी समाप्त कर देती है और समाज में भी विभेद की स्थिति पैदा करती है।
फिलहाल आप भी एक नजर दिल्ली चुनाव के लिए की गई तीनों प्रमुख पार्टियों की रेवडियो पर डालें।
भारतीय जनता पार्टी-
महिला समृद्धि योजना तहत महिलाओं के खाते में हर महीने ?2100 रुपए। गर्भवती महिलाओं को मातृत्व सुरक्षा योजना के तहत 21 हजार रूपए। पांच लाख तक के मुफ्त इलाज से जुड़ी आयुष्मान भारत योजना। 5 लाख तक का अतिरिक्त स्वास्थ्य बीमा। एलपीजी सिलेंडर में 500 रुपए की सब्सिडी। होली दिवाली पर एक सिलेंडर मुफ्त। अटल कैंटीन योजना में झुग्गियों में 5 रुपए में खाना। 60 से 70 साल के बुजुर्गों को हर महीने ढाई हजार की पेंशन। 70 से ऊपर की उम्र वालों को तीन हजार पेंशन।
आम आदमी पार्टी-
हर महीने महिलाओं को 21 सौ रूपए। 60 वर्ष के ऊपर बुजुर्गों का इलाज पूरी तरह मुफ्त। सरकारी अस्पताल में भी और प्राइवेट हॉस्पिटल में भी। सरकारी स्कूलों मुफ्त पढ़ाई। 20 हजार लीटर मुफ्त पानी। दो सौ यूनिट मुफ्त बिजली। बसों में महिलाओं को मुक्त यात्रा। बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा। पुजारी ग्रंथियों को हर माह 18 हजार रुपए। आटो चालकों के लिए 10 लाख रुपए का बीमा। उनकी बेटी की शादी में एक लाख की सहायता व यूनिफॉर्म के लिए साल में पांच हजार रूपए। डीटीसी की बसों में स्टूडेंट्स के लिए मुफ्त यात्रा तथा मेट्रो में 50 फीसू छूट।
कांग्रेस-
प्यारी दीदी योजना के तहत महिलाओं को हर महीने ढाई हजार रुपए। पढ़े लिखे बेरोजगारों को 1 साल की अप्रेटिंसशिप और इस दौरान हर महीने साढे आठ हजार रुपए। 25 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज।मुफ्त राशन किट। 500 रूपए में गैस सिलेंडर। 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त।