दिल्ली चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन खात्मे की ओर

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कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले के कारण गठबंधन के सहयोगी भी नाराज, आप ने जो कहा, अलग-थलग करके दिखा दिया

सांप -सीढ़ी के खेल में जीतने के लिए 100 पर पहुंचने से पहले जब भी खिलाड़ी गलती से 99 पर पहुंच जाता है,तो उसे सांप काट कर वापस जमीन यानी 2-3 नम्बर पर ले आता है। सीढी चढ़ने पर जब खिलाड़ी 90 से 100 अंकों की कतार में पहुंच खुद को विजेता के रूप में देखने लगता हैक,तो सांप काटकर उसे वापस जमीन का अहसास करा देता है। नीचे पहुंचने पर खिलाड़ी को पता लगता है,पासा उसी के हाथ में नहीं है,दूसरे भी अपनी बारी और चाल के इंतजार में पासा लिए बैठे हैं

दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के साथ ठीक ऐसा ही हुआ। लोकसभा चुनाव में 99 सीट जीतकर कांग्रेस खुद को देश में विपक्ष की राजनीति की धुरी मानने लगी थी। राहुल गांधी को भी लोकसभा में नेता विपक्ष बनने के बाद यह गलतफहमी हो गई थी कि वह देश में विपक्ष के भी सबसे बड़े नेता हो गए हैं। लेकिन पहले हरियाणा और उसके बाद महाराष्ट्र में लगे चुनावी झटकों के बाद अब दिल्ली में केजरीवाल ने कांग्रेस को चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन से अलग थलग कर दिया है।

हरियाणा में कांग्रेस ने आप के साथ समझौता नहीं करके उसे जमीन दिखाने की कोशिश की थी। आप ने उसका बदला दिल्ली में ले लिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि आप ने पहली बार जो कहा वह करके दिखाया। पिछले महीने कांग्रेस नेता अजय माकन ने केजरीवाल को राष्ट्रविरोधी बताते हुए कहा था कि उनकी कोई विचारधारा नहीं है,सिवाय पर्सनल एंबीशन के यानी निजी महत्वाकांक्षा के। उसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री आतिशी एवं संजय सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस करके कांग्रेस आलाकमान से कहा कि 24 घंटे में माकन ने माफी नहीं मांगी तो,वह कांग्रेस को इंडिया गठबंधन से अलग-थलग करने के लिए सहयोगी दलों से बात करेंगे और उन्होंने इसे करके भी दिखा दिया।

क्या इसका मतलब ये हुआ की सहयोगी दलों में राहुल गांधी से ज्यादा विश्वसनीयता और पैठ केजरीवाल की है? नहीं, इसका कारण यह नहीं है। दरअसल दिल्ली चुनाव में जिस तरह इंडिया गठबंधन के दल तृणमूल कांग्रेस,समाजवादी पार्टी, शिवसेना उद्धव और आरजेडी जिस तरह केजरीवाल के समर्थन में सामने आ गई है। उसकी वजह यह है कि ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे, तेजस्वी यादव आदि विपक्षी नेताओं को इस बात का अहसास है कि दिल्ली में केजरीवाल ही भाजपा को टक्कर दे सकते हैं। जो लगातार 2014 से दिल्ली में चुनाव जीत रहे हैं। लेकिन इस बार कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने से दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है।इससे भाजपा को 27 साल बाद दिल्ली में फिर सत्ता नसीब होने और केजरीवाल को शिकस्त देने की उम्मीद बंधी है।

ऐसे में इन विपक्षी नेताओं ने केजरीवाल के पक्ष में खड़े होकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि भले ही कांग्रेस आप से गठबंधन न करें। लेकिन वो सभी केजरीवाल के साथ है। तेजस्वी यादव ने साफ ही कह दिया कि इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए बना था। अब वह खत्म हो गया है। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला में भी कह दिया है कि अगर गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव तक सीमित था तो इसे विधिवत भंग कर देना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि दिल्ली में जो दल मैदान में हैं, वह तय करें कि भाजपा का मुकाबला किस तरह किया जा सकता है। इससे पहले ईवीएम के मुद्दे पर भी उमर अब्दुल्ला कांग्रेस को लताड़ चुके हैं। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस ईवीएम का रोना बंद कर चुनाव नतीजे को कबूल करें

हालांकि इनमें से किसी भी दल का दिल्ली में कोई जनाधार नहीं है, लेकिन इनका समर्थन आप की नैतिक और राजनीतिक जीत माना जा सकता है। हां, कुछ हद तक इसका प्रभाव मुस्लिम मतदाताओं पर जरूर पड़ सकता है। माना जा रहा था कि कांग्रेस के अकेले लड़ने से मुस्लिम मतदाता विभाजित हो सकते हैं और जो मुस्लिम वोट एकमुश्त आप को मिलते थे,वह कांग्रेस तोड़ सकती है। लेकिन ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और तेजस्वी के समर्थन करने के बाद मुसलमानों में भी संदेश जाएगा की कांग्रेस को वोट देने का अर्थ होगा कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली में नुकसान। फिर पश्चिम बंगाल,उत्तर प्रदेश, बिहार ,महाराष्ट्र जैसे राज्यों में तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी,आरजेडी,शिवसेना जैसे दलों की विपक्षी पार्टी भाजपा के साथ कांग्रेस ही है। ऐसे में इन दलों के नेताओं को भी कांग्रेस को सबक सिखाने का एक और अवसर मिल गया है। अगर दिल्ली चुनाव में कांग्रेस इस बार भी पिछले तीन चुनाव की तरह नाकाम रही तो फिर इस साल ही बिहार में होने वाले चुनावों में उसे तेजस्वी भाव देने वाले नहीं है। कांग्रेस को 2013 में 8 तथा 2015 एवं 20 के चुनावों में शून्य सीटें मिली थी।

इंडिया गठबंधन के दलों का धीरे-धीरे कांग्रेस से दूर होने का मतलब यह होगा कि कांग्रेस फिर अकेली पड़ जाएगी। भाजपा का मुकाबला कई राज्यों में कांग्रेस की बजाय वहां के क्षेत्रीय दलों से हो रहा है। इनमें कहीं कांग्रेस विधानसभा चुनाव में गठबंधन कर लेती है और कहीं नहीं। लेकिन यह तय है कि लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतने के बाद कांग्रेस को जो थोड़ी बहुत राजनीतिक जमीन मिलने लगी थी, उसे इंडिया गठबंधन में उसी के साथी वापस खींचने में लगे हैं।

जाहिर है इसका फायदा भाजपा को ही मिलेगा। ऐसे में इंडिया गठबंधन भी खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है। हालांकि इंडिया गठबंधन का कभी भी ना कोई एजेंडा था। ना ही कोई संयोजक या अध्यक्ष। बहरहाल,बार दिल्ली विधानसभा के चुनाव भाजपा के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बन गए हैं और उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है । अगर इस बार भी बीजेपी दिल्ली में सरकार बनाने में नाकाम रही, तो उसके लिए यह राजनीतिक रूप से बड़ा झटका होगा। ऐसे में वाकई आप उसके लिए आपदा ही साबित होगी।

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