मुझ पर गौर ना भी किया जाए तो चल जाएगा! क्यों कि मेरा तो नाम ही ‘ना’गौर है। मेरा अपना मिजाज है। मेरी अपनी सल्तनत है! मेरी अपनी शान है! अपनी आन है। मर्ज़ी का मालिक हूं। मुझ पर कोई पाबंदी काम नहीं करती। और हां कानून भी मेरे ही हिसाब से साँस लेता है।
जी हाँ, ‘ना’गौर हूं मैं। अपनी मर्ज़ी का मालिक! मैं जो हूं! जैसा हूं! कोई मुझ पर खिलाफ टिप्पणी नहीं कर सकता।
हो सकता है आप मेरे नाम को किसी शहर के नाम से जोड़ कर अनावश्यक रूप से परेशान हो जाएं। मगर सच तो यही है कि मैं एक अजीब किस्म का इंसान हूं और मेरा नाम नागौर है। मैं किसी कहानी का किरदार हूं और मुझे लोग प्यार से ‘ना’गौर कहते हैं।
पिछले कुछ दिनों से मुझ पर कानून तोड़ने का भूत सवार है। आप कहेंगे कि कानून का पालन करवाना तो पुलिस का काम है। मैं कहूंगा बिल्कुल नहीं। कानून तो मेरा दरबान है। जो कहूंगा करेगा। और हां पुलिस! वह भी तो मेरी बंधुआ मजदूर है।
प्लीज मेरी किसी भी बात को किसी शहर के नाम से मत जोड़ना वरना मैं कहूंगा कि आप नादान हैं। नासमझ हैं।
खैर! पिछले दिनों एक घटना हुई। कोई लड़की को दूसरी जात का लड़का ले भागा। शादी बना ली। लड़की वाले बदला लेने पर उतर आए। जिसने शादी की वो तो हाथ नहीं लगा मगर उसके भाई को लड़की वालों ने धर दबोचा। कई लोगों ने मिल कर मारा पीटा। लड़की वालों की नाक जो कट गई थी। परिणाम यह निकला कि लड़के के भाई की नाक काट दी। बकायदा नाक काट कर उसे नकटा बना दिया गया।
मामला मेरे पास लाया गया। मैने नाक काटने वालों का साथ देना उचित समझा। थाना मेरा। कानून मेरा। हाथ जमानत। कोर्ट कचहरी बाद की बात। अपुन कौन नागौर। अपने सामने कानून कहां?
एक और मामले में किसी ने किसी को जमकर ठोका। पसली तोड़ दीं। हमलावर सब अपनी बिरादरी के। अपने खास। और फिर हमको दिया लिया भी खूब सो हमने उनको भी कानून से रियायत दे डाली। रियायत देना हमारे हाथ में था तो दे दी। नागौर नाम था हमारा। पता चला जिन लोगों ने किसी की पसलियां तोड़ी थी उसका नाम नाक काटने वाले केस में भी था।
और अब पता चला है कि नाक काटने और पसली तोड़ने वाले दोनों मामलों में राजस्थान के डी जी पुलिस ने आई जी पुलिस अजमेर को परिवादी की रिपोर्ट पर कठोर कार्यवाही करने और सूचना मुख्यालय को भेजने के निर्देश दे डाले हैं। आई जी पर भी सच का भूत सवार है। कठोर कार्यवाही तय है।
होगी! मगर मैं ‘ना’गौर हूँ। मुझे ऐसी बातों पर गौर करने की आदत नही।
मुझे भारतीय दंड सहिंता पर तो पूरा भरोसा है मगर अपनी इस आदत का क्या करूँ कि मेरा झुकाव कुछ जाति विशेष के लोगों पर ही रहता है। यही वजह है कि यहाँ मेरे बन्धु बांधवों! का ही सिक्का चलता है। मेरे अंदर की ‘ज्योति’ ही मुझ पर हावी रहती है। मैं हर चीज उसी की नजर से देखता हूँ। लोग कहते हैं कि इन दिनों कई गुंडे बदमाश! अपराधी किस्म के लोग मेरी छाया में फल फूल रहे हैं। कानून के रखवाले मेरी अंतर ज्योति से पल्लवित पुष्पित हो रहे हैं। लोग जो चाहें कहें। मुझ पर लोगों के कहने का कोई फर्क़ नहीं पड़ता। मेरे लोग ही मजे नहीं करेंगे तो कौन करेगा? कब करेगा?
सुना तो यह भी है कि हाल ही में बडी अदालत ने किसी गंभीर मामले के तहत एक जिला स्तरीय अधिकारी सहित तीन अधिकारियों को तलब किया है। कोर्ट की कार्यवाही पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करता मगर यहाँ साम्राज्य तो मेरा ही चलेगा। यह तय मानिए।
यहाँ एक और बात। सरासनी गाँव में सीमेंट प्लांट के विरोध में 134 दिनों से जो धरना चल रहा था उसमें किसान और पुलिस वाले आमने सामने हो गए। हनुमान जी बीच में कूदे तो मुझे चिंता हो गई। उन्होंने तो सीधे सीधे पुलिस पर प्लांट मालिकों से मोटी रिश्वत लेने तक का आरोप लगा दिया। ऐसा लगता है कि हनुमान जी तख्ता पलट की तैयारी में हैं। देखते हैं क्या होता है? फिलहाल तो मैं ‘ना’गौर ही हूँ और मेरा अपना अलग रुतबा है।
अंत में फिर वही बात कि मैं ‘ना’गौर हूँ और लोग मुझे किसी शहर से जोड़ कर न देखें। मेरा किसी भी शहर से दूर दूर तक भी कोई वास्ता नहीं।
नारायण!! नारायण!