दुर्ग पर दीवार! 18 मंजिल का रेस्टोरेंट! होटल्स की बाढ़
मुगलों से लड़ा! नपुंसकों से हार गया
देश की आन बान और शान कहे जाने वाले चितौड़ के किले को मुगल कालीन शासकों ने जितना नुकसान नहीं पहुंचाया उतना विगत दस सालों में दबंग नेताओं और भृष्ट अधिकारियों के संरक्षण में अतिक्रमणकारियों ने पहुंचा दिया है। पूरे किले में अवैध होटल्स! रेस्टोरेंट्स! और अन्य विक्रय केंद्र बने हुए हैं। कानून भले ही यह कहता हो कि प्राचीन किलों के मूल स्वरूप को बदला नहीं जा सकता लेकिन यहाँ तो मूल स्वरूप को पूरी तरह से ध्वस्त करने का अभियान छिड़ा हुआ है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि किले में अतिक्रमणकारियों ने खुले आम बैनर्स लगा रखे हैं कि कब्जा खरीदने वाले को उसकी इच्छा के मुताबिक निर्माण करवा कर दिया जाएगा।
हो सकता है मेरे सुधि पाठक कहें कि चितौड़गढ़ से हमको क्या लेना देना। ऐसे पाठको को बता दूं कि मुझे यदि अजमेर के आनासागर की बबार्दी पर चैन नहीं तो चितौड़ के किले की बबार्दी पर क्यों न हो।
रानी पद्मिनी के जौहर की अमर गाथा सुनाने वाला कितना लाचार और पंगु हो गया है कि वह अपने पर हो रहे रोजमर्रा के हमलों का मुकाबला नहीं कर पा रहा। प्रभाव शाली माफिया इसकी अस्मिता को बेचने पर तुले हुए हैं।
चितौड़गढ़ से जुड़े सोशल मीडिया ग्रुप्स में मुझसे बहुत से लोगों ने चितौड़ किले की बबार्दी पर सरकार की आंखें खुलवाने का आग्रह किया है और आज मैं किले की दुर्दशा पर कलम चला रहा हूँ।
मुझे आश्चर्य है कि चितौड़ के जन प्रतिनिधि ! पुरातत्व विभाग! केन्द्र और राज्य सरकारें! यूनेस्को! सभी किले के हमलावरों के आगे घुटने कैसे टेक चुके हैं।
पर्यटन बूम के बीच ही पिछले कुछ दिनों में अवैध निर्माण कुकरमुत्तों की भांति बढ़ रहे हैं। इस क्षेत्र में वर्तमान में करीब सात दर्जन से ज्यादा अवैध निर्माण कार्य तेजी से चल रहे हैं।
पुरातत्व और ऐतिहासिक महत्व के संरक्षित दुर्ग पर पिछले कुछ दिनों में अवैध निर्माण और अतिक्रमण बेखौफ चल रहे हैं। होटल! हैंडीक्राफ्ट वेबसाइट से जुड़े लोगों ने तो हद की सीमा पार करते हुए एक ही रात में एक दर्जन से ज्यादा ट्रैक्टरों से निर्माण सामग्री का ढेर जमा लिया । विशेष तौर पर रामपाल दरवाजे से लेकर मीरा मंदिर तक के क्षेत्र में इस समय अवैध निर्माण किये जा रहे हैं। इसी के समीप 18 मंजिला रेस्टोरेंट अभी हाल ही में बनाया गया है। साथ ही दुर्ग पर बने बयां माता मंदिर के आसपास इन दिनों करीब सात दर्जन से ज्यादा निर्माण कार्य चल रहे हैं।
इस क्षेत्र में पिछले कुछ ही समय पूर्व अवैध रूप से दो मंजिला धर्मशाला का निर्माण भी करवाया जा चुका है।
प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1959 तक संबंधी अधिनियम एवं संशोधित अधिनियम 2010 जिसमें केंद्रीय अभिरक्षित सीमा में से लगे 100 मीटर तक का क्षेत्र एवं उसके पेटे 2000 मीटर तक का क्षेत्र खनन एवं निर्माण दोनों के लिए निषेध घोषित किया गया है। इन अधिनियमों की किले पर धज्जिÞयाँ उड़ाई जा रही हैं। इस अधिनियम को तोड़ने की हद तो उसे समय देखने को मिली जब दुर्ग की बुर्ज पर ही दीवार बना दी गई।
चितौड़ के स्थानीय जन प्रतिनिधियों !सामाजिक संस्थाओं ! या जिÞला प्रशासन ! से तो किले को कोई उम्मीद नहीं। अब तो राज्य और केन्द्र सरकार से ही कुछ उम्मीद रखी जा सकती है।
सामग्री सौजन्य:आकाश शर्मा