दरगाह में चादर चढ़ाना आस्था, दिखावा या मजबूरी

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अजमेर में उर्स में मोदी-खड़गे सहित कई नेताओं की चादर चढ़ाई गई

अजमेर में चल रहे सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के सालाना उर्स में इन दिनों राजनेताओं की चादर चढ़ाने का सिलसिला जारी है। अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई नेताओं की ओर से मजार पर चादर पेश की जा चुकी है। उर्स में चादर पेश करने की परंपरा है। लेकिन क्या जिन नेताओं की ओर से चादर चढ़ाई जाती है, उनकी दरगाह में आस्था है या वह मजबूरी में अपनी ओर से चादर पेश कराते हैं।

यह सवाल इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष या विपक्ष के नेता जैसे बड़े नेताओं की चादर तो उर्स में उनकी पार्टी के नेता और मंत्री ही लेकर आते रहे हैं। सुरक्षा कारणों और जायरीन की भीड़ के के कारण उनका उर्स में आना संभव नहीं होता। इसीलिए आज तक किसी भी प्रधानमंत्री ने पद पर रहते हुए उर्स के दौरान यहां आकर चादर नहीं चढ़ाई है। लेकिन पिछले कुछ सालों से ऐसा सिलसिला बन गया है कि राष्ट्रीय स्तर के अधिकांश नेता भी अपनी चादर समर्थकों के साथ चढ़ाने के लिए भेज देते हैं। इसमें भी इस बात की गारंटी नहीं होती कि संबंधित नेता ने ही अपने समर्थकों को चादर दी भी है या उसने अपनी मर्जी से पेश कर दी। कुछ नेता तो दिल्ली या जयपुर में चढ़ाने के लिए चादर देते समय उसकी तस्वीर खिंचवाकर मीडिया को जारी करते हैं।

ताकि बिना अजमेर आए ही उन्हें इस बात का प्रचार मिल जाए कि उन्होंने दरगाह में चादर पेश की है। लेकिन कई नेताओं की ऐसी तस्वीर भी सामने नहीं आती है। लेकिन उनके नाम से चादर चढ़ाई जाती है। इस बारे में एक खादिम का कहना था कि कई बार नेताओं के स्थानीय समर्थक या खुद खादिम भी उनसे फोन पर चादर चढ़ाने की इजाजत लेकर अपनी ओर से चादर पेश कर देते हैं। इससे नेता और खादिम दोनों को ही मीडिया में प्रचार मिल जाता है। तो, क्या राजनीतिज्ञों की ओर से चादर चढ़ाना आस्था नहीं बल्कि महज दिखावा या कुछ मजबूरी होती है?

इस बार भी उर्स में अब तक प्रधानमंत्री मोदी की ओर से केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू चादर चढ़ा चुके हैं। इनके अलावा केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह,कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला,राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट, राजस्थान के पूर्व मंत्री शांति धारीवाल, आरएसएस मुस्लिम मंच के इंद्रेश कुमार सहित कई नेताओं की ओर से चादर चढ़ाई जा चुकी है। प्रधानमंत्री की ओर से तो चादर चढ़ाने की परंपरा पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक निभाई जा रही है। लेकिन कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के लिए चादर चढ़ाना या चढ़वाना वोटों के लिहाज से भी जरूरी हो जाता है। अगर आपकी आस्था है तो खुद आइए ना चादर चढ़ाने, क्यों किसी और नेता के साथ भेजते हैं।

उर्स जैसे मौके मुसलमानों को राजनीतिक संदेश देने के लिए भी इस्तेमाल किए जाते हैं। हालांकि भाजपा के सामने मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने का कोई संकट नहीं है,क्योंकि उसे पता है कि वह कुछ भी कर ले। मुसलमान वोटों का उसे कुछ अंश ही मिल पाएगा। लेकिन फिर भी वह सबका साथ,सबका विकास और सबका विश्वास के नारे को हकीकत में दिखाने के लिए ऐसा करती है। इसीलिए प्रधानमंत्री सहित कई भाजपा नेताओं की ओर से उर्स में चादर चढ़ाई जाती है। लेकिन इस इस तरह समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी की ओर से चढ़ाई जाती है, तो उसे दिल्ली से केंद्रीय मंत्री लेकर आते हैं। जबकि पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की चादर उनके निजी सहायक शिवकुमार लेकर आते थे।लेकिन जब भी कांग्रेस के प्रधानमंत्री या सोनिया गांधी की चादर आई,राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित केंद्र और राज्य के कई नेता साथ आते रहे हैं। मंगलवार को भी जब कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे की चादर लेकर भी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा,नेता विपक्ष टीकाराम जूली और कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सांसद इमरान प्रतापगढ़ी सहित कई नेता अजमेर पहुंचे।

कांग्रेस को पता है उसके लिए मुसलमान वोटों की कितनी अहमियत है। लेकिन कई राज्यों में जहां क्षेत्रीय दल मजबूत है। वहां के नेता भी मुस्लिम वोटों के लिए उर्स में चादर का सहारा लेते हैं। जैसे महाराष्ट्र में शरद पवार, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव, बिहार में नीतीश कुमार पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी। हालांकि इस बार नीतीश और बनर्जी की चादर नहीं चढ़ी है। बहरहाल,यह बात मुस्लिम को भी समझनी होगी कि उसमें किस नेता की चादर आस्था के साथ और किसकी चादर दिखावे या वोटों की मजबूरी के लिए पेश की जाती है।

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