डोटासरा-राठौड़ में तेरी औकात-मेरी औकात का खेल

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लोकतंत्र में औकात तो नेताओं को मतदाता दिखाते हैं

राजस्थान के दो नेता इन दोनों औकात, औकात खेल रहे हैं। इनमें से एक भाजपा नेता पार्टी से विस्थापित होने के बाद पुनर्स्थापना के प्रयास में है, तो दूसरे कांग्रेसी नेता संगठन के पुनर्गठन में विस्थापित हो सकते हैं। भाजपा नेता का नाम है राजेंद्र सिंह राठौड़ और कांग्रेस के नेता हैं प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा। गमछा डांसर के रूप में पहचाने जाने वाले डोटासरा ने अपने गृह जिले सीकर का संभागीय मुख्यालय और नीम का थाना को जिला खत्म करने के बाद सीकर में कहा कि भाजपा की औकात नहीं है कि वह संभाग और जिले रद्द कर दें। हम उनके घुटने दिखा देंगे और भजनलाल सरकार के कील ठोक देंगे। यह संभाग और जिले वापस बनेंगे।

डोटासरा बयान पर भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने यह कहते हुए उन्हें उनकी औकात दिखाई की उपचुनाव में कांग्रेस की औकात सामने आ गई है। बेहतर हो वह खुद की गिरेगान में झांक लें। राठौड़ ने कहा कि उपचुनाव में कांग्रेस की बागडोर और भागदौड़ डोटासरा के पास थी। यानी राठौड़ के शब्दों में जनता ने कांग्रेस के साथ-साथ डोटासरा को भी उनकी औकात दिखा दी। यूं सीकर का संभाग मुख्यालय छिनना डोटासरा की जड़ों पर हमला जैसा ही है। उन्होंने संभाग बनने पर खुद उसका श्रेय लिया था। लेकिन अब खत्म होने के बाद जनता के सवालों का जवाब भी उन्हें ही देना होगा।

डोटासरा जल्दी ही अध्यक्ष पद से विदा हो सकते हैं। संगठन चुनाव में उनका दोबारा अध्यक्ष बनना मुमकिन है। यानी वह जल्दी इस पद से विस्थापित हो जाएंगे। उधर, राजेंद्र सिंह राठौड़ विधानसभा सीट चुरु से बदलकर तारानगर करने के चक्कर में चुनाव हार कर भाजपा में अपना कद और पद दोनों ही गंवा बैठे हैं। विपक्ष के नेता रहे राठौड़ के लिए पहले कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा उन्हें उपचुनाव में उतारेगी या राज्यसभा में भेजेगी। लेकिन दोनों ही जगह उनके नाम पर विचार नहीं किया गया।

अब हालात ये हैं कि उनका नाम आरपीएससी अध्यक्ष के पद तक के लिए लिया जाने लगा हैं। जिस पर नियुक्ति भले ही राजनीतिक होती हो,लेकिन अध्यक्ष बनने के बाद व्यक्ति का राजनीति से दूर-दूर तक रिश्ता नहीं रहता। जबकि विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें मुख्यमंत्री पद तक का दावेदार माना जा रहा था। इधर संगठन चुनाव में भाजपा ने विभिन्न पदों के लिए जो उम्र सीमा तय कर दी है, वह भी राठौर के लिए परेशानी का सबक बन सकती है वह 70 साल की होने को है। ऐसे में उन्हें भाजपा किसी बोर्ड निगम का अध्यक्ष बनाकर ही संतुष्ट कर सकती है।

उधर, डोटासरा का पीसीसी अध्यक्ष पद भविष्य में जाना तय माना जा रहा है। सवाल ये भी एक ही वो किस आधार पर सीकर को संभाग और नीम का थाना को वापस जिला बनाने का खम ठोक रहे हैं। यह तय है कि भाजपा सरकार इस मुद्दे पर किसी भी हालत में यू टर्न नहीं लेगी, क्योंकि अगर एक संभाग या जिले को वापस बनाया गया। तो दूसरे जिलों में भी आंदोलन के आग भड़केगी। विधानसभा चुनाव होने में अभी 4 साल है। लगता है डोटासरा को अभी से उम्मीद है कि कांग्रेस सरकार फिर बनेगी और सभी संभाग और जिलों को वापस बना देगी।

राजनीति में अगले दिन का भरोसा नहीं होता है। वहां अगर डोटासरा को 4 साल बाद सत्ता का सपना दिख रहा हो,तो इसे मुंगेरीलाल का हसीन सपना ही कहा जाएगा। वैसे कांग्रेस के कई नेताओं ने यह सपना अभी से देखना शुरू कर दिया है। बहरहाल तेरी औकात मेरी औकात,तेरा गिरेबां, मेरा गिरेबां के विवाद में दोनों नेता शायद उस मतदाता को भूल गए हैं, जो वास्तव में नेताओं को उनकी औकात बताता है। लेकिन अब शब्दों की मयार्दा की राजनीति में कोई जगह नहीं है। पहले फिल्मों में औकात, गिरेबां, कील ठोक दूंगा, नालायक, निकम्मा जैसे शब्द बोलते थेँ अब ये काम राजनीति के नायक कर रहे हैं। भाषण में जितनी गालियां, जनता की तालियां।

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