ब्यावर के विकास की रफ़्तार शंकर सिंह रावत के हाथ में तो ब्रेक पत्रकारों के

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आने वाले चार साल तय करेंगे जिले का भविष्य

राज्य का नवनिर्मित जिला ब्यावर बेहद प्रसन्न है। उत्साह में भी। कल जिला पत्रकार संघ के जन्मदिन पर आयोजित समारोह में जाने का अवसर मिला। समारोह में पत्रकार! राजनेता! व्यापारी! अधिकारी! और समाज सेवी सभी मौजूद थे। सबकी आंखों में सपनों का सैलाब उमड़ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे ब्यावर का जिला बनाए जाना ईश्वर का दिया गया अद्दभुत वरदान हो।

मित्रों! कुछ लोगों की आंखों में तो ऐसी चमक थी ,जैसे उस पिता की आँखों मे होती है जिसके घर मे कई जवान बेटियां हों और सभी के लिए होनहार रिश्ते तय हो जाएं। बडी लड़की के लिए कलेक्टर मिल जाए! उससे छोटी के लिए पुलिस अधीक्षक! उनसे छोटी सभी बेटियों के लिए भी आई ए एस ! आई पी एस! आर ए एस और आर पी एस अधिकारी बतौर दामाद मिल जाएं।

वास्तव में ब्यावर की खुशी का कोई ठिकाना नहीं। ठीक इसके विपरीत केकड़ी के लोगों की स्थिति उस पिता जैसी है जिसके घर में जवान बेटियां तो ब्यावर जितनी ही हैं मगर जिनके रिश्ते तय होने के बाद टूट गए हों। मानो सगाई होने के बाद टूट गई हो। कई बेटियाँ तो ऐसी भी हैं जो अपने पतियों के साथ लिवइन में भी रह ली हैं। अब उनके सुखद भविष्य के लिए केकड़ी परेशान है।

ब्यावर का जिÞला बनाए जाना क्यों कि उस बूढ़े पिता के जैसा है जिसने खून पसीने से अपने सपनों की परवरिश की! उसे अभावों और संघर्षों से पाला! लाठियां खाईं! पद यात्राएं निकालीं! आंदोलन किए! सत्ताधीशों से लोहा लिया! पार्टी बाज नेताओं की नफरतों का सामना किया! यह ब्यावर ही था जिसने मजबूत पिता की तरह अपने सपनों की संतानों को साकार स्वरूप दिया।

इसके लिए ब्यावर को मैं नमन करता हूँ। नमन करता हूँ उन सभी राजनेताओं को जिनके अथक प्रयासों से ब्यावर को जिला बनाया जा सका। राजस्थान में यही अकेला ऐसा शहर है जिसने जिला बनाए जाने के लिए 40 साल तक अपने शरीर को तिलपट्टी की तरह तपाया।

हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के! इस शहर को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के?

दोस्तों! जो चीज अनचाहे मिल जाती है उसका भविष्य नहीं होता। दूदू! केकड़ी! और अन्य शहर इसके उदाहरण हैं मगर ब्यावर के सपने को अब जब साकार होने का मौका मिल ही गया है तो ब्यावर के लोगों के दायित्व पहले से जिÞयादा बढ़ गए हैं। जितना संघर्ष इस शहर के लोगों ने पहले किया उससे अधिक अब करना होगा।

ब्यावर इतिहास की एक अद्दभुत धरोहर है। आजादी की लड़ाई हो या आजादी के बाद की! ब्यावर के लोगों ने हर दौर में इतिहास रचा है। और मुझे यकीन है आने वाले कुछ ही सालों में ब्यावर देश के नक़्शे पर सबसे स्मार्ट सिटी के रुप में विकसित होगा।

ब्यावर में आजादी के बाद जितने भी विधायक बने उनकी भूमिका पर किसी को कोई शिकायत नहीं। सभी ने बेहतरीन पारी खेली मगर वर्तमान विधायक शंकर सिंह रावत उन सौभाग्यशाली राजनेताओं में से एक हैं जिन्होंने लंबी पारी बड़े बेहतरीन अंदाज में खेली है। आज का ब्यावर अब उनके हाथों में है। ब्यावर आने वाले कुछ सालों में अपने विकास की जमीन तैयार करेगा। यह जमीन जितनी उपजाऊ होगी सपने उतने ही फलेंगे! पल्लवित पुष्पित होंगे! कम से कम आने वाले चार सालों के लिए बागवानी की जिÞम्मेदारी तो शंकर सिंह रावत के कन्धों पर ही है।

रावत ने अब तक ब्यावर के लिए क्या किया? क्या नहीं कर पाए यह सब एक तरफ है। अब वह आने वाले चार सालों में जो करेंगे वह ब्यावर की असली जन्मपत्री होगी।

इस शहर में सियासतदानों ने जो किया वह किसी से छिपा नहीं। अच्छा बुरा जो भी हुआ उस पर बहस नहीं की जाए तो बेहतर होगा। बतौर विधायक शंकर सिंह रावत के बहीखाते खोलने टटोलने का अब कोई मतलब नहीं। अब तो समय है विधायक शंकर सिंह रावत के साथ खड़े होकर उनके प्रयासों में जान फूंकने का।

दोस्तों! यह खुला सच है कि आने वाले ब्यावर का मुकद्दर शंकर सिंह रावत के ही हाथों में है। विकास के ताले की चाबी उनके ही पास है। यही वजह है कि उन पर विश्वास रखते हुए ब्यावर को सियासती मतभेदों से दूर रह कर उनका साथ देना होगा। विरोध उन पर नियंत्रण रखने भर के लिए हो सकते हैं मगर बाधा खड़ी करने के लिए नहीं।

खास तौर से मैं अपने पत्रकार साथियों से करबद्ध आग्रह करता हूँ कि ब्यावर के सपनों को सही दिशा देने के लिए वे सब भी एक जाजम पर आ जाएं! हम सियासत के जन सम्पर्क अधिकारी नहीं! ना ही हैं राजनेताओं के बंधुआँ मजदूर ! हमारे चरित्र को चमकाने के लिए हम स्वयं काफी हैं लेकिन हमारा सकारात्मक होना ही हमारे शहर के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा। राजनेताओं को रफ़्तार देने के लिए खुला छोड़ दें मगर ब्रेक कहाँ लगाने हैं इस बात की भी सावधानी रखें। आज इतना ही। फिर कभी कुछ और।

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