जिला नहीं! मंत्री नहीं! तो क्या केकड़ी को समझा जाएगा दोहम?
अजमेर जिले के तीन की जगह अब दो टुकड़े ही होंगे। केकड़ी फिर से अजमेर के सीने में ही धड़केगा। ब्यावर जरूर अजमेर के दिल से अलग होकर धड़कने को मजबूर है। जो चीज बिना मनोकामना के मिल जाती है उसका हाल केकड़ी जैसा और जो लंबी तपस्या के बाद मिलती है उसका हाल ब्यावर जैसा होता है।
ब्यावर को जिÞला बनाया गया मगर इसके लिए ब्यावर के लोगों को कितने पापड़ बेलने पड़े यह सिर्फ़ ब्यावर ही जानता है। आजादी के बाद से ही ब्यावर को जिÞला बनाए जाने के लिए यहाँ के लोगों ने संघर्ष शुरू कर दिया था। सैंकड़ों आंदोलन हुए। कई पद यात्राएं हुईं। एक महिने तक ब्यावर बन्द रहा। कांग्रेस और भाजपा के नेताओं ने इसके लिए क्या नहीं किया? अब जाकर इस कर्मठ शहर को उसका हक मिल सका है। इसके लिए भले ही वर्तमान विधायक शंकर सिंह रावत बधाई के पात्र हैं मगर इनसे पहले जितने भी विधायक रहे उनका उनका योगदान किसी भी तरह से कम नहीं आंका जा सकता।
अब ब्यावर जिला तो बन गया है मगर जिले का तरतीब से शुरू होना भी एक चुनौती है। उम्मीद की जाती है कि शंकर सिंह रावत इस भूमिका को बेहतरीन तरीके से निभाएंगे। उनका कार्यकाल इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाए यही कामना है।
अब आइए बात करें केकड़ी के मुकद्दर की। केकड़ी को पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने जिला बनकर अप्रत्याशित सौगात दी। अनचाहा और अनसोचा ईनाम मिला। जब नए जिले बनाए जाने के कयास लगाए जा रहे थे तब केकड़ी कहीं कल्पनाओं में नहीं था। इसकी वजह यह थी कि यह भौगोलिक रूप से और आबादी के हिसाब से जिले के लिए निर्धारित किसी भी शर्त को पूरा नहीं करता था। जब इसे जिला बनाया गया तो उसके पीछे सिर्फ़ एक मकसद था कि तत्कालीन मंत्री डॉ रघु शर्मा को चुनाव जितवाने के लिए एक चमत्कारी उपलब्धि से नवाज दिया जाए। रघु शर्मा ने जिÞला बनते ही, युग पुरुष बनने सपना पाल लिया। ताकतवर राष्ट्रीय नेता की छवि बनने की गलत फहमी उन्होंने पाल ली।
केकड़ी के मुकद्दर में सिर्फ उनका वजूद ही तय हो चुका है यह मान कर उन्होंने चुनाव लड़ा मगर जिला अस्पताल और नए जिले का निर्माण उनके काम नहीं आया। ब्रह्मपुत्र शत्रुघ्न गौतम ने उनको और उनकी राष्ट्रीय नेतागिरी वाली छवि को पेंदे बैठा दिया। जिला बनाए जाने पर केकड़ी के मतदाताओं ने उनका किसी भी प्रकार से शुक्रिया अदा नहीं किया। करते तो राजऋषि हारते नहीं। इससे यह तो तभी सिद्ध हो गया था कि केकड़ी को जिÞला बना दिये जाने से केकड़ी के विकास की रफ़्तार में कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा।
यह सर्वविदित सत्य है कि प्रीमेच्योर बेबी की उम्र जिÞयादा नहीं होती।जच्चा और बच्चा तब ही स्वस्थ और मजबूत होता है जब प्रसव की निर्धारित शर्तों को पूरा करता हो।
खैर! जो हुआ सो हुआ मगर मैं यहाँ बता दूँ कि केकड़ी को जिÞला यदि नहीं बनाया गया तो केकड़ी के लोगों को निराश होने की जरूरत नहीं। इस फैसले के बाद भी केकड़ी का चहुमुखी विकास हो सकता है यदि उनका नेता मजबूत हो। नेता कमजोर हो और केकड़ी जिला बन भी जाए तो उसका विकास नहीं हो सकता।
केकड़ी का विकास होगा मगर इसके लिए मुख्यमंत्री भजनलाल को केकड़ी के लिए अतिरिक्त संवेदनशील होना पड़ेगा।
केकड़ी कोई मामूली क्षेत्र नहीं। गहलोत के कार्यकाल में केकड़ी विधायक डॉ रघु शर्मा मिनी मुख्यमंत्री माने जाते रहे। सरकार में उनका कद बेहद शक्तिशाली रहा मगर जिस नेता ने उन्हें विधानसभा से बाहर का रस्ता दिखा दिया उसका कद आज क्या है?मामूली सा विधायक! क्या यह केकड़ी के लिए शुभ संकेत हैं?क्या डॉ रघु शर्मा जैसे दिग्गज को हराने वाले नेता का सियासती कद सिर्फ़ विधायक जितना ही होना चाहिए? मुख्यमंत्री भजनलाल को इस बारे में गंभीरता से विचार करना होगा और सच्चाई यह है कि करना पड़ेगा।
केकड़ी के साथ हर तरह की नाइंसाफी नहीं की जा सकती। न वह जिÞला रहे! न उसे कोई मजबूत मंत्री मिले! न कोई अतिरिक्त बजट! तो बात साफ है कि गहलोत सरकार के समय केकड़ी को उसके पूरे हक मिले हुए थे।
मेरा यह मानना है कि जिन शहरों को जिला बनाये जाने से वंचित किया गया है उनके विधायकों को सत्ता के अतिरिक्त फायदे देकर क्षति पूर्ति करनी चाहिए। उन विधानसभा क्षेत्रों को अतिरिक्त बजट! अतिरिक्त सम्मान! अतिरिक्त महत्व देकर सम्मान देना चाहिए।
कांग्रेस इस मुद्दे का पूरा फायदा उठाएगी। आंदोलन होंगे और जनता को उकसा भी जाएगा। खास तौर से भाजपा के वह विधायक जिनके जिÞलों को वापस लिया गया है जनता उनसे सवाल पूछेगी। ऐसे में यदि उनका सम्मान नहीं बढ़ाया गया तो उनका क्षेत्र में जाना मुश्किल हो जाएगा।
बात केकड़ी की चल रही थी इसलिए बता दूं कि अब डॉ रघु शर्मा अपनी राजनीति को चमकाने और धार देने के लिए पूरे दम खम के साथ मैदान में उतरेंगे। ऐसे में यदि शत्रुघ्न गौतम को मजबूत नहीं बनाया गया तो पार्टी के लिए यह आत्मघाती होगा। यह तय है।