जिसका सूरज कभी अस्त नहीं होता था उसका सूरज कैसे अस्त हुवा ?

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अर्थव्यस्था के सिद्दांतों की अवेहलना करने के कारण ब्रिटिश राज जिसका सूरज कभी अस्त नहीं होता था उसका सूरज कैसे अस्त हुवा ?

ब्रिटिश साम्राज्य में सूरज कभी अस्त नहीं होता। .इस वाक्यांश का प्रयोग 18वीं से 20वीं शताब्दी तक किया जाता था। जिसका उपयोग ब्रिटिश साम्राज्य की विशालता का वर्णन करने के लिए किया जाता था, जो दुनिया भर में फैला हुआ था और इसमें कई महाद्वीपों के क्षेत्र शामिल थे | साम्राज्य के कम से कम एक क्षेत्र पर सूरज हमेशा चमकता रहता था क्योंकि वह बहुत बड़ा था। अपने चरम पर, ब्रिटिश साम्राज्य ने पृथ्वी के लगभग 25% भूभाग को नियंत्रित किया।  यूके का 1929 में कर्ज-से-जीडीपी अनुपात 160% होना और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के बीच का संबंध ऐतिहासिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से समझा जा सकता है।

1929 में, ब्रिटेन को ग्रेट डिप्रेशन (महामंदी) और उच्च ऋण का सामना करना पड़ा। इसके पीछे मुख्य कारण थे :

  • प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के बाद का भारी खर्च।
  • व्यापारिक गतिविधियों में गिरावट और बढ़ता आर्थिक दबाव।
  • उपनिवेशों पर बढ़ता आर्थिक निर्भरता

ब्रिटेन की कमजोर अर्थव्यवस्था ने इसे भारत जैसे बड़े उपनिवेशों पर अधिक आर्थिक निर्भर बना दिया। ब्रिटेन भारत से कच्चा माल और राजस्व निकालने पर अधिक जोर देने लगा।

  • ब्रिटेन ने भारत से भारी कर (Taxes) और संसाधन निकालना जारी रखा ताकि अपने कर्ज को चुकाने में मदद कर सके।
  • चाय, कपास, नमक, और अन्य कच्चे माल के उत्पादन और निर्यात से ब्रिटेन ने अपनी अर्थव्यवस्था को सहारा देने की कोशिश की।
  • भारतीय किसानों और व्यापारियों को अत्यधिक कर प्रणाली और महंगे आयातित उत्पादों का सामना करना पड़ा, जिससे गरीबी बढ़ी।
  • ब्रिटेन की आर्थिक कमजोरी और भारत पर आर्थिक निर्भरता ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को और गति दी।
  • महात्मा गांधी ने ब्रिटिश आर्थिक नीतियों को चुनौती देने के लिए स्वदेशी आंदोलन (उदाहरण: खादी का उपयोग) और नमक सत्याग्रह जैसे कदम उठाए।
  • ब्रिटिश सरकार की कठोर आर्थिक नीतियों ने भारतीय जनता में आक्रोश बढ़ाया, जिसने ब्रिटेन के आर्थिक शोषण के खिलाफ व्यापक जनसमर्थन पैदा किया।
  • 1929 की महामंदी ने ब्रिटेन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर कर दिया। इसकी सैन्य और आर्थिक शक्ति घटने लगी।
  • इस स्थिति का फायदा भारतीय नेताओं ने उठाया और स्वतंत्रता के लिए अपनी मांगों को तेज कर दिया।
  • 1939-1945 में, जब ब्रिटेन ने दूसरे विश्व युद्ध में प्रवेश किया, उसकी आर्थिक स्थिति और खराब हो गई। युद्ध ने ब्रिटेन को भारी कर्ज में डुबो दिया।
  • युद्ध के दौरान भारतीय नेताओं ने ब्रिटेन को चुनौती दी, और ब्रिटेन के पास भारत को आजाद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
  • ब्रिटेन का उच्च कर्ज-से-जीडीपी अनुपात और आर्थिक संकट ने उसे भारत जैसे उपनिवेशों पर अधिक निर्भर बना दिया। लेकिन यही निर्भरता, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को और ताकतवर बनाने में मददगार साबित हुई।
  • भारतीय नेताओं ने ब्रिटेन की कमजोर स्थिति का फायदा उठाकर स्वतंत्रता की मांग को और तेज किया।
  • ब्रिटेन की आर्थिक कमजोरी और भारतीय जनता पर बढ़ते आर्थिक दबाव ने स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी। 1947 में भारत की आजादी, ब्रिटेन की घटती आर्थिक और राजनीतिक ताकत का परिणाम थी, जिसका आधार 1929 की आर्थिक परिस्थितियों में भी देखा जा सकता है।

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