आज का चीन-अमेरिका व्यापार संबंध 1920 के दशक में अमेरिका-ब्रिटेन व्यापार संबंधों जैसा ही है। उस समय ब्रिटेन और अमेरिका के बीच एक असंतुलित व्यापारिक संबंध था, जिसमें अमेरिका अधिक निर्यात करता था और ब्रिटेन अधिक आयात करता था। इसी तरह, आज के समय में भी अमेरिका और चीन के बीच भारी व्यापार असंतुलन है, जिसमें अमेरिका चीन से अधिक आयात करता है, जबकि चीन को अमेरिका से निर्यात करना पड़ता है।
1929 में ब्रिटेन का कर्ज/जीडीपी अनुपात 160% था। इसका मतलब यह है कि ब्रिटेन का कर्ज अपने राष्ट्रीय उत्पादन (GDP) के मुकाबले बहुत अधिक था। यह स्थिति वित्तीय अस्थिरता का संकेत देती है, क्योंकि जब कोई देश अपना कर्ज चुकाने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा हिस्सा खर्च करता है, तो यह लंबे समय तक आर्थिक दबाव डालता है और संकट का कारण बन सकता है।
1920 के दशक में टैरिफ (आयात शुल्क), यानी आयात पर लगाए गए करों ने व्यापार असंतुलन को और बढ़ा दिया। 1929 में अमेरिका ने उच्च टैरिफ नीतियाँ लागू की, जिसका उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों की रक्षा करना था, लेकिन इसका उल्टा प्रभाव पड़ा। इससे ब्रिटेन और अन्य देशों से व्यापार घटने लगा और इसके परिणामस्वरूप ऋण डिफ्लेशन (debt deflation) हुआ।
ऋण डिफ्लेशन का मतलब है कि जब देश पर भारी कर्ज होता है और अर्थव्यवस्था में गिरावट आती है, तो देश अपने कर्ज को चुकाने में असमर्थ हो जाता है, जिससे महंगाई गिरती है, व्यापार घटता है, और पूरे देश की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। यह स्थिति “महान मंदी” (Great Depression) का कारण बनी, जो 1929 से 1939 तक चली और पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया।
जैसे 1920 के दशक में अमेरिका और ब्रिटेन के बीच व्यापारिक असंतुलन और कर्ज की स्थिति ने महान मंदी (Great Depression) का कारण बनी, वैसे ही आज चीन और अमेरिका के बीच व्यापार असंतुलन और कर्ज के उच्च स्तर पर स्थितियां बहुत समान हो सकती हैं।
ब्रिटेन और अमेरिका के बीच उच्च टैरिफ ने व्यापार असंतुलन को और बढ़ाया और वैश्विक आर्थिक संकट का कारण बना। चीन और अमेरिका के बीच भी व्यापारिक तनाव और टैरिफ़ युद्ध हो सकता है, जो वैश्विक आर्थिक मंदी का कारण बन सकता है।
वर्तमान में विभिन्न देशों का कर्ज-से-जीडीपी अनुपात (Debt-to-GDP Ratio) विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जैसे आर्थिक विकास, सरकारी खर्च, और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियाँ। नीचे कुछ प्रमुख देशों के कर्ज-से-जीडीपी अनुपात की जानकारी दी गई | यह आंकड़े समय के साथ बदल सकते हैं, क्योंकि देशों की आर्थिक नीतियाँ, वैश्विक आर्थिक परिस्थितियाँ, और अन्य कारक प्रभावित करते हैं। अधिक विस्तृत और अद्यतन जानकारी के लिए, संबंधित देशों के केंद्रीय बैंक या वित्त मंत्रालय की आधिकारिक रिपोर्ट्स देखें। यहां एक तालिका दी गई है, जो वह देशों की सूची प्रस्तुत करती है जिनका कर्ज-से-जीडीपी अनुपात 100% से अधिक है और वैश्विक कर्ज़ के जाल (Debt Trap) के कारणों को समझाने का प्रयास करती है :
देश | कर्ज-से-जीडीपी अनुपात | कर्ज़ के जाल के संभावित कारण |
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जापान | 264% | दीर्घकालिक धीमी आर्थिक वृद्धि, बढ़ती उम्र वाली जनसंख्या, और सरकार द्वारा सामाजिक कल्याण और बुनियादी ढांचे में अत्यधिक खर्च। |
ग्रीस | 173% | वित्तीय संकट, अत्यधिक उधारी, कठोरता उपाय, और यूरोपीय संघ से पुनर्पूंजीकरण पर निर्भरता। |
लेबनान | 151% | राजनीतिक अस्थिरता, उधारी पर अत्यधिक निर्भरता, वित्तीय खराब प्रबंधन और आर्थिक मंदी। |
इटली | 145% | धीमी आर्थिक वृद्धि, उच्च सार्वजनिक खर्च और ऐतिहासिक वित्तीय खराब प्रबंधन के कारण लगातार उधारी। |
पुर्तगाल | 130% | वित्तीय संकट, पुनर्पूंजीकरण, और आर्थिक मंदी के कारण उधारी में वृद्धि। |
संयुक्त राज्य | 132% | उच्च सैन्य खर्च, कर में कटौती, और बढ़ती अनिवार्य खर्च योजनाओं के साथ राजस्व में कमी। |
फ्रांस | 115% | उच्च सार्वजनिक खर्च, कल्याण प्रणाली और राष्ट्रीय बजट को संतुलित करने में आर्थिक चुनौतियां। |
बेल्जियम | 107% | कल्याण कार्यक्रमों की लागत और बाहरी उधारी पर निर्भरता के कारण उच्च सार्वजनिक कर्ज। |
यूनाइटेड किंगडम | 105% | आर्थिक मंदी, कठोरता उपाय, और विशेष रूप से स्वास्थ्य देखभाल और पेंशन पर भारी सार्वजनिक खर्च। |
कनाडा | 100% | सामाजिक कार्यक्रमों पर बढ़ता सरकारी खर्च, उच्च स्वास्थ्य देखभाल लागत और आर्थिक मंदी के कारण उधारी में वृद्धि। |
वैश्विक कर्ज़ के मकड़जाल के कारण:
- अत्यधिक उधारी: कई देश बुनियादी ढांचे, कल्याण, और रक्षा के लिए भारी उधारी लेते हैं, लेकिन उधारी पर उतना लाभ नहीं प्राप्त होता जिससे वे उसे चुकता कर सकें।
- स्थायी बजट घाटा: सरकारी खर्च और राजस्व के बीच निरंतर अंतर को पूरा करने के लिए देश अधिक उधारी लेते हैं, जिससे कर्ज बढ़ता है।
- उच्च ब्याज भुगतान: जैसे-जैसे कर्ज बढ़ता है, ब्याज भुगतान भी बढ़ता है, जो राष्ट्रीय बजट का एक बड़ा हिस्सा खाता है और इससे उधारी का चक्र जारी रहता है।
- वृद्धि होती जनसंख्या: जापान और यूरोप जैसे देशों में वृद्ध होती जनसंख्या को सामाजिक कल्याण और स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता होती है, जो सरकारी वित्त पर दबाव डालती है।
- राजनीतिक अस्थिरता: अस्थिर देशों में सरकारी संचालन के लिए उधारी की आवश्यकता बढ़ जाती है, और वे वित्तीय योजना के बिना कर्ज लेते हैं।
- वैश्विक वित्तीय संकट: वैश्विक मंदी या वित्तीय संकट जैसे 2008 के संकट के कारण राजस्व कम होता है और सरकारी खर्च बढ़ता है, जिससे कर्ज़ बढ़ता है।
- मुद्रा का अवमूल्यन: जो देश विदेशी मुद्राओं में उधारी लेते हैं, उनका कर्ज बढ़ सकता है यदि उनकी घरेलू मुद्रा अवमूल्यित हो जाए।
- संरचनात्मक आर्थिक समस्याएं: स्थिर अर्थव्यवस्था, उच्च बेरोजगारी, या अपर्याप्त बुनियादी ढांचे वाले देश उधारी को कम करने में सक्षम नहीं होते, जिससे कर्ज बढ़ता है।
ये सभी कारक कर्ज़ के मकड़जाल को जन्म देते हैं, जिसमें देश लगातार बढ़ते हुए कर्ज के साथ उलझे रहते हैं, जिससे उधारी का चक्र निरंतर चलता है और वे इसे चुकता करने के लिए बाहरी सहायता पर निर्भर हो सकते हैं |