क्या नए जिलों को रद्द करना भारी पड़ेगा भजन लाल को?
अधिकांश नए जिलों में क्यों जीते भाजपा उम्मीदवार?
राजस्थान का सियासती मौसम अचानक बदलने वाला है। भाजपा की भजनलाल सरकार ने नए जिलों के वजूद को जिस तरह खत्म किया है उसके बाद जमीन का हिलना तय हो चुका है। अमित शाह के अंबेडकर वाले बयान को लेकर उठा तूफान अब गुजर चुका है। नया जिन्न बोतल से बाहर निकल चुका है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जो लावा चुनाव हारने से पहले बोया था वह अब सियासत में हलचल मचाने के लिए हाजिर हो चुका है। उनकी दूरगामी चाल के शिकंजे में भजनलाल की भोली सरकार फंस चुकी है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीका राम जूली ने सरकार की रेल बनाने की घोषणा कर दी है। नए साल के पहले दिन से स्व. मनमोहन सिंह का शोक उठते ही विरोधी अभियान की शुरूआत होगी। डोटासरा ने साफ कर दिया है कि यदि भजनलाल सरकार ने खत्म किए जिले फिर से बहाल नहीं किये तो वह उनकी सरकार आने पर जिले फिर बहाल कर देंगे।
जाहिर है कि कांग्रेस के हाथ मे भजन लाल शर्मा को आईना दिखाने का मौका हाथ लग चुका है।
कांग्रेस सरकार के वक्त बने नए जिलों में से 9 जिलों और 3 संभागों को भजनलाल सरकार ने कैंसिल कर दिया है। अशोक गहलोत ने मार्च 2023 में इन जिलों और संभागों को बनाने का ऐलान किया था।
कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने कह दिया है कि चुनाव से पहले नए जिले और संभाग बनाए गए थे। इनकी उपयोगिता नहीं थी। वित्तीय संसाधन और जनसंख्या के पहलुओं को अनदेखा किया गया। अनेक जिले ऐसे थे, जिनमें 6-7 तहसीलें भी नहीं थी।
गहलोत सरकार द्वारा बनाए गए दूदू, केकड़ी, शाहपुरा, नीमकाथाना, गंगापुरसिटी, जयपुर ग्रामीण, जोधपुर ग्रामीण, अनूपगढ़, सांचौर जिलों को निरस्त कर दिया गया है। वहीं बालोतरा, ब्यावर, डीग, डीडवाना, कोटपूतली बहरोड़, खैरथल-तिजारा, फलोदी और सलूंबर जिले बने रहेंगे। इसके साथ ही पाली, सीकर, बांसवाड़ा संभाग भी खत्म कर दिए गए हैं।
राजस्थान में 50 जिले थे। सरकार के इस फैसले के बाद अब राज्य में 41 जिले ही रह जाएंगे। वहीं 10 संभाग की जगह 7 संभाग अस्तित्व में रहेंगे।
यहाँ यह भी बता दूं कि जिलों को रिव्यू करने के लिए मंत्रियों की कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी ने भी ललित पंवार कमेटी की सिफारिश को आधार बनाकर मापदंडों पर खरा नहीं उतरने पर जिले कैंसिल करने सिफारिश की थी। इसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है।
जनगणना को देखते हुए 31 दिसंबर से पहले यह फैसला करना जरूरी था। सरकार अगले सप्ताह जिलों के नए सिरे से सीमांकन पर नोटिफिकेशन जारी करेगी। 9 जिलों से अब कलेक्टर, SP और जिला स्तरीय अफसर हटेंगे, इन जिलों में बने हुए जिला स्तरीय पद भी खत्म हो जाएंगे।
अब सवाल यह नहीं बचा है कि गहलोत ने अचानक चुनाव से पहले जिलों की जो वर्षा कर दी थी वह जायज थी या नहीं? चुनाव जीतने के लिए चली गई चाल व्यवहारिक थी या नहीं?अब तो सवाल यह है कि कांग्रेसी आंदोलन का मुकाबला कैसे होगा और भजन लाल की सरकार पर इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे?
दोस्तों! चुनाव से पहले जब नए जिले बनाये गए थे उसके बाद कम से कम उन चुनाव क्षेत्रों में तो कांग्रेस को चुनाव जीतना था जिनमें जिÞले बनाए गए थे मगर जिलों का जादू धरा रह गया था। अधिकांश नए जिलों में भी कांग्रेस के उम्मीदवार हारे। दूदू और केकड़ी में कांग्रेस का जो हाल हुआ सामने है। केकड़ी में डॉ रघु शर्मा को भाजपा के शत्रुघ्न गौतम ने जिस अपमान जनक तरीके से हराया वह सामने है। ऐसे में अब कांग्रेस आंदोलन का जो झुनझुना लेकर प्रदेश भर में बजाने जा रही है उसका कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं।
मुझे तो यह और लग रहा है कि कहीं हटाए गए जिलों के विरोध को दबाने के लिए उन जिलों के विधायकों को मंत्री न बना दिया जाए।
फिलहाल निकायों के चुनाव परिणाम यह फैसला कर देंगे कि कांग्रेस इस मुद्दे पर कितना असर डाल पाती है। अंत में एक बात और कि चुनावों में नए परिसीमन के बाद क्या स्थिति बनेगी?