चीन में 2 साल की बॉन्ड यील्ड 1% से नीचे जाने वाली है।

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चीन की 2-वर्षीय यील्ड

विश्व अर्थव्यवस्था और आप पर संभावित प्रभाव

अगर चीन की 2-वर्षीय यील्ड (सरकारी बॉन्ड पर ब्याज दर) 1% से नीचे जाने वाली है, तो इसका मतलब है कि निवेशकों को अपने पैसे पर बहुत कम रिटर्न मिलेगा। इसका असर और मतलब कुछ इस तरह हो सकता है:

जब यील्ड इतनी कम हो जाती है, तो यह दिखाता है कि अर्थव्यवस्था में ग्रोथ धीमी हो रही है। निवेशक सोचते हैं कि सरकार ब्याज दरें कम रखेगी ताकि मार्केट को सपोर्ट किया जा सके। कम यील्ड का मतलब है कि निवेशक ज्यादा से ज्यादा सरकारी बॉन्ड खरीद रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह सुरक्षित है। इसे आम तौर पर आर्थिक अनिश्चितता का संकेत माना जाता है। चीन जैसे बड़े देश में 2-वर्षीय यील्ड का इतना गिरना यह इशारा करता है कि वहां निवेशकों को महंगाई बढ़ने की उम्मीद नहीं है। ये डिफ्लेशन का खतरा दिखा सकता है। जब यील्ड इतनी कम होती है, तो यह भी हो सकता है कि स्टॉक मार्केट या अन्य एसेट्स में निवेश का जोखिम ज्यादा हो, इसलिए लोग सरकारी बॉन्ड चुनते हैं।

चीन की 2-वर्षीय यील्ड का 1% से नीचे जाना यह बताता है कि वहां की अर्थव्यवस्था दबाव में है, निवेशक सुरक्षित विकल्प चुन रहे हैं, और चीन सरकार को अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए नीतियां बनानी पड़ेंगी।

डिफ्लेशन का क्या मतलब है ?

कीमतें गिरती हैं, जिससे लोग खर्च करने के बजाय पैसा बचाने लगते हैं। इसका असर यह होता है कि डिमांड और सप्लाई दोनों कमजोर हो जाते हैं। चीन जैसे बड़े निर्यातक देश में डिफ्लेशन का असर न केवल घरेलू बल्कि वैश्विक स्तर पर होता है, खासकर उनकी मैन्युफैक्चरिंग और ट्रेड पर।

डेट डिफ्लेशन स्पाइरल का मतलब: जब डिफ्लेशन होता है, तो कर्ज (debt) का वास्तविक बोझ बढ़ जाता है, क्योंकि ब्याज चुकाना मुश्किल हो जाता है।

  • कर्ज लेने वाली कंपनियां और सरकारें आर्थिक प्रेशर में आ जाती हैं।
  • इससे अर्थव्यवस्था धीमी हो जाती है, और एक नकारात्मक चक्र (negative spiral) शुरू हो सकता है।
  • अगर चीन की डिफ्लेशन की समस्या वैश्विक सप्लाई चेन और व्यापार पर असर डालती है, तो यह अन्य देशों के कर्ज प्रबंधन को भी जटिल बना सकती है।

पश्चिमी देशों (West) के लिए खतरा

  • पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएं, खासकर अमेरिका और यूरोपीय देश, बहुत अधिक कर्ज पर चलती हैं।
  • यदि वैश्विक मांग (global demand) गिरती है, तो इन देशों को अपनी उच्च-उधारी वाली अर्थव्यवस्था बनाए रखना मुश्किल होगा।
  • चीन और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मांग कम होने से पश्चिमी देशों की एक्सपोर्ट और मैन्युफैक्चरिंग पर सीधा असर पड़ेगा।
  • यह वैश्विक मंदी (global recession) को तेज कर सकता है।

आर्थिक ढांचे में जोखिम को नज़रअंदाज़ न करें

यील्ड कर्व क्या कह रहा है?

  • जब छोटी अवधि की यील्ड (2-वर्षीय) गिरती है, तो यह बताता है कि बाजार को आर्थिक ग्रोथ और महंगाई दोनों के गिरने की उम्मीद है।
  • यील्ड कर्व इनवर्टेड (अल्टा-पुल्टा) हो सकता है, जो आमतौर पर आने वाली मंदी का संकेत है।
  • चीन में धीमी ग्रोथ और डिफ्लेशन का मतलब है कि वैश्विक आर्थिक ढांचे में अस्थिरता बढ़ सकती है।
  • पश्चिमी देश, जो अपने कर्ज और खर्च के मॉडल पर निर्भर हैं, को अपनी रणनीतियां बदलनी पड़ेंगी।
  • चीन की 2-वर्षीय यील्ड का 1% से नीचे जाना सिर्फ चीन की समस्या नहीं है; यह पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरा हो सकता है।
  • डिफ्लेशन और धीमी मांग का असर कर्ज-आधारित अर्थव्यवस्थाओं (जैसे अमेरिका और यूरोप) पर गंभीर हो सकता है।
  • यील्ड कर्व हमें बता रहा है: दुनिया को अपने आर्थिक ढांचे की स्थिरता पर ध्यान देना चाहिए और जोखिमों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

 

चीन की 2-वर्षीय यील्ड का 1% से नीचे जाना सिर्फ चीन तक सीमित असर नहीं रखता। यह वैश्विक स्तर पर कई देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।

आइए समझते हैं कौन-कौन से देश इससे प्रभावित हो सकते हैं और कैसे:

उभरते हुए बाजार जैसे भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, और रूस।

चीन कच्चे माल (raw materials) जैसे लोहा, कोयला, और तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। अगर चीन की डिमांड गिरती है, तो इनकी कीमतें भी गिरेंगी।

  • इससे ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, और रूस जैसे देशों को नुकसान होगा, जिनकी अर्थव्यवस्था कमोडिटी एक्सपोर्ट पर निर्भर है।
  • निवेशक उभरते बाजारों से पैसा निकालकर विकसित देशों के सुरक्षित विकल्पों में डाल सकते हैं। इससे इन देशों की करेंसी कमजोर हो सकती है।

 

आसियान देश जैसे थाईलैंड, वियतनाम, मलेशिया, फिलीपींस।

  • चीन इन देशों का प्रमुख व्यापारिक साझेदार है। अगर चीन की आर्थिक गतिविधियां धीमी होती हैं, तो इन देशों का एक्सपोर्ट और मैन्युफैक्चरिंग प्रभावित होगा।
  • चीन के निवेश (Foreign Direct Investment) पर कटौती से इन देशों में विकास धीमा हो सकता है।

विकसित देश जैसे अमेरिका,यूरोपीय संघ जापान और दक्षिण कोरिया 

  • चीन से आयात घटने से अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग प्रभावित हो सकती है।
  • अगर वैश्विक मांग कमजोर होती है, तो अमेरिकी कंपनियों को कम ऑर्डर मिलेंगे, जिससे उनकी ग्रोथ धीमी हो सकती है।
  • अमेरिकी डॉलर मजबूत हो सकता है, लेकिन यह एक्सपोर्ट महंगा कर देगा।
  • चीन यूरोप का बड़ा ट्रेड पार्टनर है। कमजोर मांग से जर्मनी, फ्रांस, और इटली जैसी अर्थव्यवस्थाओं पर असर पड़ेगा।
  • ऑटो और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
  • जापान और दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था चीन को तकनीक और मैन्युफैक्चरिंग उपकरण एक्सपोर्ट पर निर्भर है।
  • अगर चीन की ग्रोथ धीमी होती है, तो जापान और दक्षिण कोरिया की कंपनियों की बिक्री कम होगी।

तेल उत्पादक देश जैसे सऊदी अरब, इराक, ईरान, नाइजीरिया, वेनेजुएला

  • चीन दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक है। अगर उसकी डिमांड गिरती है, तो तेल की कीमतों में गिरावट आएगी।
  • इससे इन देशों की आय और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा।

अन्य एशियाई देश जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका।

  • ये देश चीन पर कर्ज और निवेश (Belt and Road Initiative) के लिए निर्भर हैं।
  • अगर चीन की अर्थव्यवस्था कमजोर होती है, तो ये देश नए निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए फंडिंग खो सकते हैं।

वैश्विक वित्तीय बाजार

  • अगर चीन की अर्थव्यवस्था धीमी होती है, तो वैश्विक स्टॉक मार्केट में गिरावट आ सकती है।
  • डॉलर में मजबूती से अन्य देशों की करेंसी कमजोर हो सकती है, जिससे कर्ज भुगतान महंगा हो जाएगा।
  • बॉन्ड यील्ड में गिरावट से बैंकिंग सेक्टर और वित्तीय संस्थानों पर दबाव बढ़ सकता है।

 

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