शनि प्रदोष व्रत आज

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सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का दिन शिव परिवार की पूजा-अर्चना करने के लिए बेहद शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से उपासना और व्रत करने से जातक के विवाह में आ रही बाधा दूर होती है और मनचाहा वर मिलता है। अगर आप भगवान शिव और मां पार्वती की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत के दिन शिवलिंग पर विशेष चीजें अर्पित करें। मान्यता है कि ऐसा करने से महादेव प्रसन्न होकर इंसान की समस्याओं को दूर करते हैं और जीवन में खुशियों का आगमन होता है।

प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरूआत 28 दिसंबर को देर रात 02 बजकर 26 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 29 दिसंबर को देर रात 03 बजकर 32 मिनट पर होगा। ऐसे में 28 दिसंबर को वर्ष का अंतिम प्रदोष व्रत किया जाएगा। इस दिन शनिवार होने की वजह इसे शनि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा।

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

शनि प्रदोष वह प्रदोष व्रत है जो शनिवार के दिन आता है। इस व्रत का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह न केवल भगवान शिव की पूजा के लिए बल्कि शनि देव को प्रसन्न करने के लिए भी किया जाता है। शनिदेव को न्याय के देवता माना जाता है और उनके अशुभ प्रभाव से बचने के लिए लोग शनि प्रदोष का व्रत रखते हैं। शनि प्रदोष व्रत का पालन करने से व्यक्ति को शनि दोष, साढ़ेसाती, ढैया और अन्य शनि संबंधित कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और मानसिक संतुलन को बढ़ावा देता है। जो व्यक्ति इस व्रत का श्रद्धा पूर्वक पालन करते हैं उन्हें शनिदेव की कृपा मिलती है और उनका जीवन सुखमय होता है।

जीवन होगा खुशहाल

प्रदोष व्रत के दिन शुभ मुहूर्त में शिवलिंग की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करें और जीवन में सुख-समृद्धि में वृद्धि के लिए कामना करें। एक बात का खास ध्यान रखें कि शिवलिंग पर जल अर्पित करते समय पंचाक्षर मंत्र का जप करें। मान्यता है कि ऐसा करने से महादेव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन खुशहाल होता है।

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि

शनि प्रदोष व्रत के दिन साधक को ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके उपवास और शिव की पूजा करने का संकल्प लें। शाम को शिव मंदिर जाएं या घर पर ही पूजा करें।
सबसे पहले भगवान शिव को गंगाजल चढ़ाएं।
इसके बाद शिवलिंग पर अक्षत, बेलपत्र, चंदन, फूल, फल, भांग, दितोरे, नयोध्या, शहद, धूप, दीप आदि अर्पित करें।
इस दौरान पंचाक्षर “ॐ नम: शिवाय” का जाप करते रहें।
अब शिव चालीसा का पाठ करें।
चालीसा पाठ के बाद शनि प्रदोष की कथा पढ़ें।
कथा समाप्त होने के बाद कपूर या घी के दीपक से भगवान शिव की आरती करें।
पूजा के अंत में संतान के लिए प्रार्थना करें और यदि पूजा में कोई गलती हुई है तो उसकी क्षमा मांगें।
संभव हो तो रात में जागरण करें।
अगले दिन सुबह में स्नान आदि करके पूजा करें।
इसके बाद ब्राह्मणों को दान और दक्षिणा दें।
उसके बाद पारण करके व्रत को पूर्ण कर लें।

ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175

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