सुचिता दलाल जी ! गैमीफिकेशन को योजना कहीं कोबरा इफ़ेक्ट को जन्म न दे दे

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हर्षद मेहता स्टॉक मार्केट घोटाले का पर्दाफाश करने से प्रसिद्द हुई सुचिता दलाल का एक विडिओ देखा | भारत में बढ़ते साइबर अपराधों के लिए गैमीफिकेशन का आइडिया दिया गया | सुचिता दलाल अपराध पकड़ने में माहिर हैं | इनके विचार अपने समकालीन लोगों से आगे होते हैं | सुचेता दलाल एक प्रसिद्ध भारतीय पत्रकार, लेखक और 1992 के हर्षद मेहता स्टॉक मार्केट घोटाले का पर्दाफाश करने के लिए जानी जाती हैं। उनके साहसिक काम ने न केवल देश में वित्तीय घोटालों पर रोशनी डाली, बल्कि भारत की वित्तीय प्रणाली में सुधार की प्रक्रिया को भी तेज किया।

सुचेता दलाल ने मुंबई विश्वविद्यालय से कानून (LLB) और बॉम्बे यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई की। उनकी गहरी समझ ने उन्हें एक अद्वितीय पत्रकार बनने में मदद की, जो वित्तीय और कॉर्पोरेट विषयों पर लिखने में माहिर थीं।
1992 में, सुचेता दलाल ने भारत के सबसे बड़े शेयर बाजार घोटाले का पर्दाफाश किया, जिसमें स्टॉकब्रोकर हर्षद मेहता ने बैंकिंग प्रणाली की कमजोरियों का फायदा उठाकर लाखों रुपये का घोटाला किया। इस घोटाले ने न केवल आम जनता को झकझोर दिया, बल्कि भारतीय शेयर बाजार और बैंकिंग सिस्टम में पारदर्शिता की मांग को भी बढ़ा दिया। दलाल ने “टाइम्स ऑफ इंडिया” में अपने लेखों के माध्यम से इस घोटाले की जानकारी दी, जिसे बाद में एक फिल्म और वेब सीरीज़ “स्कैम 1992” में दर्शाया गया।
उन्होंने हर्षद मेहता घोटाले पर “The Scam: Who Won, Who Lost, Who Got Away” नामक किताब लिखी। इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय वित्तीय प्रणाली में भ्रष्टाचार और कमजोरी को विस्तार से समझाया। सुचेता दलाल ने केवल हर्षद मेहता ही नहीं, बल्कि एनरॉन और कई अन्य बड़े घोटालों पर भी रिपोर्टिंग की।
उन्हें 2006 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह Moneylife Magazine की सह-संस्थापक हैं, जो वित्तीय जानकारी और निवेशकों की सुरक्षा को बढ़ावा देती है। सुचेता दलाल ने दिखाया कि एक मजबूत और साहसी पत्रकार सच्चाई को उजागर कर सकता है और सिस्टम को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। उनका काम भारतीय पत्रकारिता और वित्तीय जागरूकता के क्षेत्र में मील का पत्थर है।

यह वीडियो देखें |

कोबरा इफेक्ट : एक नीति जो उलटी पड़ गई

ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में सांपों, खासकर कोबरा का आतंक एक बड़ी समस्या थी। इसे नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक अनोखी योजना बनाई। ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति मरे हुए कोबरा लेकर आएगा, उसे इनाम दिया जाएगा। इस योजना का मकसद था कि लोग सांपों को मारें और उनकी संख्या कम करें।  योजना की शुरुआत में लोग जंगलों और अपने आस-पास के इलाकों से कोबरा पकड़कर लाते और इनाम प्राप्त करते। सांपों की संख्या घटने लगी, और योजनाकारों को नीति सफल लग रही थी।  धीरे-धीरे कुछ भारत के स्वभाविक रूप से समझदार लोगों को आपदा में अवसर दिखने शुरू हो गए उन्होंने कोबरा पालने शुरू कर दिए। उन्होंने अपने घरों या खेतों में कोबरा का प्रजनन किया ताकि वे उन्हें मारकर इनाम कमा सकें।

जब ब्रिटिश अधिकारियों को पता चला कि लोग इनाम के लिए सांप पाल रहे हैं, तो उन्होंने इनाम योजना बंद कर दी। जब इनाम मिलना बंद हो गया, तो इन लोगों ने अपने पालित सांपों को छोड़ दिया। इससे शहरों और गांवों में कोबरा की संख्या पहले से भी अधिक हो गई।

यह घटना बताती है कि जब नीतियां मानव व्यवहार और उसकी प्रतिक्रिया को पूरी तरह से नहीं समझतीं, तो वे उल्टा असर डाल सकती हैं। आज “कोबरा इफेक्ट” का उपयोग अर्थशास्त्र और नीति-निर्माण में उन परिस्थितियों के लिए किया जाता है जहां समस्या का समाधान करने का प्रयास समस्या को और बिगाड़ देता है।

जिस समस्या का समाधान साइबर विशेषज्ञ द्वारा किया जाना चाहिए वहाँ इस तरह के गेमिफिकेशन के विचार कहीं घातक सिद्ध न हों जाएँ क्योंकि जिस तेज गति से पुलिस तो नई तकनीक सीखनी थी वो समय निकल गया | अपराधियों ने नई तकनीक का तेजी से सीखा और आपके सिस्टम की विसंगतियों के चलते मासूम लोगों से रूपये लूट लिए | हर चीज को आधार से लिंक करके वैसे ही आपने पेंडोरा बॉक्स खोल रखा है | यह लोगों के निजी जानकारी सार्वजनिक करने के नतीजे हैं |

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