अजमेर कांग्रेस की जय हो
अजमेर कांग्रेस ने फिर अपनी औकात दिखा दी। बाबा अंबेडकर जी को समर्पित होने वाले कार्यक्रम में नेताओं ने बता दिया कि पार्टी के साथ उनका रिश्ता कैसा है।
पूर्व विधायक डॉ श्रीगोपाल बाहेती की जन्मपत्री पर ठोकर मारी पूर्व मंत्री नसीम अख़्तर के पति इंसाफ अली साहब ने। अंदर का दर्द भाखरोटा अग्नि कांड की पुनरावृत्ति कर गया। बाहेती की सभा में मौजूदगी को लेकर इंसाफ अली ने फैसला सुना दिया। साफ कह दिया कि मेरे अंगना में तुम्हारा क्या काम है?
दरअस्ल बाहेती ने उनकी धर्मपत्नी के सामने निर्दलीय चुनाव लड़ कर पत्नी को पराजय के कगार पर खड़ा कर दिया था। यह बात और है कि उन्होंने पिछला चुनाव लड़कर नसीम जी का ही नहीं अपना भी वर्चस्व दांव पर लगा दिया था। बाहेती की करारी शिकस्त ने साफ कर दिया था की सामान तो उनके पास भी शेष नहीं बचा है।
इंसाफ अली ने बाहेती को पार्टी का गद्दार कहते हुए उनका जो मान मर्दन किया वो पूरी तरह स्वाभाविक था। जरा सोचिए कि यदि टिकिट नसीम जी की जगह उनको मिल जाती और वह बाहेती के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ लेतीं तो बाहेती को कैसा लगता?
नसीम अख़्तर के सीने में भड़क रही बदले की आग इतनी आसानी से कैसे बुझ सकती है?
मगर सवाल फिर भी ये कि इंसाफ अली बाहेती की मौजूदगी पर सवाल उठाने वाले होते कौन हैं? जिसे वह गद्दार साबित करना चाहते हैं! पार्टी ने तो उनको वापस कांग्रेस में ले लिया है। पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने की सजा देने की जगह जब पार्टी ने ही उनको अभयदान दे दिया है तो अब इंसाफ अली को उनके विरूध्द गद्दारी की सजा सुनाने का क्या अधिकार है?
अब तो ऐसा लगता है जैसे पार्टी ने ही बाहेती को चुनाव लड़ने की प्रेरणा दी थी! पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत से उनके जितनी निकटता के रिश्ते थे यदि वह चाहते तो उनको चुनाव मैदान से हटा सकते थे मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। जाहिर है कि बाहेती के चुनाव लड़ने में उनका भी मौन समर्थन था।?
जग जाहिर है कि नसीम अख़्तर सचिन पायलट की खास हैं और दो बार की हार के बावजूद उनको पायलट कोटे से टिकिट मिली थी। बाहेती को यदि टिकट मिल जाती तो तय था कि उनका मुकाबला अकेले सुरेश रावत से नहीं होता। उनके सामने नसीम न भी सही इंसाफ भाई तो जरूर खड़े होते। पार्टी को तो तब भी हारना पड़ता।
महान पार्टी के महान नेता रामचन्द्र चौधरी को ही देख लीजिए! उन्होंने भी तो पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा था मगर उनको न केवल पार्टी में वापस लिया गया बल्कि लोकसभा का टिकिट देकर यह सिद्ध कर दिया कि बगावत सियासत में कोई स्थान नहीं रखती। सजा की जगह बागी को यहां ईनाम भी दिया जा सकता है।
अजमेर की मरणासन्न कांग्रेस के नेताओं को अब भी यह बात समझ नहीं आ रही कि आपसी कलह का जहर अब भी नहीं निकाला गया तो कांग्रेस पार्टी पूरी तरह बर्बाद हो जाएगी। पर इसमें बेचारे इंसाफ भाई और बाहेती जी क्या करें जब उनके आका गहलोत और पायलट ही यह बात समझ नहीं पा रहे।