अस्पतालों में डॉक्टर्स बनाम नोट छापने की मशीनें

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अजमेर! केकड़ी! ब्यावर! किशनगढ! नसीराबाद सभी शहरों में मरीजों की हो रही है मरम्मत
“डॉ” शब्द डॉक्टर्स के लिए या डाकूओं के लिए

अजमेर संभाग के सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों के इलाज के अलावा सारे खेल चल रहे हैं। अस्पताल प्रबंधन करने वाले सीनियर डॉक्टर्स खाने कमाने के कोई तौर तरीके नहीं छोड़ रहे। सब राजनेताओं की छत्रछाया में अपने गुप्त खजाने भरने में लगे हैं।

नागौर चले जाइए या टोंक। अजमेर चले जाइए या किशनगढ़। केकड़ी चले जाइए या ब्यावर। सभी शहरों के सरकारी अस्पताल नोट छापने की मशीनों में ढल चुके हैं। मरीजों के लिए अधिकांश डॉक्टर……… बने हुए हैं। हर रोज बकरा ईद मनाई जा रही है। हर शहर में जांच करने वाली प्राइवेट लैबोरेट्रीज हलवा खा रही हैं और हवा खिला रही है।

विगत दिनों ब्यावर के लोकप्रिय विधायक शंकर सिंह रावत पर, अमृत कौर अस्पताल के किसी छुट भय्ये डॉक्टर ने त्यौरी तान ली।

विधायक ने न केवल उसे हड़काया बल्कि उसे अपनी पोस्ट से स्थानांतरित भी करवा दिया। यह तो एक छोटा सा उदाहरण है। जब एक विधायक के साथ डॉक्टरों का यह रवैया है तो आम लोगों के साथ क्या होता होगा?

केकड़ी का जिला अस्पताल नसीराबाद का सरकारी अस्पताल। किशनगढ़ का यज्ञ नारायण अस्पताल। सभी इसी तरह के उज्जड डॉक्टरों की काली कमाई के कारखाने बने हुए हैं। स्थानीय नेताओं को उन्होंने पता नहीं क्या जादूई दवा देकर कब्जे में कर रखा है कि वह वर्षों से अपने शहर से विदा ही नहीं हो पाते।

अजमेर के जवाहरलाल नेहरू अस्पताल का हाल तो सबसे बुरा है। यहां के लगभग सभी डॉक्टर्स करोड़पति हैं। कईयों के तो घरों में नोट गिनने वली मशीनें लगी हुई हैं। राजनेताओं की दमित इच्छाओं को तथास्तु कहकर खुश करने वाले बहुत से डॉक्टर्स वर्षों से अपने विभागों में कुंडली मारकर बैठे हुए हैं।

निजी लैबों से कमीशन खाने का प्रचलन यूं तो अजमेर, ब्यावर, और किशनगढ़ में सर्वाधिक है, मगर केकड़ी और नसीराबाद में भी आबादी के हिसाब से यह कमीशन बड़ी कमाल की पोजिशन में है। दवा कंपनियों से डॉक्टर्स के रिश्ते इतने गहरे हैं की दवा कंपनियों के अप्रत्यक्ष खर्चों से वे अपने परिवारों को विदेश ले जाकर मौज मस्ती करने से बाज नहीं आते।

जे एल एन अस्पताल अजमेर के कई डॉक्टर्स तो इतने कुख्यात हैं कि उन्हें किसी का कोई खौफ ही नहीं।

किसी भी नाम के पहले डॉ शब्द यह दशार्ता है कि नामधारी व्यक्ति डॉक्टर है। इस दृष्टि से मैं भी अपने नाम के पहले डॉ. लिख सकता हूँ क्योंकि मुझे डॉक्टर की उपाधि मिली हुई है।… मगर मैं कभी डॉ शब्द का इस्तेमाल नहीं करता। क्यों कि मुझे लगता है कि डॉ शब्द जैसे “डाकू” के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। अस्पतालों के डॉक्टरों की कार्यशैली मेरे इस वाहियात सोच को और प्रगाढ़ करती है।

केकड़ी के जिला अस्पताल में कभी एक राजनेता और डॉ मंत्री का बोलबाला था। उनकी कृपा पर अस्पताल सांस लेता था। उनकी सिफारिश पर ही डॉक्टरों को अस्पताल में दाखिला मिलता था। वह ही उन्हें खाने कमाने लायक बनाया करते थे। लूटपाट का जो खेल उस काल में शुरू हुआ वह आज भी बदस्तूर जारी है। केकड़ी के नए भाग्य विधाता शायद अभी केकड़ी के अन्य विकास कार्यों में लगे हुए हैं। जिला अस्पताल की सेहत पर वह चाहते हुए भी ध्यान नहीं दे पा रहे। यही वजह है कि केकड़ी का जिला अस्पताल कुछ कुख्यात डॉक्टर्स के घर से चलाया जा रहा है। डॉक्टरों के घर पर लगी मरीजों की लंबी कतारें बताती हैं कि अस्पताल में तो डॉक्टर्स सिर्फ मुर्ग़े बाजी करने और पिकनिक मनाने जाते हैं।

ब्यावर के अमृत कौर अस्पताल में फुल थ्रू पोपा बाई का राज है |

प्राय: सभी डॉक्टर्स दोनों हाथों से शुद्ध देसी घी से बना मूंग की दाल का हलवा निबटाने में लगे हैं। हर डॉक्टर करोड़पति से अरबपति बनने की जुगाड़ में लगा हुआ है। अस्पताल में जांच के लिए खरीदी गई बेशकीमती मशीन्स पेटी पैक पड़ी हुई हैं। जानबूझ कर इनको खोला नहीं जा रहा। जांच बाहर से हो रही है। मोटा कमीशन जो हर माह पहुंच जाता है।

दवा कंपनियों ने जैसे डॉक्टरों को सस्ती व घटिया दरों पर मासिक किस्तों में खरीद रखा हो। विधायक शंकर सिंह रावत सत्तारूढ़ पार्टी के होकर भी सत्ता का पूरा उपयोग नहीं कर पा रहे। यदि वह मंत्री हो जाते तो शायद इस अस्पताल के इतने बुरे दिन नहीं रहने देते।

किशनगढ़ के यज्ञ नारायण अस्पताल में डॉक्टर मुद्रा यज्ञ में आहूतियाँ दे रहे हैं।

यहाँ नारायण शब्द “नगद नारायण” के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। यहां भी जांच मशीनों पर धूल जम रही है। डॉक्टरों के चैंबर्स में प्राइवेट लैब वाले चाय की चुस्कीयाँ लेते देखे जा सकते हैं। कुछ दवा कंपनियां तो डॉक्टरों के लिए रात्रि कालीन सत्संग की सुविधा भी प्रदान करवा रही हैं। यह व्यवस्था अजमेर, नागौर, टोंक, केकड़ी, ब्यावर, किशनगढ, नसीराबाद, बिजय नगर सभी शहरो में कमोबेश चल रही है।

मजेदार बात यह है कि इन सभी शहरों के डॉक्टर जब तक सरकारी सेवाओं में रहते हैं तब तक सरकार को निचोड़ते हैं जब रिटायर्ड हो जाते हैं तो भी कहीं और नहीं जाते। स्थानीय निजी अस्पतालों में ही भर्ती हो जाते हैं। उनका नेटवर्क यहां भी पैसा कमाने के काम ही आता है।

मित्रों। मैंने अपना यह ब्लॉग मोटे तौर पर लिखा है। यदि आपको अपने शहर के सरकारी अस्पताल से कोई और गंभीर शिकायत हो तो आप विस्तार से मुझे जानकारी दे सकते हैं। आगे मैं उन डॉक्टरों को वेंटिलेशन से उतारने की कोशिश करूंगा। धन्यवाद आज इतना ही।

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