रतन टाटा की वसीयत में ऐसा क्या?

0
(0)

जो 100 साल पहले लिख गए थे ग्वालियर के महाराजा माधो राव

रतन टाटा की वसीयत सामने आ गई है। टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे रतन टाटा ने अपनी वसीयत में कुछ वैसा ही किया है जैसा कभी ग्वालियर राजघराने के महाराज माधो राव सिंधिया ने किया था। करीब 100 साल पहले उस वसीयत की भी खूब चर्चा हुई थी। रतन टाटा ने अपनी वसीयत में अपने पालतू कुत्ते टीटो का नाम भी शामिल किया है। वसीयत में कहा गया है कि रतन टाटा के जाने के बाद उनके पेट डॉग की आजीवन देखभाल होगी और सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।

ठुकरा दिया था ब्रिटिश राजघराने का अवार्ड

रतन टाटा अपने जर्मन शेफर्ड टीटो से बहुत प्यार करते थे। उन्हें जानवरों से कितना लगाव था इसको एक उदाहरण से समझ सकते है। साल 2018 में रतन टाटा को ब्रिटिश राजघराने ने लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड देने का मन बनाया। रतन टाटा ने उस अवार्ड को ठुकरा दिया। वजह उनका पालतू कुत्ता था। रतन टाटा के करीबी मित्र रहे कारोबारी सुहेल सेठ ने एक इंटरव्यू में इसका खुलासा किया। वह कहते हैं कि कुछ साल पहले रतन टाटा को बकिंघम पैलेस में प्रिंस आफ वेल्स से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिलना था। सारी तैयारियां हो चुकी थीं। मैं लंदन पहुंच गया था। रतन टाटा भी आने के लिए तैयार थे पर ऐन मौके पर उनके पालतू कुत्ते की तबीयत बिगड़ गई।

रतन टाटा लंदन जाने की जगह अपने पेट डॉग की देखभाल के लिए रुक गए। सुहेल सेठ कहते हैं कि मैं लंदन पहुंचा तो देखा कि रतन टाटा की 11 मिस्ड कॉल पड़ी है। मैंने पलटकर फोन किया तो टाटा ने कहा, सॉरी, मैं नहीं आ सकता मुझे उसकी देखभाल करनी होगी।

अब माधो राव सिंधिया की कहानी

रतन टाटा का जैसा लगाव अपने पेट डॉग से था कुछ ऐसा ही लगाव ग्वालियर राजघराने के महाराजा माधो राव सिंधिया का अपने पालतू कुत्ते से था। माधो राव अपने पालतू कुत्ते से इतना प्यार करते थे कि जहां जाते, उसे साथ ले जाते। साल 1925 में जब महाराजा माधो राव पेरिस में बीमार हुए तो उन्हें सबसे ज्यादा चिंता अपने पालतू कुत्ते की हुई। उन्हें लगा कि उनके बाद पालतू कुत्ते हुस्सू का क्या होगा।

वसीयत में कुत्ते के लिए पैसे छोड़ गए महाराजा

रशीद किदवई अपनी किताब द हाउस आफ सिंधियाज में लिखते हैं कि महाराज माधो राव सिंधिया ने अपनी सबसे वरिष्ठ महारानी चिनकू राजे को बुलवाया और कहा कि मैं मर जाऊं तो हुस्सू की देखभाल में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। उसे हर-सुख सुविधाएं मिलनी चाहिए। 5 जून 1925 को निधन से पहले माधो राव ने अपनी वसीयत लिखी। इसमें खासतौर से अपने पालतू कुत्ते हुस्सू का जिक्र किया और उसकी देखभाल के लिए भारी-भरकम रकम छोड़कर गए।

माधो राव सिंधिया के जाने के बाद उनके पालतू कुत्ता हुस्सू 5 साल 7 महीने और 18 दिन जिंदा रहा। वह महाराज को कभी भूल नहीं पाया। रशीद किदवई लिखते हैं कि हुस्सू रोज ग्वालियर के पैलेस में महाराज माधो राव सिंधिया के बेडरूम में जाता था। नवंबर 1930 में जब हुस्सू की मौत हुई तो महारानी चिनकू राजे ने ग्वालियर में आलीशान तरीके से उसका अंतिम संस्कार करवाया और बाकायदे एक मेमोरियल भी बनवाया। जो आज भी है।

क्या आप इस पोस्ट को रेटिंग दे सकते हैं?

इसे रेट करने के लिए किसी स्टार पर क्लिक करें!

औसत श्रेणी 0 / 5. वोटों की संख्या: 0

अब तक कोई वोट नहीं! इस पोस्ट को रेट करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

Leave a Comment