उप चुनाव की सात सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर कांग्रेस ने आरएलपी और बीएपी की हवा निकाल दी
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को इस बात के लिए शाबाशी मिलनी चाहिए कि वह आरएलपी के सांसद हनुमान बेनीवाल और भारत आदिवासी पार्टी के सांसद राजकुमार रोत की दादागिरी के आगे झुके नहीं। डोटासरा ने 20 अक्टूबर को घोषणा की कि उप चुनाव में कांग्रेस किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेगी और 23 अक्टूबर की रात को कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने राजस्थान की सभी सात सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी।
कांग्रेस की इस घोषणा से अब आरएलपी और बीएपी के सामने भी राजनीतिक संकट खड़ा हो गया हैै। उप चुनाव के परिणाम चाहे कुछ भी आए, लेकिन डोटासरा ने यह दर्शा दिया है कि बेनीवाल और रोत की दादागिरी स्वीकार नहीं की जाएगी। डोटासरा चाहते थे कि आरएलपी को खींवसर और बीएपी को चौरासी सीट समझौते में दी जाए, क्योंकि लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल और राजकुमार रोत नागौर व डूंगरपुर बांसवाड़ा से सांसद बने थे। तब इन दोनों सीटों पर कांग्रेस ने समर्थन दिया था, लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस से कोई बात किए बगैर ही बीएपी ने चौरासी के साथ साथ सलूंबर सीट पर भी अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। इसी प्रकार बेनीवाल ने खींवसर के साथ साथ देवली उनियारा पर अपना दावा जता दिया।
आरएलपी ने भले ही उम्मीदवार घोषित न किए हो, लेकिन बेनीवाल ने दो टूक शब्दों में कहा कि यदि कांग्रेस के साथ समझौता नहीं होता है तो झुंझुनूं व रामगढ़ में भी आरएलपी के उम्मीदवार खड़े होंगे। अब जब कांग्रेस ने कोई समझौता नहीं किया है तो देखना होगा कि बेनीवाल चारों सीटों पर उम्मीदवार खड़े करते हैं या नहीं। कांग्रेस के साथ समझौता न होने का सबसे ज्यादा नुकसान बेनीवाल को ही है। बेनीवाल गत विधानसभा चुनाव में खींवसर से मात्र 2059 वोटों से ही जीते थे। बेनीवाल को छोड़कर आरएलपी के किसी भी उम्मीदवार की जीत नहीं हुई। अब विधानसभा में आरएलपी का एक भी विधायक नहीं है।
बेनीवाल माने या नहीं, लेकिन खींवसर में अब कांग्रेस की उम्मीदवार डॉ. रतन चौधरी का मुकाबला भाजपा के उम्मीदवार से ही होगा। कांग्रेस की उम्मीदवारी से आरएलपी के उम्मीदवार का जीतना मुश्किल है। इसी प्रकार चौरासी और सलूंबर सीट पर भी बीएपी के उम्मीदवारों की स्थिति कमजोर होगी। कहा जा सकता है कि 7 में से चार सीटों पर त्रिकोणात्मक मुकाबला होगा, इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। मालूम हो कि 7 में से 6 सीटें कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के पास थी। इसलिए उपचुनाव की घोषणा से पहले भाजपा के प्रदेश प्रभारी राधा मोहन अग्रवाल ने कह दिया था कि भाजपा के पास खोने को कुछ भी नहीं है, लेकिन अब जब कांग्रेस एलायंस में फूट पड़ गई है, तब भाजपा की स्थिति मजबूत होती नजर आ रही है। इससे प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा की प्रतिष्ठा भी दांव पर है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने मौजूदा समय में डोटासरा की राय को ही प्राथमिकता दी है। डोटासरा का प्रयास है कि 2023 वाली चार सीटों पर कांग्रेस की जीत हो। मालूम हो कि झुंझुनूं, दौसा और टोंक के विधायकों के सांसद बने जाने के कारण उपचुनाव हो रहे हैं। रामगढ़ में कांग्रेस विधायक जुबेर खान के निधन की वजह से उप चुनाव हो रहा है। झुंझुनूं और रामगढ़ में परिवार में से टिकट देने के कारण माहौल फिलहाल कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रहा है। उप चुनाव के परिणाम डोटासरा के राजनीतिक भविष्य पर भी असर डालेंगे।