बहुत दिनों से लिखना चाहते हुए भी मैं इस विषय पर लिखने को टाल रहा था। अनावश्यक बन गए विवाद को मैं अपनी कलम से जोड़ने में हिचकिचाहट महसूस कर रहा था मगर आज पता नहीं खुद को उसी विषय पर लिखने को मजबूर क्यों हो रहा हूँ।
कल मुंबई से मित्र अर्जुन चक्रवर्ती का फोन आया। अर्जुन चक्रवर्ती फिल्म अभिनेता हैं। बंगाली फिल्मों के अमिताभ बच्चन माने जाते हैं। बहुत सी हिंदी फिल्में भी हैं। उनकी पहली फिल्म अंकुश थी। नाना पाटेकर और मदन जैन के साथ। इतनी शक्ति हमें देना दाता। मन का विश्वास कमजोर हो न। यह प्रार्थना उसी फिल्म की है।
अर्जुन झुंझुनूं में मेरे साथ पढ़ता था। वह चाहता था। मुम्बई रह कर मैं भी फिल्मों के गीत और कहानियां लिखूँ। गया भी।कुछ फिल्म्स कीं भी। खैर!कल अर्जुन का फोन आया । उसके साथ विवेक ओबेरॉय भी थे। उनसे भी बात हुई। उन्होंने मेयो कालेज के दिनों वाले अजमेर पर लंबी बात की। उनको मैंने याद दिलाया कि स्टेशन के पास हनीड्यू रेस्तरां में उनके पिता सुरेश ओबेरॉय के साथ उनसे मिला हुआ हूँ। मेरा इंटरव्यू भी इलेस्ट्रेड वीकली में छपा था। मेरे पत्रकार मित्र महावीर सिंह चौहान ने भी उनका साक्षात्कार लिया था। तब विवेक बहुत छोटे थे।
विवेक ने फोन पर मुझसे बाबा सिद्दीकी की हत्या! सलमान खान की जान को खतरा! लॉरेंस विश्नोई के इरादों पर कुछ लिखने को कहा।
मित्रों! विवेक आॅबरॉय ने ऐसा क्यों कहा? इसके पीछे की कहानी मुझे बताने की जरूरत नहीं मगर हाँ यह सही है कि इस प्रकरण को लेकर लम्बे समय से मैं लिखना चाहता था मगर टाले जा रहा था।
आज अर्जुन और विवेक के कहने से नहीं बल्कि अपने अंतर्मन की पहल पर लिख रहा हूँ।
सलमान खान देश के दमदार अभिनेताओं में से एक हैं। पहली कतार में आते हैं। उनको पसंद करने वाले सभी सम्प्रदायों के दर्शक हैं। मार्केटिंग के हर फंडों और हथकंडों से वाकिफ हैं। फिल्म चाहे बजरंगी भाई जान हो या ऐसी ही कोई और फिल्म! वे बड़ी चालाकी से अपने किरदार को बाजार में खड़ा कर देते हैं।
बाजार!
जी हाँ, बाजार में अपने एक छत्र कब्जे को बनाये रखने के लिए उन्होंने कभी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। मायानगरी में उन्होंने अपने वर्चस्व को बनाने के लिए कई प्रतिभाओं को पनपने ही नहीं दिया। एक स्थिति यह भी आ गयी कि सलमान! शाहरुख खान! आमिर खान! मुंबई का मुकद्दर बन गए। इनके नाम का मायानगरी में डंका बजने लगा। हर फिल्म निमार्ता इनकी अनुमति के बिना फिल्म निर्माण की सोच भी नहीं सकता था। दुबई के भाइयों ने इनके साम्राज्य को समृद्ध और सुरक्षित रखने में पूरा सहयोग देना शुरू कर दिया।
मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं कि सलमान ने मुंबई को अपनी मुठ्ठी में कैद कर लिया। हर अभिनेता! हर अभिनेत्री! हर प्रोड्यूसर! हर फाइनेंसर! हर फिल्मी व्यक्ति सलमान की सरपरस्ती के बिना कोई फिल्म पाने में कामयाब नहीं हो पाया।
इस बुरे समय में ही मैं भी मुंबई पहुंचा। हाल खराब थे। सिर्फ़ एक ही हिन्दू अभिनेता अमिताभ बच्चन इन ताकतवर लोगों के कब्जे में नहीं आ पा रहा था। ये वो समय था जब सलमान खान से जो टकराया वो चूर चूर हो गया। कई सुशांत सिंह! कई विवेक ओबेरॉय! कई अभिनेत्रियाँ ! सलमान से उलझने का खामियाजा उठा कर बर्बाद हो गए। हिन्दू अभनेत्रियों के साथ जितनी कहानियाँ जुड़ीं किसी से छीपी नहीं। जो सलमान के सामने जो हुक़्म मेरे आका कह कर आत्म स्वाभिमान बेच कर नतमस्तक हो गया उसे दोहम दर्ज़े से जीने के हक मिल गए।
इस दौर में पूरी मुम्बई समुदाय विशेष के लोगों के कब्जे में आ गयी।सलमान टाइगर फिल्म के बाद टाइगर हो गए।
जोधपुर में काले हिरण का शिकार हुआ! मुंबई में फुटपाथ पर सोते मजदूरों को कुचल दिया गया! देश भर में प्रतिक्रिया हुई! पर क्या हुआ? सबको पता है। अदालत के फैसले किस तरह होते हैं? सबको पता है।
मेरे मित्र अभिनेता नाना पाटेकर कहते हैं कि जब तक बलात्कारियों को वकील उपलब्ध होते रहेंगे, देश में बलात्कार होते रहेंगे
सुना है आजकल मुंबई डरी हुई है। टाइगर सात तालों में कैद है। परिंदा भी पर ना मार पाए इस तरह के सुरक्षा घेरे बनाए गए हैं। जोधपुर की संस्कृति ने मुंबई को शार्प घेरे में ले लिया है। हिरण शेरों का पीछा कर रहे हैं। शेर की रक्षा का जिÞम्मा मासिक वेतन वाले शेरू ने संभाल लिया है।
मुंबई में राजपाठ करने वाले भाई लोग ! समझ नहीं पा रहे कि हो क्या रहा है? कैसे हो रहा है?
जवाब भी साफ है कि जब सुल्तानी दुबई से हो सकती है तो जेल से क्यों नहीं?
सुरेंद्र चतुर्वेदी
सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सियत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |
चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |