मूषक अर्थात चूहा जो कि समस्त विकारों व अविवेक का प्रतीक हैं। बिना जाने कि वह चीज कीमती है, अनमोल हैं, वह उसे नष्ट कर देता हैं।
इसी तरह बुद्धिहीन और कुतर्की व्यक्ति भी बिना सोचे समझे, अच्छे बुरे हर काम में बांधा उत्पन्न करते हैं’ गणेश जी की मूषक पर सवारी अर्थात उन्होंने इन सभी मूषक रूपी कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर ली हैं।
शिवजी और नंदी – नंदी अर्थात बैल बहुत ताकतवर व शक्तिशाली होने के बावजूद शांत रहते हैं, यह महादेवजी के स्वभाव को दर्शाता है, शिव भोलेनाथ सर्वशक्तिवान होने के बावजूद परमशांत व संयमित हैं, नंदी सफेद रंग का होता है जो स्वच्छता और पवित्रता का ज्ञान करवाता हैं, शिवजी के मंदिरों के सामने बैठे नंदी को जो दर्शाया गया है वास्तव में वह ब्रह्मा बाबा का प्रतीक है जिनके शरीर रूपी रथ पर सवार होकर शिव परमात्मा हम आत्माओं को श्रृंगारित कर सतयुग तक पहुँचाने का परम कर्तव्य करते हैं।
माँ दुर्गा देवी और सिंह -दुर्गा स्वरुप अर्थात दुगुर्णों को दूर करने वाली व अपने अवगुणों को समाप्त कर सदगुण धारण करने वाली, सबकी इच्छाओं को पूर्ण कर उनको शक्ति प्रदान करने वाली, सिंह जो वाहन के रूप में दिखाते है उसका तात्पर्य है कि सिंह अर्थात जो पल में दानवो का संहार कर दें, देवी की विभिन्न भुजाओ में अस्त्र-शस्त्र दिखाये हैं, देवी को अष्ठ भुजाधारी दुर्गा कहा जाता है, अष्ट भुजाएं आत्मा की अष्ट शक्तियों का प्रतीक हैं —
1. सहन शक्ति
2. समाने की शक्ति
3. परखने की शक्ति
4. निर्णय शक्ति
5. सामना करने की शक्ति
6. सहयोग की शक्ति
7. विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति
8. समेटने की शक्ति
आत्मा का अपना मूल सतोगुणी स्वरूप ज्ञान, पवित्रता, शान्ति, प्रेम, सुख, आनन्द, शक्ति इसी का यादगार में हम सात कन्या का पूजन करते है।
माँ सरस्वती और हंस – सरस्वती जी विद्या एवं वाणी की अधिष्ठात्री देवी है, सरस्वती जी का वाहन हंस है, हन् धातु से हंस बना है, नीर-क्षीर-विवेक, दूध का दूध और पानी का पानी कर देना हंस की ही विशेषता है, मानसरोवर में उसका निवास माना गया है, मोती चुगना उसका प्राथमिक कर्तव्य है, पक्षी-श्रेष्ठ के रूप में वह सर्व पूज्य है।
श्रीलक्ष्मी जी और उल्लू – उल्लू शुभता व संपति का भी प्रतीक हैं, ऐसा माना जाता है कि वह एक बुद्धू प्राणी हैं अर्थात् अत्यधिक धन संपदा को प्राप्त कर व्यक्ति, बुद्धि हीन होकर भौतिकता की ओर बढ़ता जा रहा हैं।
अध्यात्मिक दृष्टि से अंधता का प्रतीक है, सांसारिक जीवन में लक्ष्मी यानी धन – दौलत के पीछे बिना सोचे -समझे भागने वाले इंसान को आत्मज्ञान रूपी सूर्य को नहीं देख पाता है।
विष्णुजी व गरुड़ – गरुड़ पक्षी के एक तो पंख विशाल होते हैं और वह बहुत ऊँचाई पर उड़ता है, दूसरा उसकी दृष्टि तीक्ष्ण होती है, भगवान विष्णु भी अपनी अवस्था बहुत ऊँची और दृष्टि दूरगामी रख चक्रवर्ती राजा बन सतयुग में पूरी सृष्टि का पालन करते हैं, गरुड़ ही वेद का प्रतीक है, इसमें कायाकल्प करने की अद्भुत क्षमता है।
कार्तिकेय जी और मोर – कार्तिकेय जी को उनकी तपस्याओं व साधक क्षमताओं से प्रसन्न होकर स्वयं परमात्मा ने यह वाहन भेट किया था, मोर भी पवित्रता का साधक व तपस्वी हैं कि कलयुग में भी वह योगबल से पूरी पवित्रता को धारण करते हुए जीवन व्यतित करता।
श्रीकृष्ण जी और उनकी साथी गाय – कृष्णजी की हर तस्वीर में गाय भी जरूर नजर आती हैं, गाय का स्वभाव एकदम शांत होता है जो शांति का प्रतीक हैं, उनके चार पैर चार युगो को दर्शाते हैं, उनके द्वारा दिया गया दूध सम्पन्नता का प्रतीक है, साथ में कृष्णजी, यह सब सतयुगी साम्राज्य को दर्शाते हैं।
देवी गंगा और मगर – माँ गंगा का वाहन मगरमच्छ माना गया है।
इंद्र देव और हाथी – इंद्र देवता का वाहन हाथी दिखाया है, हाथी सूक्ष्मता का प्रतीक है।
यमराज और भैंसा – मृत्यु के देवता यमराज का वाहन भैंसा दिखने में बहुत खतरनाक है लेकिन बिना वजह किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता हैं, इसे प्रेत का प्रतिरूप मानने के कारण इसे देखना अशुभ माना गया है।
यह इस बात का प्रतीक है कि धर्मराज की भूमिका कितनी भी खतरनाक हो यदि हम सम्पूर्ण बन चुके है तो धर्मराज भी हमें बिना रोके आगे बढ़ा देगें।
मान्यता है कि देवी – देवता में जिस तरह के गुण होते हैं, उन्हें उसी गुण वाला कोई पशु या पक्षी वाहन के रूप में दिया गया है, इसी कारण उनके वाहन भी अलग-अलग हैं।