देश के कई राज्यों में भगवान कार्तिकेय को देवता स्कन्द के नाम से जाना जाता है। इसी वजह से इस तिथि को स्कन्द षष्ठी भी कहा जाता है। स्कन्द षष्ठी के दिन खासतौर पर भगवान कार्तिकेय की पूजा करने के साथ-साथ व्रत भी रखा जाता है। हालांकि स्कन्द षष्ठी के व्रत में कुछ बातों को विशेष ध्यान रखना चाहिए। नहीं तो भगवान कार्तिकेय के क्रोध का भी सामना करना पड़ सकता है।
कब रखा जाएगा स्कंद षष्ठी व्रत?
2024 में मंगलवार 22 अक्टूबर को संतान की प्राप्ति/संतान की कल्याण/रक्षा के लिए स्कन्द षष्ठी का व्रत किया जाएगा…!]
स्कन्द षष्ठी व्रत का महत्व
मान्यता है कि दांपत्य जोड़े अगर सच्चे दिल से स्कन्द षष्ठी का व्रत रखते हैं, तो उनको जल्द ही संतान की प्राप्ति होती है। इसलिए कहा भी जाता है कि जिन लोगों को बच्चा नहीं हो रहा है, उन्हें भगवान कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए। साथ ही प्रत्येक माह में आने वाली स्कन्द षष्ठी तिथि के दिन व्रत रखना चाहिए। इससे जल्द ही घर में किलकारी गूंज सकती है।
स्कंद षष्ठी की पूजा विधि
स्कंद षष्ठी के दिन प्रात: काल उठें। सन्ना आदि कार्य करने के बाद सूर्य देवता की पूजा कर उन्हें अर्घ्य दें।
गंगाजल का छिड़काव कर घर को शुद्ध करें। खासतौर पर घर के मंदिर को गंगाजल से साफ करें।
भगवान गणेश और 9 ग्रहों की पूजा करें। साथ ही देवी-देवताओं का आह्वान करें।
एक चौकी लगाकर उस पर लाल रंग का शुद्ध कपड़ा बिछाएं।
उसके ऊपर भगवान कार्तिकेय की फोटो या प्रतिमा को स्थापित करें।
व्रत का संकल्प लेने के बाद कार्तिकेय देवता को वस्त्र, इत्र, फूल, आभूषण, दीप-धूप और नैवेद्य अर्पित करें। इस दौरान “ॐ स्कन्द शिवाय नमः” मंत्र का तीन बार जाप करें।
अंत में भगवान कार्तिकेय की आरती कर उनकी फोटो या प्रतिमा की तीन बार परिक्रमा करें।
स्कंद षष्ठी व्रत के दौरान इन 3 बातों का रखें ध्यान
स्कंद षष्ठी व्रत की पूजा सूर्योदय के समय ही करनी चाहिए। वहीं व्रत का पारण अगले दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही होता है।
अगर आपने स्कंद षष्ठी का व्रत रखा है, तो दो दिन तक घर में तामसिक भोजन न बनाएं।
स्कंद षष्ठी व्रत में केवल फलाहार किया जाता है। इसके अलावा कुछ भी खाने से व्रत को पूरा नहीं माना जाता है।
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175