आखिर गहलोत को ऐसी राजनीति करने की क्या मजबूरी है?
18 अक्टूबर को हरियाणा में कांग्रेस विधायक दल का नेता चुनने की कवायद हुई। विधायकों की बैठक के बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन ने मीडिया से बात की। इस अवसर पर अशोक गहलोत सहायक की भूमिका में नजर आ रहे थे।
यह सही है कि अशोक गहलोत हरियाणा चुनाव में सीनियर आर्ब्जवर थे, लेकिन चुनाव की कमान महासचिव की हैसियत से अजय माकन के पास ही थी। सब जानते हैं कि अशोक गहलोत जब राजस्थान के मुख्यमंत्री थे, तब अजय माकन को प्रदेश प्रभारी बनाया गया था।
तब अजय माकन ने प्रयास किया कि गहलोत और सचिन पायलट के बीच तालमेल हो जाए, लेकिन गहलोत के एक तरफा रुख के कारण अजय माकन को सफलता नहीं मिली सकी। 25 सितंबर 2022 की घटना के बाद तो गहलोत ने आरोप लगा दिया कि मुझे मुख्यमंत्री के पद से हटाने के षडयंत्र में अजय माकन भी शामिल हैं।
तब अशोक गहलोत ने माकन पर कांग्रेस हाईकमान को गुमराह करने तक का आरोप लगाया। गहलोत ने आरोपों के बाद अजय माकन को राजस्थान के प्रभारी का पद छोड़ना पड़ा। तब ऐसे कई मौके आए जब गहलोत ने अजय माकन से बात करने से भी इंकार कर दिया, लेकिन अब बदली हुई परिस्थितियों में अशोक गहलोत, अजय माकन के सहायक की भूमिका में नजर आ रहे हैं।
मौजूदा समय में गहलोत के पास कांग्रेस संगठन में कोई पद नहीं है, जबकि अजय माकन और सचिन पायलट राष्ट्रीय महासचिव हैं। दोनों के पास अलग अलग राज्यों के प्रभार भी हैं। हाल ही में कांग्रेस हाईकमान ने नेताओं को जिम्मेदारी दी है, उसमें अशोक गहलोत को महाराष्ट्र के चुनाव में एक संभाग का पर्यवेक्षक बनाया गया है।
यह तब है, जब अशोक गहलोत तीन बार मुख्यमंत्री और तीन बार ही केंद्रीय मंत्री रहे। यह पहला अवसर है, जब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद अभी तक भी कांग्रेस के महासचिव नहीं बन पाए हैं। सवाल उठता है कि आखिर ऐसी राजनीति करने की अशोक गहलोत की क्या मजबूरी है? कोरोना काल में चार बार संक्रमित होने तथा हार्ट की एंजियोप्लास्टी करवाने के बाद अशोक गहलोत का स्वास्थ्य लगातार खराब चल रहा है। हरियाणा के चुनाव में भी अशोक गहलोत बीमार भी रहे।
एस पी मित्तल
वर्ष 2016 में मेरी उम्र 54 वर्ष है और मैं करीब 40 वर्षों से पत्रकारिता कर रहा हूँ | पत्रकारिता की घुट्टी जन्मजात है। मेरे पिता स्व.कृष्ण गोपाल जी गुप्ता जो भभक पाक्षिक पत्र निकालते रहे। उससे मैंने पत्रकारिता का सबक सीखा। मेरी पत्रकारिता की यात्रा में दैनिक राष्ट्रदूत, दैनिक भास्कर, दैनिक नवज्योति, दैनिक पंजाब केसरी आदि अखबारों का सहयोग तो रहा ही है, लेकिन वर्ष 2000 में जब मैंने सम्पूर्ण उत्तर भारत में पहली बार केबल नेटवर्क पर न्यूज चैनल शुरू किया तो मुझे सीखने का जोरदार अवसर मिला। जिलेभर के केबल ऑपरेटरों की मदद से जब एक घंटे की न्यूज का प्रसारण हुआ तो अजमेर सहित राजस्थान भर में तहलका मच गया। हालांकि साधनों के अभाव और बड़े मीडिया घरानों के केबल में कूद पडऩे से मुझे अपना अजमेर अब तक नामक चैनल बंद करना पड़ा। 17 नवम्बर 2005 को जब मैंने देश के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से अजमेर के सर्किट हाऊस में व्यक्तिगत मुलाकात की तो मुझे एक सुखद अनुभूति हुई। यूं तो मेरे लिखे की गूंज राजस्थान विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में हुई है, लेकिन मेरी पत्रकारिता की सबसे बड़ी सफलता यही है कि मैं आज भी नियमित लिख रहा हूँ | यदि किसी पाठक के पास कोई सुझाव हो तो अवश्य दें | आपका एस.पी.मित्तल