सिर्फ वही पढ़ें जिनकी औलाद हैं!
नए विषयों पर समाज की आँखें खोलने का काम मैं पिछले चालीस साल से कर रहा हूँ। समाज की विकृतियों और विद्रूपताओं पर मेरी कलम बेखौफ होकर चलती रही है। कई बार संयम खो देता हूँ इस बात से इंकार नहीं करता। कई बार भाषा के स्तर पर लोग उँगली उठा देते हैं मगर दोस्तों! जो शब्द ! समाज आज तक खारिज नहीं कर पाया उससे गुरेज करने की नसीहत मुझे ही क्यों
मित्रों! मै लापरवाह हूँ मगर इतना भी नहीं कि समाज के दुश्मनों को नजरंदाज कर दूँ। आज जिस विषय पर आपको जानकारी दे रहा हूँ वह आपके आस पास घट रहा है। आप देख भी रहे हैं। आप महसूस भी कर रहे हैं मगर कर कुछ नहीं पा रहे?
यही अंतर है आपमें और मुझमें। कल एक सज्जन मेरे पास आए। उन्होंने बताया कि उनकी इकलौती संतान ने उनको बर्बाद कर दिया है। पूछने पर बताया कि उनका बेटा मोबाईल पर “ओन लाईन गेम्स” खेलता है। गेम्स में पैसा लगाया जाता है। लाभ के लालच में बच्चे पैसा लगाते रहते हैं। शुरू में घर से चोरियां करके शौक पूरा करते हैं , फिर ब्याज खोरों के नेटवर्क से जुड़ जाते हैं।
ब्याज माफियायों के चक्कर में लाखों रुपए का कर्ज ले लिया जाता है। जब कर्ज ज्यादा चढ़ जाता है तो ब्याज खोर बच्चे के माँ बाप से सम्बंध कायम करते हैं। बच्चे के साथ हुई लिखत पढ़त दिखाते हैं। स्टॉम्प पेपर देख कर मां बाप बुरी तरह घबरा जाते हैं और बदनामी के डर से घर के जेवरात बेच कर बच्चे की हरकतों का खामियाजा भुगतते हैं।
जब उनके बच्चे से बात की तो उसने ऐसे बच्चों की लंबी लिस्ट बता दी, जिनको ब्याज माफियायों ने अपनी गिरफ्त में ले रखा है।
इस बात का जिÞक्र बाई द वे फोन पर मैंने बाड़मेर के पत्रकार मित्र से जब किया तो उन्होंने मामले से जुड़ी लंबी जानकारियां देकर बात की तस्दीक कर दी।
उन्होंने बताया कि आनलाइन गेमिंग के दुष्परिणाम अजमेर में ही नहीं बाड़मेर, कोटा, सीकर, गंगानगर, उदयपुर तथा राज्य के अन्य जिलों में भी देखने को मिल रहे हैं। अब तो यह गेम घर-घर की कहानी बन चुका है।
बच्चों की करतूतें मां-बाप भुगत रहे हैं। 10वीं 11वीं में आए विद्यार्थियों ने 10-10 लाख रुपए कर्ज़े ले रखे हैं।
पूरे राज्य में आनलाइन गेमिंग और ब्याज खोरों का गठजोड़ खुलेआम चल रहा है। 10वीं 11वीं से आए विद्यार्थियों ने 10-10 लाख ब्याज पर उठा रखे हैं। कर्ज़ देने वाले 10 रु सैकड़ा ब्याज वसूल रहे हैं।
इस गोरखधंधे में एक युवक फंसता है तो दूसरे को भी फंसा देता है। गेम खेलने वाले सैंकड़ों छात्र ब्याज माफियायों के झांसे झांसी में आए हुए हैं।
हर शहर में एक ही तरीका काम में लिया जा रहा है। रुपया देने के बाद ब्याज खोर गुंडे नाबालिगों से न तो पैसा वापस लेने की जल्दबाजी करते हैं ना व्यवहार खराब करते हैं। जैसे ही कर्ज लाखों में पहुंचता है वह उन पर हावी हो जाते हैं। फिर एक दूसरा ब्याजखोर कर्ज उतारने के लिए नाबालिग के पास पहुंच जाता है। वह उसको उधार देकर पुराना उधार चुकाता है और उसे अपनी गिरफ़्त में ले लेता है। नाबालिग यह सोचते हैं कि चलो एक का तो कर्जा चूका। यह वह नहीं समझ पाते कि जिस दूसरे व्यक्ति ने कर्ज चुकाया है वह भी इस गैंग का ही सदस्य है।
जब कर्ज 10 लाख तक पहुंचता है तब बात मां-बापो तक पहुंचती है। मूल और ब्याज की वसूली के लिए मां-बाप के साथ गुंडागर्दी की जाती है। मां-बाप घर और बच्चे की इज्जत बचाने के लिए बात पुलिस तक पहुंचने में कतराते हैं। सयाने होते बेटों का भविष्य बचाने के लिए अपना सब कुछ लुटा कर ब्याज भर के बच्चों को मुक्त करवा लेते हैं।
इस बारे में जानकारी मिली कि एक कारोबारी जिसका कारोबार बहुत शानदार चल रहा है, उसका बेटा ब्याज खोरों का शिकार हो गया। आॅनलाइन गेमिंग में उसने 10 लाख का उधार सर पर चढ़ा लिया। बेटा पैसे वाले का था इसलिए ब्याजखोर जानते थे कि इज्जत बचाने को उसका बाप पैसे चुकायेगा ही। हुआ भी यही कि आखिर उसने पैसा चुका दिया।
अन्य मामले में एक उच्च अधिकारी के पुत्र ने 11 लाख रुपए ब्याज पर चढ़ा लिए। काफी हुज्जत के बाद 8 लाख में मामला निपटाया गया।
चाय की होटल चलाने वाले एक व्यक्ति के लड़के ने 5 लाख आॅनलाइन गेमिंग के चक्कर में यह सोचकर उधार ले लिए कि गेम जीतकर वह पैसा लौटा देगा। नतीजा यह हुआ कि वह पैसा तो नहीं चुका पाया मगर उसके पिता को पैसा चुकाने के लिए अपना मकान बेचना पड़ा।
मित्रों! आप भी अपनी भोली भाली संतानों को इतना भोला न समझें। उनके मोबाईल पर नजर रखें। मोबाईल के ऐप्स चैक करते रहें। हो सकता है पढ़ाई में व्यस्त न होकर आपका लाडला आन लाईन गेम्स खेल रहा हो। उसके और खुद के बर्बाद होने से पहले कड़ा नियंत्रण स्थापित कर लें। सूखे नशे के बाद आन लाइन गेम्स का नशा भी इस समय खतरनाक रूप से युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रहा है।