बेवकूफ शिक्षक तो नहीं पढ़ा रहे आपके बच्चों को

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शिक्षा मंत्री दिलावर ने विरोध करने वाले शिक्षकों को बताया बेवकूफ

बेवकूफ का मतलब जानते हैं आप? अगर गूगल सर्च करेंगे, तो पाएंगे कि बेवकूफ कहने में सबसे सामान्य और अपमानजनक शब्द है। इसका प्रयोग किसी ऐसे व्यक्ति का वर्णन करने के लिए किया जा सकता है, जिसमें बुद्धि, ज्ञान, विवेक की कमी हो। अब सवाल है कि क्या राजस्थान की सरकारी स्कूलों के शिक्षक बेवकूफ हैं? यह सवाल कोई और नहीं, शिक्षा मंत्री मदन दिलालर खुद उठा रहे हैं। यानि जिस सरकारी स्कूल में आपके बच्चे पढ़ रहे हैं, उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक बेवकूफ भी हो सकते है़। यानी जिनमें खुद बुद्धि, ज्ञान और विवेक की कमी हो और आप उन्हीं से उम्मीद कर रहे हैं कि वह आपके बच्चों को विवेकशील और संस्कारवान बना देंगे।

शिक्षकों को बेवकूफ की उपाधि से शिक्षा मंत्री दिलावर ने तब नवाजा, जब उनसे आज बारां में उनके नीम का थाना में दिए पिछले बयान, जिसमें उन्होंने कहा था कि कई शिक्षिकाएं अपना शरीर दिखाते हुए गलत पहनावा (अर्धनग्न) पहनकर स्कूल आती है। जबकि कई शिक्षक स्कूलों में गुटखा खाकर या झूमते हुए यानी शराब पीकर पहुंचते हैं। इस तरह की हरकत करने वालों को शिक्षक कहना पाप है, पर मीडिया ने सवाल पूछा था। उनके बयान ने जब तूल पकड़ा और जब कई शिक्षक संगठनों ने भी इसका विरोध किया, तो आज उन्होंने विरोध करने वाले शिक्षकों को बेवकूफ बता दिया। शिक्षा मंत्री के पूरा बयान का वीडियो क्लिप मेरे फेसबुक पेज पर देख और सुन सकते हैं।

लेकिन एक बात तो है कि दिलावर अपने पहले बयान की सफाई में जो दूसरा बयान देते हैं, वह शिक्षकों को और भी ज्यादा अपमानित करने वाला होता है। पता नहीं अपने ही विभाग के शिक्षकों से उन्हें इतनी एलर्जी क्यों है? अगर उन्हें लगता है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक मुफ्त में तनख्वाह ले रहे हैं। बच्चों को पढ़ा नहीं रहे हैं। उनका आचरण और वेशभूषा ठीक नहीं है, तो क्यों नहीं वह इसमें सुधार के लिए कोई मुहिम शुरू करते हैं? बना दीजिए शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड। रखिए हर कुछ समय के अंतराल के बाद उनके लिए रिफ्रेशर कोर्स। उनकी बुद्धि और विवेक को परखने के लिए लीजिए उनके विषय और सामान्य ज्ञान की परीक्षा। गुटखेबाज और शराबी शिक्षकों पर कीजिए कठोर कार्रवाई।

संस्कार देने की जिम्मेदारी अगर शिक्षकों पर है,तो उनके विभाग का मुखिया होने के नाते दिलावर की जिम्मेदारी तो और भी ज्यादा है कि वह सार्वजनिक रूप से शिक्षकों के प्रति अर्धनग्न,बेवकूफ जैसे अमर्यादित शब्द ना बोले। क्या उनकी शिक्षक के प्रति ऐसी भाषा को सुनकर विद्यार्थियों में अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान कम नहीं होगा? जो बातें परिवार के मुखिया को परिवार के भीतर करनी चाहिए।यानी विभाग के अधिकारियों के माध्यम से शिक्षकों तक पहुंचाई जानी चाहिए,उसे दिलावर सार्वजनिक मंचों रूप से कहकर भाजपा सरकार और संगठन के लिए भी मुसीबत ही पैदा कर रहे हैं। खास तौर से उपचुनाव शुरू होने के दौर में।

ओम माथुर

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