राजस्थान के उपचुनाव में कांग्रेस के लिए मुसीबत बने बेनीवाल और रोत

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देखना होगा कांग्रेस किस हद तक दबाव बर्दाश्त करेगी

राजस्थान में सभी विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव के लिए 13 नवंबर को मतदान होगा। 18 अक्टूबर से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने दावा किया है कि सात उपचुनाव में कांग्रेस की जीत होगी। गत वर्ष हुए चुनाव में सात में से 6 पर कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की जीत हुई थी। भाजपा को सिर्फ सलूंबर सीट पर जीत मिली थी।

लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को इन सीटों पर बढ़त मिली थी, लेकिन अब कांग्रेस की सहयोगी पार्टी आरएलपी के हनुमान बेनीवाल और भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के राजकुमार रोत ने उपचुनाव में कांग्रेस के सामने मुसीबत खड़ी कर दी है। कांग्रेस अपनी ओर से आरएलपी को खींवसर (नागौर) तथा बीएपी को चौरासी (डूंगरपुर) की सीट देने को तैयार है, लेकिन बेनीवाल ने खींवसर के साथ साथ देवली उनियारा पर भी दावा जता दिया है।

बेनीवाल ने कहा कि यदि खींवसर और देवली में कांग्रेस ने समर्थन नहीं दिया तो वह झुंझुनूं और रामगढ़ (अलवर) सीटों पर भी आरएलपी के उम्मीदवार खड़े कर देंगे। इसी प्रकार बांसवाड़ा डूंगरपुर के सांसद राजकुमार रोत की ओर से कहा गया है कि चौरासी के साथ साथ सलूंबर और देवील उनियारा की सीट पर कांग्रेस को हमें समर्थन करना चाहिए। आरएलपी और बीएपी के तीन तीन सीट मांग लेने से कांग्रेस के सामने संकट खड़ा हो गया है। कांग्रेस के नेताओं का भी मानना है कि भाजपा को सभी सात सीटों पर तभी हराया जा सकता है, जब आरएलपी और बीएपी के साथ समझौता हो।

बेनीवाल और रोत ने जिन सीटों पर दावा किया है, उन पर खासा प्रभाव है। यदि इन सीटों पर आरएलपी और बीएपी के उम्मीदवार खड़े होते हैं तो कांग्रेस की जीत मुश्किल हो जाएगी। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। यही वजह है कि भाजपा अभी कांग्रेस और सहयोगी दलों के गठबंधन का इंतजार कर रही है। यहां उल्लेखनीय है कि बेनीवाल और रोत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के समर्थन से ही सांसद बनें। लेकिन अब दोनों ने उपचुनाव में तीन तीन सीटों पर दावा ठोंक दिया है। अब जब 18 अक्टूबर से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है, तब गठबंधन को लेकर कोई पहल नहीं हुई है। पूर्व में आरएलपी का भाजपा के साथ भी गठबंधन रह चुका है। इस बार भले ही बेनीवाल भाजपा के साथ गठबंधन न करे, लेकिन कांग्रेस से विवाद होने पर भाजपा को ही लाभ पहुंचेगा।

गत वर्ष विधानसभा के चुनाव में हनुमान बेनीवाल आरएलपी के एकमात्र विधायक चुने गए थे। सांसद बनने के बाद मौजूदा समय में प्रदेश में आरएलपी का एक भी विधायक नहीं है। ऐसे में बेनीवाल उपचुनाव के माध्यम से पार्टी के दो तीन विधायक बनना चाहते हैं। इसी प्रकार बीएपी भी अपने विधायकों की संख्या दो से ज्यादा करना चाहती है। देखना होगा कि बेनीवाल और रोत का दबाव कांग्रेस किस सीमा तक बर्दाश्त करती है।

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