हिंदू बाहुल्य नौशेरा से जीते निर्दलीय विधायक सुरिंदर चौधरी डिप्टी सीएम बने। अब 370 की बहाली का समर्थन करेंगे
पाकिस्तान से वार्ता की अनौपचारिक शुरूआत भी होगी
16 अक्टूबर को अब्दुल्ला खानदान की तीसरी पीढ़ी के सदस्य उमर अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। उमर ने अपनी सरकार बनाई उसमें कांग्रेस ने फिलहाल शामिल होने से इंकार कर दिया है। जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के 6 विधायक है, इसलिए अब राजनीतिक क्षेत्रों में कांग्रेस के सरकार में शामिल नहीं होने को लेकर चर्चा हो रही है। जानकार सूत्रों के अनुसार उमर सरकार में कांग्रेस के शामिल न होने के पीछे महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा के चुनाव है।
मालूम हो कि उमर अब्दुल्ला ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि उनकी सरकार बनने पर विधानसभा में सबसे पहले अनुच्छेद 370 की बहाली का प्रस्ताव स्वीकृत किया जाएगा। कांग्रेस को पता है कि उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने पर विधानसभा में ऐसा ही होगा। कांग्रेस फिलहाल अनुच्छेद 370 की बहाली के मुद्दे पर खामोश रहना चाहती है। ताकि महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों में हिंदुओं के वोट मिल सके। देश का आम हिंदू 370 की बहाली के पक्ष में नहीं है।
यदि कांग्रेस अगर सरकार में शामिल होती तो उसे विधानसभा में 370 की बहाली के प्रस्ताव का समर्थन भी करना पड़ता। ऐसे में महाराष्ट्र और झारखंड में हिंदू मतदाता छिंटक सकते थे। यही वजह है कि कांग्रेस ने उमर सरकार को बाहर से समर्थन देने की घोषणा की है। कांग्रेस भले ही राजनीतिक पैंतरेबाजी करे, लेकिन कांग्रेस के समर्थन के बगैर उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री नहीं बन सकते थे। 90 विधायकों में से उमर के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस के 42 विधायक ही है। जबकि बहुमत के लिए 46 विधायक चाहिए।
कांग्रेस के 6 विधायकों के समर्थन के बाद ही सरकार के पास विधायकों की संख्या 48 हुई है। देखना होगा कि जम्मू कश्मीर में कांग्रेस की पैतरेबाजी को महाराष्ट्र और झारखंड के हिंदू मतदाता कितना समझते हैं। सब जानते हैं कि आजादी के बाद से ही जम्मू कश्मीर पर सबसे ज्यादा शासन अब्दुल्ला खानदान ने ही किया। सबसे पहले उमर के दादा शेख अब्दुल्ला और फिर पिता फारुख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री रहे। अब्दुल्ला खानदान के शासन में ही जम्मू कश्मीर खासकर कश्मीर घाटी में आतंकवाद चरम पर रहा। घाटी से चार लाख हिंदुओं को प्रताड़ित कर भगा दिया गया।
कई बार अब्दुल्ला खानदान की सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनी। जम्मू कश्मीर में दोनों का पुराना गठजोड़ है। यही वजह रही कि 16 अक्टूबर को जब उमर ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तब कांग्रेस के राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मौजूद थे। इससे अब्दुल्ला खानदान के प्रति कांग्रेस के लगाव को समझा जा सकता है।
डिप्टी सीएम के मायने
हिंदू बाहुल्य नौशेरा से विजयी हुए निर्दलीय विधायक सुरिंदर चौधरी को उमर सरकार में डिप्टी सीएम बनाया गया है। चौधरी को डिप्टी सीएम बनाने के पीछे भी अब्दुल्ला खानदान की सोची समझी राजनीति है। उमर सरकार यह दिखाना चाहती है कि अनुच्छेद 370 की बहाली जम्मू कश्मीर के हिंदू भी चाहते हैं। चूंकि अब सुरिंदर चौधरी डिप्टी सीएम बन गए हैं तो अब 370 की बहाली वाला प्रस्ताव विधानसभा में लाया जाएगा। तब सुरिंदर चौधरी को भी समर्थन करना पड़ेगा। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि हिंदू बाहुल्य क्षेत्र से जीते विधायक भी 370 की बहाली का समर्थन करेंगे।
मालूम हो कि चौधरी ने नौशेरा से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रविंदर रैना को हराया है। जो रैना पिछले कई वर्षों से अपनी जान जोखिम में डालकर आतंकवादियों का विरोध कर रहे थे, उन्हें भी हार कार सामना करना पड़ा। रविंदर रैना की हार से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि जम्मू कश्मीर अब किस दिशा में जा रहा है। यहां यह खासतौर से उल्लेखनीय है कि मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर घाटी की 47 सीटों में से भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली। जबकि हिंदू बाहुल्य जम्मू से कांग्रेस और अन्य दलों को 11 सीटें मिली है।
अनौपचारिक वार्ता भी शुरू
इसे संयोग ही कहा जाएगा कि 16 अक्टूबर को जब उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, तब पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार एक टेबल पर बैठकर लंच कर रहे थे। यह लंच शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के दो दिवसीय शिखर सम्मेलन की समाप्ति पर किया गया था। जब दोनों देशों के विदेश मंत्री एक ही टेबल पर बैठे तो दोनों के बीच अनौपचारिक वार्ता भी हुई।
इशाक डार ने एस जयशंकर से कहा कि अगले वर्ष फरवरी में पाकिस्तान में होने वाली क्रिकेट की चैम्पियंस ट्रॉफी में भारतीय क्रिकेट टीम को भेजा जाए। इस पर जयशंकर ने क्या जवाब दिया यह तो पता नहीं, लेकिन दोनों देशों के बीच अनौपचारिक वार्ता तो शुरू हो ही गइ्र है। मालूम हो कि जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान से वार्ता के पक्ष में है।
एस पी मित्तल
वर्ष 2016 में मेरी उम्र 54 वर्ष है और मैं करीब 40 वर्षों से पत्रकारिता कर रहा हूँ | पत्रकारिता की घुट्टी जन्मजात है। मेरे पिता स्व.कृष्ण गोपाल जी गुप्ता जो भभक पाक्षिक पत्र निकालते रहे। उससे मैंने पत्रकारिता का सबक सीखा। मेरी पत्रकारिता की यात्रा में दैनिक राष्ट्रदूत, दैनिक भास्कर, दैनिक नवज्योति, दैनिक पंजाब केसरी आदि अखबारों का सहयोग तो रहा ही है, लेकिन वर्ष 2000 में जब मैंने सम्पूर्ण उत्तर भारत में पहली बार केबल नेटवर्क पर न्यूज चैनल शुरू किया तो मुझे सीखने का जोरदार अवसर मिला। जिलेभर के केबल ऑपरेटरों की मदद से जब एक घंटे की न्यूज का प्रसारण हुआ तो अजमेर सहित राजस्थान भर में तहलका मच गया। हालांकि साधनों के अभाव और बड़े मीडिया घरानों के केबल में कूद पडऩे से मुझे अपना अजमेर अब तक नामक चैनल बंद करना पड़ा। 17 नवम्बर 2005 को जब मैंने देश के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से अजमेर के सर्किट हाऊस में व्यक्तिगत मुलाकात की तो मुझे एक सुखद अनुभूति हुई। यूं तो मेरे लिखे की गूंज राजस्थान विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में हुई है, लेकिन मेरी पत्रकारिता की सबसे बड़ी सफलता यही है कि मैं आज भी नियमित लिख रहा हूँ | यदि किसी पाठक के पास कोई सुझाव हो तो अवश्य दें | आपका एस.पी.मित्तल