राजस्थान में नशे के काले कारोबार को लेकर पिछले दिनों मैंने एक ब्लॉग लिखा तो केकड़ी पुष्कर और किशनगढ़ से मुझे बड़ी संख्या में लोगों ने फोन किये। मुझे बताया गया कि इन शहरों में 60 से 70 फीसदी युवा पीढ़ी को नशे का गुलाम बना दिया गया है और अपने इस महंगे शौक को पूरा करने के लिए युवक आपराधिक कृत्य करने से नहीं चूक रहे। सभी लोगों का कहना है कि केकड़ी पुष्कर और ब्यावर में बढ़ते इस कारोबार पर अंकुश लगाने के लिये पुलिस को चाक चौबन्ध करवाया जाए। लोगों का मानना है कि बिना पुलिस के ईमानदार हुए नशा माफियायों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता।
यहां आपको याद दिला दूँ कि राज्य के मुख्यमंत्री भजनलाल ने खुद भी एक भाषण में शराब की तस्करी पर तंज कसा था। उन्होंने कहा था। हरियाणा और पंजाब से शराब अवैध रूप से गुजरात पहुंचती है । रास्ते में अलग अलग राज्यों के सैंकड़ों थाने पड़ते है। क्या सम्मिलित प्रयास से शराब तस्करों पर लगाम नहीं कसी जा सकती?
भजन लाल जी की बात में दम है किंतु दूसरी तरफ का सत्य यह है कि कोरोना काल में लॉक डाउन के समय जब राज्यों की सीमाएं सीज थीं तब शराब तस्करी बिल्कुल ही बन्द हो गई थी। लॉक डाउन के बाद से तस्करी फिर शुरू हो गई जो आज तक विधिवत चल रही है।
पहले महीने दो महिने में पाँच सात शराब के ट्रक पकड़े जाने की खबर अखबारों में पढ़ने को मिल जाती थीं, अब तो पकड़ धकड जैसे प्रयास ही नहीं होते। सीमाओं पर कोई बंदिश नहीं। थाने मासिक किश्तों में बिके हुए हैं। कोई रोक टोक नहीं। हर जिले से ट्रक गुजरते हैं। प्रबन्धन इतना पुख़्ता है कि ऊपर तक पैसा पहुँचता है।
केकड़ी की बात करें तो यहाँ नशे का कारोबार इस स्तर पर पहुंच चुका है कि आम और खास लोगों के बच्चे पूरी तरह गिरफ्त में आ चुके हैं। और तो और कुछ मेडिकल स्टोर्स भी इस निकृष्ट कारोबार में जुड़े हुए हैं।
पुरानी केकड़ी और बस स्टैंड के आस पास हर तरह का सूखा नशा आपको आसानी से उपलब्ध हो जाएगा। ठेलों पर भले ही बेचा कुछ भी जा रहा हो कमाई पूड़ियाओं से हो रही है। पांच सौ रुपये की एक पुड़िया मिलती है जिसमें स्मैक होता है। इसके अलावा सभी खतरनाक कैमिकल सस्ती दर पर उपलब्ध हैं।
केकड़ी का जब आम आदमी जानता है कि कहां नशे की सामग्री बेची जा रही है तो पुलिस को यह मालूम न हो यह माना नहीं जा सकता।
किशनगढ, ब्यावर, अजमेर और पुष्कर के हाल तो और भी खराब हैं। नशीला पदार्थ अफीम और स्मैक के बाद युवाओं को खतरनाक ड्रग्स एमडी भी जकड़ने लगी है। एमडी यानी एमडीएमए। फिल्म नगरी मुंबई में यह ड्रग्स बॉलीवुड पार्टियों में उपयोग में ज्यादा आती है। किशनगढ़, ब्यावर, अजमेर, पुष्कर तथा इनके आस-पास के इलाकों में यह मादक पदार्थ एमडी 2500 से 3000 हजार रुपए प्रति ग्राम में बिक रहा है, जो कोकीन के बाद सबसे महंगा है।
युवा इसका सेवन ए वी इंजेक्शन, विभिन्न वैरायटी के गुटखा के साथ कर रहे हैं। शहरों के बाद अब ग्रामीण इलाकों के युवा भी इस नशे कि जकड़ में आ चुके है।
यह एमडी चुनिंदा दुकानों एवं होटलों पर टोकन कोडवर्ड से बिक रहा है।
कोई भी दुकानदार इसे एमडी के नाम से नहीं देता। हां, टोकन कहते ही मिल जाता है। अकेले किशनगढ़ शहर में इस एमडी की रोजाना की खपत 10 लाख रुपए से भी अधिक की बताई जा रही है, जिसको शहर के आठ-दस लोग ही मुख्य रूप से संचालित करते हैं। इन 8-10 लोगों के नीचे कई दुकानदार एवं होटल-ढाबा संचालक हैं जो इसकी बिक्री करते हैं।
पुलिस भले ही हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठी हो लेकिन कार्यवहाई कब की जायेगी यह बड़ा सवाल है।
यहाँ बता दूं कि पुष्कर और अजमेर में तो डेयरी तक में नशे की पुड़िया बेची जा रही हैं। यहाँ पूड़ियायों को सेंपल कहा जाता है।
बढ़ते नशे से इन सभी शहरों में चोरी की वारदातें बढ़ने लगी हैं। युवा पीढ़ी पूरी तरह से नशे की चपेट में आ चुकी है।
पुलिस उप महानिरीक्षक ओम प्रकाश वर्मा जी और पुलिस कप्तान वंदिता राणा से उम्मीद की जा रही है कि वे जल्द ही इस दिशा में नशा विरोधी टीम बनाकर एक साथ कठोर कदम उठाएं। मुझे पता है कि ये दोनों ही अधिकारी निहायत ईमानदार! संवेदनशील! और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी हैं। जब भी इन्होंने मुट्ठियों को ताना है सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। हाल ही में इनके निर्देशन में अति. पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार ने लीला सेवड़ी जो युवाओं का नशे का अड्डा बना हुआ था वहाँ जोरदार कार्यवाही को अंजाम देते हुए सभी थड़ियों को हटा दिया गया।
ब्यावर और केकड़ी के पुलिस कप्तान भी बेहद जिम्मेदार अधिकारी हैं । वे भी ठोस कार्यवाही करेंगे। उम्मीद की जा सकती है।
अंत में एक बात और! विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी जी ! सांसद भागीरथ चौधरी जी! मंत्री सुरेश रावत जी! विधायक अनीता भदेल जी! शत्रुघ्न गौतम जी! शंकर सिंह रावत जी! वीरेन्द्र सिंह कानावत जी! डॉ. विकास चौधरी जी और अन्य छोटे बड़े जन प्रतिनिधियों से भी आग्रह है कि वे सब बिना राजनीतिक भेदभाव से युवा पीढ़ी को इस बीमारी से बचाने के लिए एक जुट हों। इस दिशा में आवश्यक कदम उठाएं।
सुरेंद्र चतुर्वेदी
सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सियत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |
चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |