राजस्थान की भाजपा सरकार में इतना अंर्तविरोध है तो फिर 7 उप चुनाव कैसे जीतेंगे?

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क्या सरकार पर किसी का नियंत्रण नहीं है?

15 अक्टूबर को जब चुनाव आयोग ने राजस्थान विधानसभा के सात उपचुनावों की तारीख घोषित की तभी सरकार के कैबिनेट मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और मदन दिलावर के बीच विवाद की खबर भी प्रसारित हो गई। दिलावर के शिक्षा विभाग ने दौसा जिले में एक ही जाति के 26 प्रिंसिपल के जो तबादला आदेश जारी किए उस पर कृषि मंत्री मीणा ने कड़ा ऐतराज जताया। फलस्वरूप दो घंटे में ही तबादला आदेश वापस ले लिया गया। इससे पहले 13 अक्टूबर को भी स्थानीय निकायों में भी 476 पार्षदों की नियुक्ति का आदेश भी वापस लेना पड़ा।

पुलिस सेवा में ओबीसी वर्ग को आयु सीमा में छूट देने का फैसला भी सरकार को वापस लेना पड़ा था। जलदाय विभाग में भी कई आदेश वापस लिए गए। असल में भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में मंत्रियों के बीच तालमेल नहीं हो रहा है। सरकार में जो अंर्तविरोध है उसकी वजह से विपक्ष को हमला करने का अवसर मिल रहा है। एक और विपक्ष हमलावर है तो दूसरी ओर सरकार का बचाव करने वाला कोई बड़ा नेता नजर नहीं आ रहा है। अब जब सात उपचुनावों के लिए 13 नवंबर को मतदान होना है तो सवाल उठता है कि इन उपचुनावों में भाजपा की जीत कैसे होगी? जिन क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं, उन पर पहले से ही कांग्रेस, आरएलपी और बीएपी का कब्जा है।

सलूंबर की एकमात्र सीट भाजपा की है। अमृतलाल मीणा के निधन के बाद सलूंबर की सीट पर भी भाजपा की जीत कठिन है। गत लोकसभा के चुनाव में 25 में से 11 सीट पर विपक्ष की जीत की वजह से कांग्रेस के हौसले पहले ही बुलंद हैं। अब यदि सातों उपचुनाव में भी भाजपा की हार होती है तो इसका असर सरकार पर पड़ेगा। भले ही उपचुनाव में हा रसे भाजपा की सरकार न गिरे, लेकिन विपक्ष को विफलता गिनाने का अवसर मिल जाएगा। हालांकि भाजपा के नेताओं का दावा है कि सभी सात सीटों पर जीत होगी। लेकिन फिलहाल इस दावे में दम नजर नहीं आ रहा है। मौजूदा समय में सरकार और संगठन में एकजुटता के बजाए अंर्तविरोध सामने आ रहे हैं।

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