सवाल: क्या आम कैदियों को भी इतनी आसानी से जेल से राहत मिलती है
जलवा हो तो डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम जैसा। 4 साल में 11वीं बार जेल से बाहर आएगा। अपनी दो शिष्याओं से बलात्कार और हत्या तथा एक पत्रकार की हत्या करने के चलते 20 साल की सजा भुगत रहा यह अपराधी। पता नहीं है ये संयोग है या प्रयोग की जब-जब कोई चुनाव होता है, डेरा प्रमुख डंके की चोट पर फरलो या पैरोल पर जेल से बाहर आ जाता है।
तीन दिन बाद चार अक्टूबर को हरियाणा विधानसभा के चुनाव होने हैं और आज राम रहीम फिर 20 दिन की पैरोल पर जेल से बाहर होगा। हरियाणा में आदर्श आचार संहिता लागू है। इसलिए डेरा प्रमुख की पैरोल की अर्जी जेल विभाग ने चुनाव विभाग को भेजी, जहां से तुरंत मंजूरी मिल गई। उसे यह पैरोल आकसमिक और आवश्यक कारणों के लिए दी गई है, लेकिन यह कारण क्या है, यह स्पष्ट नहीं हैं। राम रहीम का हरियाणा के सिरसा, हिसार, फतेहाबाद,अंबाला, सहित आदि जिलों में अच्छा प्रभाव है और यहां हरियाणा विधानसभा की तीन दर्जन से ज्यादा सीटें आती है।
राम रहीम के समर्थकों की संख्या लाखों में हैं, इसलिए हर राजनीतिक दल उससे संपर्क और अपने पक्ष में रखना चाहता है, ताकि उसके इशारे पर मिलने वाले वोटों से वह लाभान्वित हो सके। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि राजनीतिक दल सत्ता में आने के लिए माफिया, हत्यारे, बलात्कारी और किसी भी गंभीर किस्म के अपराधी का समर्थन लेने में पीछे नहीं रहते। लेकिन बातें राजनीति में शुचिता की करते हैं।
राजनीति में अपराधीकरण के हमाम में सारे दल नंगे हैं, लेकिन फिर भी एक दूसरे को नंगा दिखाने की कोशिश करते कहैं। दोषी देश की धर्मभीरू और अंधभक्त जनता भी है, जो राम रहीम और आसाराम जैसे पाखंडी और अपराधी लोगों को भगवान मानकर उनकी पूजा करती है और उनकी एक इशारे पर कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाती है। जब राम रहीम को 2017 में पंचकुला में सजा सुनाई गई थी, तब उसके 2 लाख समर्थकों ने वहां और पूरे हरियाणा में उत्पात मचाया था, जिसमें 38 लोग मारे थे।
अभी हरियाणा में भाजपा की सरकार है, इसलिए राम रहीम पैरोल पर बाहर आ रहा है, तो वह भाजपा को ही मदद करेगा। कांग्रेस ने तो चुनाव आयोग में अर्जी दाखिल कर उसके पैरोल का विरोध भी कर दिया है और यह भी कहा है कि उसका हरियाणा में मास बेस है यानी भारी जनसमर्थन है, इसलिए वह चुनाव को प्रभावित कर सकता है। हालांकि पैरोल की शर्तों में उसके हरियाणा में नहीं रहने, किसी भी सामाजिक और राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लेने तथा सोशल मीडिया के माध्यम से भी लोगों को संबोधित नहीं करने की शर्तें लागू हैं और वह उत्तरप्रदेश के बागपत के आश्रम में रहेगा।
जाहिर है राम रहीम आश्रम से बैठकर ही अपनी सारी गतिविधियों का संचालन करेगा और वह खुद भले ही सक्रिय ना रहे, अपने करीबी समर्थकों को मतदान के लिए पूरी तरह सक्रिय कर देगा। जो उसके भक्तों को गुरुजी का संदेश देंगे कि किसे वोट देना है। यह महज संयोग नहीं हो सकता कि जब-जब राम रहीम को पैरोल या फर्लो मिलती है, तब तब चुनाव होते हैं। उसे इस साल हुए लोकसभा चुनाव से साथ ही पहले भी पंजाब विधानसभा चुनाव, हरियाणा में नगर निकाय एवं पंचायत चुनाव, हरियाणा में उपचुनाव, पिछले साल राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान फरलो या पैरोल पर छोड़ा गया था। अब हरियाणा में चुनाव है।
सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या हरियाणा में अपनी कमजोर हालत और सत्ता हाथ से फिसलने की आशंका को देखते हुए भाजपा ने राम रहीम पर भरोसा किया है। 4 साल में अब तक राम रहीम करीब ढाई सौ से ज्यादा दिन तक बाहर रह चुका है। उसे पिछले महीने ही 13 अगस्त को 21 दिन के फरलों पर छोड़ा गया था और वह तीन सितंबर को ही जेल लौटा है। लेकिन अब फिर वह पैरोल बाहर आ जाएगा।
कारागार में बंद विचाराधीन व सजायाफ्ता कैदियों को पैरोल तभी दी जाती है, जब उसकी सजा को 1 साल पूरा हो जाता है। जबकि फरलो सजा के 3 साल पूरे होने के बाद दी जाती है। फरलो जेल से मिलने वाली छुट्टी है, जो कैदियों को व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए दी जाती है। एक साल में कोई भी कैदी तीन बार फरलो ले सकता है। पैरोल के लिए कारण बताना जरूरी होता है। जबकि फरलो को कैदियों के मानसिक संतुलन को बनाए रखने के लिए और समाज से संबंध जोड़ने के लिए दिया जाता है।
पैरोल की अवधि 1 महीने तक बढ़ाई जा सकती है। जबकि फरलो ज्यादा से ज्यादा 14 दिन के लिए जा सकता है। हालांकि पहली बार फरलो 21 दिन का होता है। पैरोल कैदी की अस्थाई रिहाई होता है और यह फरलों भी है। लेकिन पैरोल कैदी के अनुरोध पर दी जाती है और इसे अस्वीकार भी किया जा सकता है।
भाजपा सहित राम रहीम के समर्थकों को कहना है कि उन्हें पैरोल और फरलो कानून अधिकार के तहत मिलते हैं। लेकिन सवाल ये है कि राम रहीम को इतनी आसानी से दोनों कैसे मिल जाते हैं? उनके आवेदन जिस गति से मंजूरी के लिए दौड़ते हैं, क्या आम कैदियों के आवेदनों को भी इसी गति से आगे बढ़ाया जाता है। आम कैदियों के पैरोल के तो आवेदन तो रद्द ही कर दिए जाते हैं।
लेकिन राम रहीम की कभी भी कोई अर्जी रद्द नहीं की गई। 4 साल की सजा में 11 बार फरलो और पैरोल मिलने का उदाहरण भी देश में शायद ही पहले कोई हो। वह भी तब जब आमतौर पर फरलो और पैरोल देने वाली कमेटियां हत्या,यौनशोषण,बलात्कार जैसे गंभीर मामलों के दोषियों को यह देने से बचाती है। जबकि राम रहीम इन्हीं का दोषी है, लेकिन फिर भी डंके की चोट पर जेल से बाहर आता है। दरअसल अमीरजादों, नेताओं-अभिनेताओं, कथित धर्मगुरुओं ने हमारे देश की कानून व्यवस्था को खिलवाड़ बनाकर रख दिया है और इसका मनमाना उपयोग करते हैं। प्रशासन और सरकार भी ऐसे खास लोगों को राहत के रास्ते तुरंत खोल देता है।